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गरीबी जिंदा क्यों रहती है?

9 अक्टूबर 2022

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इस दुनिया में गरीब व्यक्ति की हालत हमेशा गरीबी से क्यों जूझती है। 
इस बात को सोचने और समझने की क्षमता उस गरीब व्यक्ति में कहां होती है। जो अपनी जिंदगी के भूत, भविष्य और वर्तमान के विषय में कभी भी सोचता नहीं है। वह केवल शारीरिक रूप से ही कमजोर नहीं होता है बल्कि मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप से भी पूरी तरह अपंग होता है।

इसकी अपंगता यह उसकी जिंदगी का कोई मकसद नहीं होता है। एक गरीब व्यक्ति की कई-कई पीढ़ियां गरीबी के दर्द से गुजर जाती है लेकिन उसकी दशा सात पीढ़ी पहले जीती थी वह आज भी उसी तरह की जिल्लत भरी जिंदगी के दर्द सहन कर रहा हैं।
उसकी जिंदगी आज भी उस घर में गुजर रही है जिसमें आज से पचास साल पहले गुजर रही थी।
इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार हैं लेकिन वह एक मायने में खुद के अलावा इस समाज,देश और देश के शासक और प्रशासक भी जिम्मेदार है।
कुछ शासकों और प्रशासकों की यह इच्छा ही नही होती है कि उनकी दशा और दिशा को सुधारा जाए।
जब एक गरीब व्यक्ति अपने जीवन को बहुत ही संकट में काट रहा हो तो उसे और अधिक गरीबी करने के लिए मुफ्त की चीजों का प्रलोभन दिया जाता है इसका सीधा सा अर्थ है कि उसे मुफ्त की चीजें देकर आलसी और लाचार बनाया जाता है ।
यदि इसी कुछ मुद्दों की चर्चा की जाये तो एक गरीब व्यक्ति को पेट भरने के लिए अनाज,मुफ्त की बिजली, मुफ्त के पैसे इत्यादि चीजों को छोड़कर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं,उनके बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और उनके जीवनयापन के लिए रोजगार उपलब्ध करा दिया जाये तो इस देश की गरीबी को दूर होने में देर नहीं लगेंगी।।
उन्हें पैरों पर खड़ा होकर चलना सिखाने की आवश्यकता है न कि उनके लिए मुफ्त की सुविधाएं उपलब्ध कराकर उन्हें इतना आलसी बना देना कि वह समझ ही नहीं पाते कि सिर्फ मेरे ही हाथ-पैर नहीं कटे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी पता नहीं होगा कि हमें गरीबी का वरदान कैसे मिला।
"एक जंगल में एक बहुत ही प्रसिद्ध साधु रहता था।
उसके आश्रम में बहुत से चेले रहते थे।
उनके साथ वह बहुत ही प्रसन्नता के साथ जिंदगी व्यतीत करता था।
उसकी प्रसिद्धि के चर्चे आस पास के सारे गांवों में हुआ करते थे। वह अपने व्यवहार और भक्ति से चारों तरफ अपना रूतबा जमाकर रखा हुआ था। 
जो भी भक्त उसके आश्रम में आता था‌ वह खाली झोली कभी भी नहीं जाता था।
वह साधु अपनी शक्ति के अलावा दार्शनिक, मनौवैज्ञानिक और एक अच्छा विचारक था।
उसकी इन सभी खुबियों के कारण उसे लोगों के द्वारा बहुत ही माना जाता था।
उसके दरबार की प्रशंसा और प्रसिद्धि दिनोदिन बढ़ती जा रही थी ।
एक दिन की बात है कि अचानक से दो व्यक्ति उसके दरबार में आये।
दरबार में आकर उसके चरणों में गिर गये।
उसके बाद उसने उन दोनों को अपनी आत्मशक्ति से पहचाना और देखा कि उनमें से एक किसान जो बहुत गरीब था और दूसरा एक अमीर बिज़नेस मैन व्यक्ति था।
वह उसके यहां धन,दौलत और शौहरत की कोई कमी नही थी।
उसने कहीं से बाबा के बारे में सुन लिया था तो वह वहां आ पहुंचा।
कुछ समय बाद साधु महाराज अपने प्रवचनों से सभी को ज्ञान दे रहे थे।
उसके सभी चेले उसके चारों तरफ खड़े होकर बड़े ही ध्यान पूर्वक होकर सुन रहे थे।
वे दोनों ने व्यक्ति जो एक बाबा से दर्द निवारण के विषय में जानने आया था और दूसरा अमीर व्यक्ति जो दर्शन के लिए आया था और बाबा के ज्ञान की बातें सुनने के लिए आया।
"बाबा ने अपने प्रवचनों में कहा कि जो व्यक्ति जिस तरह के माहौल में रहता है उसका स्वभाव वैसा ही बन जाता है और उसमें परिवर्तन करने के लिए उसे दूसरे माहौल की सख्त आवश्यकता है।
इसके बाद उसने कहा कि एक उचित प्रबंधन को समझने वाला व्यक्ति किसी भी चीज का प्रबंधन कर सकता है और उसे हर चीज मैं एक भविष्य नजर आता है वह कभी भी भाग्य के भरोसे नहीं बैठता है वह अपने बुद्धि विवेक से लगातार उन्नति करता रहता है।
बाबा ने तीसरी बात कही कि जो मनुष्य भाग्य के भरोसे बैठा रहता है उसकी भविष्य की हर पीढ़ी दुखों से घिरी हुई रहती है और जो लोग अपने लक्ष्य पर एक कदम भी चलते हैं वे निश्चित ही सफल होते हैं।
मनुष्य को किसी पर निर्भर रहने के बजाय स्वनिर्भर और स्वाबलंबी बनाने की आवश्यकता है।
क्योंकि स्वनिर्भर व्यक्ति अपने भविष्य को वर्तमान से बेहतर बना सकता है और जो दूसरों के ऊपर निर्भर रहता है वह सदा दुखी रहता है।"

इन बातों को भक्त नहीं समझ पाये क्योंकि ये सारी बातें उन दोनों लोगों पर लागू होती थी जो उनके दरबार में बाबा की कृपा लेने के लिए आये थे।

लगभग एक घंटे के प्रवचनों में साधु महाराज ने बहुत सी बातें बताई लेकिन मुख्य प्रवचन उन दोनो व्यक्ति की समस्या को लेकर दिये थे।
सभी भक्त प्रवचनों को लेकर बड़े ही असंमजस में थे।
प्रवचन के खत्म हो जाने के बाद साधु महाराज ने अपने भक्तों से कहा कि आश्रम में एक पुराना फावड़ा और कुछ रूपये लाने के लिए कसा।

भक्तों ने महाराज की बात सुनकर उनके सामने दोनों चीजें बातें रख दी।
वहां पर बैठे हुए दोनों व्यक्ति मन ही मन सोच रहे थे कि साधु बाबा हमें कब कृपा करेंगे और हमें कब अपना प्रसाद देकर हमें कृतार्थ करेंगे।

उनकी आंखें इंतजार की घड़ियां गिन रही थी।

कुछ समय सोचने के बाद साधु महाराज ने दोनों को अपने पास बुलाकर गरीब किसान को फावडा और अमीर व्यक्ति के लिए भक्तों से मंगाये गये रूपये दे दिए और दोनों को छह महीने के बाद आने के लिए कहा।

यह सब देखकर भक्त लोग परेशान हो गये ये लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि साधु बाबा ने यह क्या किया?
इस अमीर व्यक्ति को रूपये देने की क्या आवश्यकता है जो उसे रूपये दिये है । उसके पास पहले से ही बहुत सम्पत्ति है और उसे रुपये देने की कोई आवश्यकता नहीं थी लेकिन हमारे गुरुजी यह क्या कर रहे हैं।

बेचारे गरीब को रूपये देते तो वह अपने परिवार और स्वयं का कुछ दिनों के लिए पेट पालन करता।उसके पास रूपये का बहुत ज्यादा अभाव था।
हमें लगता है साधु महाराज को कन्फ्यूजन हो गया है।

कुछ भक्तों की शंका बहुत बढ़ गई उन्हें रूका नहीं जा रहा था। उन्होंने महाराज से पूछा और कहा महाराज आपने यह क्या किया?
महाराज उस गरीब को रूपये क्यों नहीं दिये जो एक-एक रूपये के लिए मोहताज है। 
साधु महाराज ने कहा कि मैंने सब कुछ सही किया है आप जब छ: महीने बाद देखना तुम सब लोग अपने आप समझ जाओगे।

भक्त महाराज की बात सुनकर बहुत आश्चर्य में थे। उनके दिमाग की शंका बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।

उधर गरीब आदमी ने भी महाराज के निर्णय को देखकर बहुत कोसा और कहा कि मुझे यह फावड़ा देकर क्या किया है। मैं इसका क्या करूंगा।
लेकिन उसने बाद में सोचा कि शायद बाबा ने हमें इसको देकर कुछ चमत्कार पैदा करके हमारी समस्याओं को सुलझा सकते हैं। 
इसलिए हमें इस फावड़े की हर दिन पूजा करनी चाहिए जिससे कि बाबा कि कृपा हमारे ऊपर शुरू हो जाये।
उन्होंने घर के एक कोने को बहुत अच्छी तरह साफ करवाया और वहां पर रखकर सभी परिवार वालों को उसकी पूजा करने के लिए कहा।
उनके घर में भक्ति का पूरा माहौल पैदा हो गया सभी लोग भक्ति भाव में रम गये।
उधर अमीर व्यक्ति ने जाकर सोचा कि साधु महाराज ने हमारे पास असीम रूपये होने के बाद भी उन्होंने मुझे ये रूपये दिए हैं।

उन्होंने बिना कारण के ये रूपये नहीं दिये होंगे इनका जरूर कोई ना कोई रहस्य है।
उसने सोचा कि ये रूपये इतने भी नहीं कि इनको कहीं ज्यादा बेहतर कर सकते हैं।
उसने उन रूपयों को एक पालिसी में इन्वेस्ट कर दिया जहां पर ये रूपये पंन्द्रह से बीस प्रतिशत ब्याज मिलने की संभावना थी।
लेकिन गरीब किसान के घर का माहौल पूरा भक्ति भाव में पैदा कर दिया।
घर के बच्चे और उसकी पत्नी कुछ भी काम छोड़ देती थी लेकिन उसकी पूजा नहीं छूटती थी। वह हर दिन एक चमत्कार की तलाश में रहती थी।
बाबा के फावड़े को आये हुए तीन महीने हो गए लेकिन अभी तक उसके घर की गरीबी और दरिद्रता दूर नहीं हुई।
उल्टे उसने उसकी पूजा और उसके रखाव में अपने पास जमा रूपये भी लगा दिए थे।

किसान बुरी तरह परेशान हो गया बाबा के फावड़े ने अभी तक कोई चमत्कार नहीं किया।
हमारे साथ धोखा किया है बाबा ने।
लेकिन फिर उसने सोचा कि अभी तो तीन महीने ही खत्म हुए हैं शायद हो सकता है हमारी भक्ति में कोई कमी रह गई हो।
उसने अपने खेत में खड़ी फसल पर काम करने के बजाय उस फावड़े को अधिक समय देना शुरू कर दिया। 
वह रात-दिन उसी की भक्ति में लगा रहा और फसल के ऊपर ध्यान नहीं दे पाया इस वजह से उसकी फसल भी बिगड़ गई।
उधर अमीर व्यक्ति का इन्वेस्टमेंट उसे हर दिन ब्याज देकर उन रूपयों में लगातार वृद्धि दे रहा था।
बचे हुए छ महीने व्यतीत होने वाले थे गरीब किसान के घर कोई चमत्कार नहीं हुआ।
उल्टे ही उसे पहले की अपेक्षा कम उपज प्राप्त हुई जिसको देखकर किसान को बहुत उदासी हुई।
उसने साधु को मन ही मन बहुत बुरा-भला कहा और सोचने लगा कि यह ढोंगी बाबा है लोगों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें लूटता है यह समाज के हक में कोई भी काम नहीं करता है।
अंत में वह दिन आ ही गया जब साधु महाराज के मुताबिक उन्हें घर जाना था।
वह उस फावड़े को लेकर बड़े ही गुस्से से जा रहा था। वह सोच रहा था कि आज इस साधु की सभी के सामने बेइज्जती करके ही छोड़ूंगा।

वे दोनों लोग आश्रम में पहुंचे और देखा वहां पर भक्त लोगों की भीड़ लगी थी और साधु महाराज अभी बाहर नहीं आये थे। 
किसान गुस्से से लाल-पीला हो रहा था उसे साधु की पोल खोलने की बैचेनी हो रही थी।
उधर साधु महाराज कुटिया से निकलकर गद्दी पर आसीन हो गये उन्होंने चारों तरफ निगाह पसार कर देखा।
जब किसान को देखा तो वह बहुत असंतुष्ट लग रहा था और गुस्से से तमतमा रहा था।
साधु महाराज ने बहुत देर तक प्रवचन दिए जब तक किसान का ग़ुस्सा शांत सा हो गया था।
फिर उसने सभी भक्तों के सामने उन दोनों को बुलाया और अपनी दी हुई वस्तु मांगी।
किसान ने अपना फावड़ा साधु महाराज को सौंप दिया उसने उसे देखा तो वह सिंदूर और कलावे से पूरी तरह सना हुआ था।
वह समझ गया कि मामला क्या है?
उसने किसान से पूछा कि तुमने इस फावड़े का क्या किया?
किसान ने कहा हमने इस फावड़े को आपका आशीर्वाद समझकर इसकी रात दिन भक्ति और पूजा की।
लेकिन हमें घर में उन्नति के वजाह अवनति ही मिली।
हमारे घर में पहले से ज्यादा समस्याएं पैदा हो गई है। 

साधु महाराज मुस्कराने लगे।
उसने उसे शांत होकर एक तरफ बैठने को कहा और अमीर व्यक्ति को अपने पास बुलाकर उससे रूपये मांगे।
उसने अपने जेब से रूपये निकाल कर दिए जब साधु महाराज ने उन रूपयों को गिना तो वे पहले से डेढ़ गुना थे।
साधु महाराज अब भी मुस्कुरा रहे थे।

भक्तों का संशय अब भी खत्म नहीं हुआ उन्होंने उसी समय खड़े होकर पूछा महाराज इसका रहस्य बताने का कष्ट करें।

उसी समय उन्होंने सभी के सामने कहा कि यह सब मनुष्य की सोच,उसके विचारों और वहां के माहौल का फर्क होता है।
किसान को मैंने फावड़ा इसलिए नहीं दिया कि वह इसकी भक्ति पूजा और आराधना करके उसे बेकार कर दे। उसने सभी को फावड़ा दिखाया जो जंग से खराब हो चुका था।
फिर साधु महाराज बोले कि मैं जानता था कि इस किसान के पास फावड़ा नहीं है जिससे इसे खेतों में काम करने में समस्या आती है और खेत में काम करने पर बहुत कष्ट होता है।
इसलिए यह इससे कम समय में अधिक काम करके अधिक पैदावार कमा सकता था।
लेकिन इसकी सोच को जंग लगी हुई है इन्होंने मेहनत करने के बजाय चमत्कार पर भरोसा था और उसके इंतजार में यह आलस से बैठा रहा। लेकिन ऐसा कोई चमत्कार नहीं हुआ और इसकी समस्याएं पहले से अधिक बढ़ गई। यदि जीवन में मेहनत को छोड़कर चमत्कार और दूसरों के द्वारा मिलने वाली मुफ्त की चीजों के भरोसे बैठे रहोगे तो तुम लोग पेट तो भर लेंगे लेकिन जीवन में उन्नति नहीं कर सकते हो।
जब उसने अमीर व्यक्ति का विश्लेषण किया बताया कि यह व्यक्ति चाहता तो इन रूपयों को बाबा की कृपा समझकर तिजोरी में डाल सकता था लेकिन इसने अपनी तिजोरी में नहीं रखकर इन्हें कही निवेश किया और आज यही रूपये बढ़कर डेढ़ गुना हो गये है इस व्यक्ति की सोच और रुपये दोनों ने हमेशा काम किया है।

हां इन रूपयों को मैं इस गरीब किसान को दे देता तो कुछ दिन के लिए खुश हो जाता और उसके बाद इन्हें खर्च कर देता। उसके बाद इसकी समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है।

गरीब व्यक्ति को बड़ा पछतावा हुआ वह साधु के चरणों में जाकर गिर गया और उसने भाग्य भरोसे रहने के बजाय परिश्रम करने का संकल्प लिया।

साधु महाराज ने अमीर व्यक्ति को जितने रूपये दिये वे अपने पास रख लिए और अतिरिक्त रूपये उसके हाथ में रख दिए।
उसने साधु महाराज को सिर झुकाकर चरणों में प्रणाम किया और वह वहां से चला गया।

इसलिए गरीबी के लिए लोग वहां के माहौल, उनके ऊपर सरकार या अमीर द्वारा की जाने वाली मुफ्त की कृपा और उसके पास सुविधाओं का अभाव उसकी सोच को संकीर्ण बना देती है।
एक गरीब व्यक्ति कभी भी नहीं सोच सकता कि उसे मेहनत करके रूपये कमाने पडे।
वह शारीरिक और मानसिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि वह भाग्य भरोसे या किसी दैविक चमत्कार की खोज में अपना अमूल्य समय और कर्ज लेकर रुपया खर्च कर देता है जो उसकी जिंदगी में जीते-जी कभी नहीं होता है।
उनमें कुछ लोग जो अच्छी हवा के संपर्क में आकर मेहनत और परिश्रम को गले लगा लेते हैं वे इस दुनिया के लिए एक अनौखी मिशाल बना जाते हैं।

इसलिए गरीबी की अपंगता मनुष्य के जीवन में भरी होती है।

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