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आर्त्तनाद (लघुकथा)

10 जून 2020

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आर्त्तनाद (लघुकथा)

रात भर धरती गीली होती रही। आसमान बीच बीच में गरज उठता। वह पति की चिरौरी करती रही। बीमार माँ को देखने की हूक रह रह कर दामिनी बन काले आकाश को दमका देती। सूजी आँखों में सुबह का सूरज चमका। पति उसे भाई के घर के बाहर ही छोड़कर चला आया। घर में घुसते ही माँ के चरणों पर निढाल उसका पुक्का फट चुका था। वर्तमान की चौखट पर बैठा अतीत कब से भविष्य की बाट जोह रहा था। दो जोड़ी कातर निगाहें लाचारी के धुँधलेपन में घुलती जा रही थी। सिसकियों का संवाद चलता रहा। दिन भर माँ को अगोरे रही।

पच्छिम लाल होकर अंधेरे में गुम हो गया था। अमावस का काजल धरती को लीपने लगा था। उपवास व्रत के अवसान का समय आ गया था। बरगद के नीचे पतिव्रताओं का झुंड शिव-पार्वती को नहलाने लगा था। कोयल कौए के घोंसले से अपने बच्चे को लेकर अपने घर के रास्ते निकल चुकी थी। कालिंदी अपने आर्त्तनाद का पीछा करती सरपट समुंदर में समाने भागी जा रही थी।

विश्वमोहन की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

माँ बेटी के आत्मीय संबंध की मर्मकथा , जो शायद हर माँ बेटी के जीवन की दर्द भरी सच्चाई है। इससे मिलते जुलते पल पिछले साल मैंने भी मेरी माँ की गंभीर बीमारी के दौरान जीये। ये अटूट बंधन और इसकी अनकही व्यथा या माँ समझ सकती है या बेटी। जीवन की बुझती लौ लिए असहाय माँ की मर्मांतक वेदना के पल, एक बेटी के लिए कितने क्रूर होते हैं , उन्हें किन्हीं शब्दों में शायद लिखा जाना संभव नहीं। पर एक दूसरी बेटी भाभी क्यों इस रिश्ते के प्रति इतनी निष्ठुर साबित होती है, ये प्रश्न नितांत अबूझ है, शायद हमेशा से ही-----!!भावपूर्ण लघुकथा जो नारी मन की पीड़ा को पूर्णरूपेण कहने में सक्षम है । हार्दिक शुभकामनायें🙏🙏

21 जून 2020

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मन . दिल और आत्मा

24 फरवरी 2017
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मनुष्य की आदत है कि बिना पढ़े वह बहुत कुछ लिख जाता है, और बिना लिखे बहुत कुछ पढ़ भी जाता है. वस्तुतः जीवन को देखना जीवन को पढ़ना है और जीवन को जीना जीवन को लिखना है. जीवन को देखते हुए जीना और जीते हुए देखना ही सार्थक जीना है. मन का काम है- पढ़ना, दिल का

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आलोचना की संस्कृति

28 फरवरी 2017
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कविताओं के संग्रह के साथ कुछ साहित्य-साधकों से अलग-अलग मिलने का सुअवसर मिला. कवितायें बहुरंगी और अलग-अलग तेवरों में थी. कुछ आध्यात्मिक, कुछ मानवीय संबंधों पर , कोई मांसल श्रृँगार का चित्र खींचने वाली, कोई प्रकृति के सौन्दर्य की छवि उकेरने वाली, कोई सामाजिक विषमता और व्यवस्था के पाखण्ड पर प्रहार कर

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प्रेम-जोग

2 मार्च 2017
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आ री गोरी, चोरी चोरीमन मोर तेरे संग बसा है.राधा रंगी, श्याम की होरीब्रज में आज सतरंग नशा है.पहले मन रंग, तब तन को रंगऔर रंग ले वो झीनी चुनरिया.‘प्रेम-जोग’ से बीनी जो चुनरउसे ओढ़ फिर सजे सुंदरिया.रहे श्रृंगार चिरंतन चेतनलोचन सुख, सखी लखे चदरिया.अनहद, अनंत में पेंगे भर लेअब न लजा, आजा तु गुजरिया.लोक-ला

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वसंत

7 मार्च 2017
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जीवन घट में कुसुमाकर ने, रस घोला है फिर चेतन का /शरमायी सुरमायी कली में, शोभे आभा नवयौवन का //डाल डाल पर नवल राग में,प्रत्यूष पवन का मृदु प्रकम्पन/लतिका ललना की अठखेली में, तरु किशोर का नेह निमंत्रण //पत्र दलों की नुपुर ध्वनि सुन, वनिता खोले घन केश पाश /उल्लसित पादप पुंज वसंत मे

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प्रेम पीयूष

9 मार्च 2017
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पतित पावन पुण्य सलिला के प्रस्तर मेंचारू चंद्र की चंचल चांदनी की चादर मेंपूनम तेरी पावस स्म्रृति के सागर मेंप्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.अब विरह की घोर तपस मेंप्रेम पीर की शीत तमस मेंबिछुडन की इस कसमकश मेंप्रणय के एक एक तंतु कोबडे जतन से मै बुनता हूँप्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगत

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जुलमी फागुन! पिया न आयो.

11 मार्च 2017
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जुलमी फागुन! पिया न आयो.बाउर बयार, बहक बौराकरतन मन मोर लपटायो.शिथिल शबद, भये भाव मवनसजन नयन घन छायो.मदन बदन में अगन लगायेसनन सनन सिहरायोकंचुकी सुखत नहीं सजनीउर, मकरंद बरसायो .बैरन सखियन, फगुआ गायेबिरहन मन झुलसायो.धधक धधक, जर जियरा धनकेअंग रंग सनकायो.जुलमी फागुन! पिया न आयो.टीस परेम-पीर, चिर चीर

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तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!

16 मार्च 2017
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मीत मिले न मन के मानिकसपने आंसू में बह जाते हैं।जीवन के विरानेपन में,महल ख्वाब के ढह जाते हैं।टीस टीस कर दिल तपता हैभाव बने घाव ,मन में गहरे।तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!अंतरिक्ष के सूनेपन मेंचाँद अकेले सो जाता है।विरल वेदना की बदरी मेंलुक लुक छिप छिप खो जाता है।अकुलाता पूनम का सागरउठती गिरती व्याकु

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गौरैया

20 मार्च 2017
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अंतर्राष्ट्रीय गौरैया दिवस पर :----भटक गयी है गौरैयारास्ता अपने चमन कासूने तपते लहकतेकंक्रीट के जंगल मेंआग से उसनातीधीरे से झाँकतीकिवाड़ के फाफड़ सेवातानुकुलित कक्षसहमी सतर्कन चहचहाती न फुदकतीकोठरी की छत कोनिहारती फद्गुदीअपनी आँखों मे ढ़ोतीघनी अमरायी कानन की..........टहनियों के झुंड मेलटके घोंसलेजहां च

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एक ऋषि से साक्षात्कार (विश्व जल दिवस के अवसर पर )

22 मार्च 2017
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विश्व जल दिवस के अवसर पर एक ऋषि से साक्षात्कार(मैगसेसे पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभुषण अलंकृत और चिपको आंदोलन के प्रणेता प्रसिद्ध गांधीवादी पर्यावरणविद श्री चंडी प्रसाद भट्ट को अंतर्राष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के अवसर पर उनको समर्पित उनसे पिछले दिनो

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मानस की प्रस्तावना

25 मार्च 2017
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किसी भी ग्रंथ के प्रारम्भ की पंक्तियाँ उसमें अंतर्निहित सम्भावनाओं एवं उसके उद्देश्यों को इंगित करती हैं . कोई यज्ञ सम्पन्न करने निकले पथिक के माथे पर माँ के हाथों लगा यह दही अक्षत का टीका है जो उस यज्ञ में छिपी सम्भाव्यताओं की मंगल कामना तथा उसके लक्ष्यों की प्रथम प्रतिश्रुति है . दुनिया के महानतम

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गांधी और चंपारण ( चंपारण सत्याग्रह शताब्दी, १० अप्रैल २०१७, के अवसर पर )

10 अप्रैल 2017
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चंपारण की पवित्र भूमि मोहनदास करमचंद गांधी की कर्म भूमि साबित हुई।दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह विदेशी धरती पर अपमान की पीड़ा और तात्कालिक परिस्थितियों से स्वत:स्फूर्त लाचार गांधी के व्यक्तित्व की आतंरिक बनावट के प्रतिकार के रूप में पनपा, जहां रूह की ताकत ने अपनी औकात को आँका। लेकिन एक सुनियोजित राष्ट्

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आर्त्तनाद (लघुकथा)

10 जून 2020
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आर्त्तनाद (लघुकथा)रात भर धरती गीली होती रही। आसमान बीच बीच में गरज उठता। वह पति की चिरौरी करती रही। बीमार माँ को देखने की हूक रह रह कर दामिनी बन काले आकाश को दमका देती। सूजी आँखों में सुबह का सूरज चमका। पति उसे भाई के घर के बाहर ही छोड़कर चला आया। घर में घुसते ही माँ के चरणों पर निढाल उसका पुक्का फट

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वचनामृत

21 जुलाई 2020
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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/06/blog-post_26.html वचनामृतक्यों न उलझूँ बेवजह भला!तुम्हारी डाँट से ,तृप्ति जो मिलती है मुझे।पता है, क्यों?माँ दिखती है,तुममें।फटकारती पिताजी को।और बुदबुदाने लगता हैमेरा बचपन,धीरे से मेरे कानों में।"ठीक ही तो कह रही है!आखिर कितना कुछसह रही है।पल पल ढह र

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दूरदर्शन पर चर्चा : सोशल साइट, साहित्य और महिलाएं

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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/03/blog-post_65.htmlमहिला, साहित्य और सोसिअल साईट https://youtu.be/9RQcAyqOAUc

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भक्त और भगवान का समाहार!

21 जुलाई 2020
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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/04/blog-post.htmlरामचरितमानस के बालकांड के छठे विश्राम में महाकवि तुलसी ने राम अवतार की पृष्ट-भूमि को गढ़ा है। भगवान शिव माँ पार्वती को राम कथा सुना रहे हैं। पृथ्वी पर घोर अनाचार फैला है। कुकर्मों की महामारी फैली है। धरती माता इन पाप कर्मों के बोझ से पीड

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‘लोकबंदी’ और ‘भौतिक-दूरी’

21 जुलाई 2020
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https://waachaal.blogspot.com/2020/05/blog-post.htmlकिसी भी क्षेत्र की भाषा उस क्षेत्र की संस्कृति की कोख से अपने शब्दों की सुगंध बटोरती है। वहाँ की लोक-परम्परा, जीवन शैली, आबोहवा, फ़सल, शाक-सब्ज़ी, फलाहार, लोकाचार, रीति-रिवाज, खान-पान, पर्व-त्योहार, नाच-गान, हँसी-मज़ाक़, हवा-पानी जैसे अगणित कारक है

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