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(ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!)

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‘लोकबंदी’ और ‘भौतिक-दूरी’

21 जुलाई 2020
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https://waachaal.blogspot.com/2020/05/blog-post.htmlकिसी भी क्षेत्र की भाषा उस क्षेत्र की संस्कृति की कोख से अपने शब्दों की सुगंध बटोरती है। वहाँ की लोक-परम्परा, जीवन शैली, आबोहवा, फ़सल, शाक-सब्ज़ी, फलाहार, लोकाचार, रीति-रिवाज, खान-पान, पर्व-त्योहार, नाच-गान, हँसी-मज़ाक़, हवा-पानी जैसे अगणित कारक है

भक्त और भगवान का समाहार!

21 जुलाई 2020
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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/04/blog-post.htmlरामचरितमानस के बालकांड के छठे विश्राम में महाकवि तुलसी ने राम अवतार की पृष्ट-भूमि को गढ़ा है। भगवान शिव माँ पार्वती को राम कथा सुना रहे हैं। पृथ्वी पर घोर अनाचार फैला है। कुकर्मों की महामारी फैली है। धरती माता इन पाप कर्मों के बोझ से पीड

दूरदर्शन पर चर्चा : सोशल साइट, साहित्य और महिलाएं

21 जुलाई 2020
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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/03/blog-post_65.htmlमहिला, साहित्य और सोसिअल साईट https://youtu.be/9RQcAyqOAUc

वचनामृत

21 जुलाई 2020
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https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/06/blog-post_26.html वचनामृतक्यों न उलझूँ बेवजह भला!तुम्हारी डाँट से ,तृप्ति जो मिलती है मुझे।पता है, क्यों?माँ दिखती है,तुममें।फटकारती पिताजी को।और बुदबुदाने लगता हैमेरा बचपन,धीरे से मेरे कानों में।"ठीक ही तो कह रही है!आखिर कितना कुछसह रही है।पल पल ढह र

आर्त्तनाद (लघुकथा)

10 जून 2020
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आर्त्तनाद (लघुकथा)रात भर धरती गीली होती रही। आसमान बीच बीच में गरज उठता। वह पति की चिरौरी करती रही। बीमार माँ को देखने की हूक रह रह कर दामिनी बन काले आकाश को दमका देती। सूजी आँखों में सुबह का सूरज चमका। पति उसे भाई के घर के बाहर ही छोड़कर चला आया। घर में घुसते ही माँ के चरणों पर निढाल उसका पुक्का फट

गांधी और चंपारण ( चंपारण सत्याग्रह शताब्दी, १० अप्रैल २०१७, के अवसर पर )

10 अप्रैल 2017
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चंपारण की पवित्र भूमि मोहनदास करमचंद गांधी की कर्म भूमि साबित हुई।दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह विदेशी धरती पर अपमान की पीड़ा और तात्कालिक परिस्थितियों से स्वत:स्फूर्त लाचार गांधी के व्यक्तित्व की आतंरिक बनावट के प्रतिकार के रूप में पनपा, जहां रूह की ताकत ने अपनी औकात को आँका। लेकिन एक सुनियोजित राष्ट्

मानस की प्रस्तावना

25 मार्च 2017
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किसी भी ग्रंथ के प्रारम्भ की पंक्तियाँ उसमें अंतर्निहित सम्भावनाओं एवं उसके उद्देश्यों को इंगित करती हैं . कोई यज्ञ सम्पन्न करने निकले पथिक के माथे पर माँ के हाथों लगा यह दही अक्षत का टीका है जो उस यज्ञ में छिपी सम्भाव्यताओं की मंगल कामना तथा उसके लक्ष्यों की प्रथम प्रतिश्रुति है . दुनिया के महानतम

एक ऋषि से साक्षात्कार (विश्व जल दिवस के अवसर पर )

22 मार्च 2017
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विश्व जल दिवस के अवसर पर एक ऋषि से साक्षात्कार(मैगसेसे पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभुषण अलंकृत और चिपको आंदोलन के प्रणेता प्रसिद्ध गांधीवादी पर्यावरणविद श्री चंडी प्रसाद भट्ट को अंतर्राष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के अवसर पर उनको समर्पित उनसे पिछले दिनो

गौरैया

20 मार्च 2017
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अंतर्राष्ट्रीय गौरैया दिवस पर :----भटक गयी है गौरैयारास्ता अपने चमन कासूने तपते लहकतेकंक्रीट के जंगल मेंआग से उसनातीधीरे से झाँकतीकिवाड़ के फाफड़ सेवातानुकुलित कक्षसहमी सतर्कन चहचहाती न फुदकतीकोठरी की छत कोनिहारती फद्गुदीअपनी आँखों मे ढ़ोतीघनी अमरायी कानन की..........टहनियों के झुंड मेलटके घोंसलेजहां च

तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!

16 मार्च 2017
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मीत मिले न मन के मानिकसपने आंसू में बह जाते हैं।जीवन के विरानेपन में,महल ख्वाब के ढह जाते हैं।टीस टीस कर दिल तपता हैभाव बने घाव ,मन में गहरे।तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!अंतरिक्ष के सूनेपन मेंचाँद अकेले सो जाता है।विरल वेदना की बदरी मेंलुक लुक छिप छिप खो जाता है।अकुलाता पूनम का सागरउठती गिरती व्याकु

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