जीवन घट में कुसुमाकर ने,
रस घोला है फिर चेतन का /
शरमायी सुरमायी कली में,
शोभे आभा नवयौवन का //
डाल डाल पर नवल राग में,
प्रत्यूष पवन का मृदु प्रकम्पन/
लतिका ललना की अठ खेल ी में,
तरु किशोर का नेह निमंत्रण //
पत्र दलों की नुपुर ध्वनि सुन,
वनिता खोले घन केश पाश /
उल्लसित पादप पुंज वसंत में,
नभ में तैरे उर उच्छवास //
मिलिन्द उन्मत्त मकरन्द मिलन मे,
मलयज बयार मदमस्त मदन में/
चतुर चितेरा चंचल चितवन में,
कसके हुक वक्ष-स्पन्दन में//
प्रणय पाग की घुली भंग,
रंजित पराग पुंकेसर रंग/
मुग्ध मदहोश सौन्दर्य सुधा,
रासे प्रकृति पुरुष संग //
पपीहे की प्यासी पुकार में,
चिर संचित अनुराग अनंत है/
सृष्टि का यह चेतन क्षण है,
अलि! झूमो आया वसंत है //