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प्रेम पीयूष

9 मार्च 2017

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पतित पावन पुण्य सलिला के प्रस्तर में

चारू चंद्र की चंचल चांदनी की चादर में

पूनम तेरी पावस स्म्रृति के सागर में

प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.


अब विरह की घोर तपस में

प्रेम पीर की शीत तमस में

बिछुडन की इस कसमकश में

प्रणय के एक एक तंतु को

बडे जतन से मै बुनता हूँ

प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.


मन के आंगन में तू आकर

चंचल नयनों से फुसलाकर

लागी लगन की धुन सुनाकर

फिर विरहा की टीस उसकाकर

प्रीत अमर की गीत जो छेड़े

मंद – मंद उसको सुनता हूँ

प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.


तू क्या जाने पीर परायी

मन मे कैसी अगन है छायी

फगुआ मे धरती क्यों बौरायी


आषाढ में बदरी क्यूं करियायी

सावन ने कैसी आग लगायी?

यक्ष को विरहण जैसे भायी

तू मेरे मन में लिपटायी

मेघदुत के फुहारों से

सजनी तुमको सिंचित करता हूँ

प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.


परिणय में प्रणय जो पाया

प्रेम सुधा तन मन लपटाया

सपनों ने श्रृंगार सजाया

राग लगन का साज सजाया

अंतरीक्ष के सूनापन में

तू अपना अपनापन भर दे

निशा निमंत्रण के मधु प्रहर में

प्रिये, तू भी अपना स्वर भर दे

प्रणीते, कल्पना के उन धुनों को मैं गुनता हूँ

प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.


प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.

------------------ विश्वमोहन



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मन के सुकोमल भावों को जीवंत करती आपकी ये रचना बहुत सुंदर है विश्व मोहन जी -- प्रेम - पीयूष के अनमोल मोतियों की माला है - निर्मल प्रेम का आह्वान है -- ---

11 मार्च 2017

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मन . दिल और आत्मा

24 फरवरी 2017
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मनुष्य की आदत है कि बिना पढ़े वह बहुत कुछ लिख जाता है, और बिना लिखे बहुत कुछ पढ़ भी जाता है. वस्तुतः जीवन को देखना जीवन को पढ़ना है और जीवन को जीना जीवन को लिखना है. जीवन को देखते हुए जीना और जीते हुए देखना ही सार्थक जीना है. मन का काम है- पढ़ना, दिल का

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आलोचना की संस्कृति

28 फरवरी 2017
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कविताओं के संग्रह के साथ कुछ साहित्य-साधकों से अलग-अलग मिलने का सुअवसर मिला. कवितायें बहुरंगी और अलग-अलग तेवरों में थी. कुछ आध्यात्मिक, कुछ मानवीय संबंधों पर , कोई मांसल श्रृँगार का चित्र खींचने वाली, कोई प्रकृति के सौन्दर्य की छवि उकेरने वाली, कोई सामाजिक विषमता और व्यवस्था के पाखण्ड पर प्रहार कर

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प्रेम-जोग

2 मार्च 2017
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आ री गोरी, चोरी चोरीमन मोर तेरे संग बसा है.राधा रंगी, श्याम की होरीब्रज में आज सतरंग नशा है.पहले मन रंग, तब तन को रंगऔर रंग ले वो झीनी चुनरिया.‘प्रेम-जोग’ से बीनी जो चुनरउसे ओढ़ फिर सजे सुंदरिया.रहे श्रृंगार चिरंतन चेतनलोचन सुख, सखी लखे चदरिया.अनहद, अनंत में पेंगे भर लेअब न लजा, आजा तु गुजरिया.लोक-ला

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वसंत

7 मार्च 2017
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जीवन घट में कुसुमाकर ने, रस घोला है फिर चेतन का /शरमायी सुरमायी कली में, शोभे आभा नवयौवन का //डाल डाल पर नवल राग में,प्रत्यूष पवन का मृदु प्रकम्पन/लतिका ललना की अठखेली में, तरु किशोर का नेह निमंत्रण //पत्र दलों की नुपुर ध्वनि सुन, वनिता खोले घन केश पाश /उल्लसित पादप पुंज वसंत मे

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प्रेम पीयूष

9 मार्च 2017
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पतित पावन पुण्य सलिला के प्रस्तर मेंचारू चंद्र की चंचल चांदनी की चादर मेंपूनम तेरी पावस स्म्रृति के सागर मेंप्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.अब विरह की घोर तपस मेंप्रेम पीर की शीत तमस मेंबिछुडन की इस कसमकश मेंप्रणय के एक एक तंतु कोबडे जतन से मै बुनता हूँप्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगत

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जुलमी फागुन! पिया न आयो.

11 मार्च 2017
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तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!

16 मार्च 2017
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मीत मिले न मन के मानिकसपने आंसू में बह जाते हैं।जीवन के विरानेपन में,महल ख्वाब के ढह जाते हैं।टीस टीस कर दिल तपता हैभाव बने घाव ,मन में गहरे।तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे!अंतरिक्ष के सूनेपन मेंचाँद अकेले सो जाता है।विरल वेदना की बदरी मेंलुक लुक छिप छिप खो जाता है।अकुलाता पूनम का सागरउठती गिरती व्याकु

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गौरैया

20 मार्च 2017
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अंतर्राष्ट्रीय गौरैया दिवस पर :----भटक गयी है गौरैयारास्ता अपने चमन कासूने तपते लहकतेकंक्रीट के जंगल मेंआग से उसनातीधीरे से झाँकतीकिवाड़ के फाफड़ सेवातानुकुलित कक्षसहमी सतर्कन चहचहाती न फुदकतीकोठरी की छत कोनिहारती फद्गुदीअपनी आँखों मे ढ़ोतीघनी अमरायी कानन की..........टहनियों के झुंड मेलटके घोंसलेजहां च

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एक ऋषि से साक्षात्कार (विश्व जल दिवस के अवसर पर )

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विश्व जल दिवस के अवसर पर एक ऋषि से साक्षात्कार(मैगसेसे पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभुषण अलंकृत और चिपको आंदोलन के प्रणेता प्रसिद्ध गांधीवादी पर्यावरणविद श्री चंडी प्रसाद भट्ट को अंतर्राष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के अवसर पर उनको समर्पित उनसे पिछले दिनो

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गांधी और चंपारण ( चंपारण सत्याग्रह शताब्दी, १० अप्रैल २०१७, के अवसर पर )

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दूरदर्शन पर चर्चा : सोशल साइट, साहित्य और महिलाएं

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