अरविन्द राजपूत
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सोचता हूँ क्या दे पाउँगा जो मैंने पाया है इस देश से क्या मैं कभी चुका पाउँगा जो मैंने पाया है इस देश से || फेलाना है मुझे देश सम्मान की भावना शायद इस तरह नज़र मिला पाऊं इस देश से || खोया है हर नागरीक जाने किस होड़ मैं दिलाना है याद उसे इस देश की || मौका है गडतंत्र दिवस मिल के सुंदरता बढ़ाना है इस देश की ||