अश्क कायमी
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गजल
* * ग़ज़ल * *- - - - - - - - -कैसे कह दूँ वो मिरा अपना नहीँ ।जो ख़यालोँ से कभी निकलानहीँ ।।- - - - - - - - -दिल बिरह की आग मेँ कोयला हुआ ,दर्द अन्तर- दाह मेँ जलता नहीँ ।।- - - - - - - - -आस हर पूरी हुईसंतृप्त हूँ , ज़िन्दगी से अब कोई शिकवानहीँ ।।- - - - - - - - -फूल सा कोमल बदन रँग संदली ,झील सी आँखेँकभ
गजल
* ~ ग़ज़ल ~ *- - - - - - - - -पतझर मेँ गुलशन महका दे ।सौरभ को पतझार बनादे ।।- - - - - - - - -शशि- मुख से घूँघट सरकादे ।इन आँखोँ की प्यास बुझादे ।।- - - - - - - - -अवगुण्ठन मेँ पिघलेँ फिर से ,पंख लगा कर रात उड़ा दे ।।- - - - - - - - -उसे पाँखरी से मत छूना ,तन पर गहरा घाव लगा दे ।।- - - - - - - - -छीज गय
गजल
** ग़ज़ल **- - - - - - - - -गूँजती जो विश्व मेँ उसहँसी की बात कर ।जन्मदा जो दर्द की उसखुशी की बात कर ।।- - - - - - - - -दिव्य रूप रश्मियाँ चक्षुओँ से पी गया ,कामिनी के पार्श्व मेँ चाँदनीकी बात कर ।।- - - - - - - - -आ कि फिर निकुञ्ज मेँ तू सुगन्ध मेँ नहा , जोअभी खिलीनहीँ उस कलीकी बात कर ।।- - - - - - -
गजल
* * ग़ज़ल * *- - - - - - - - -वक़्त की भट्टी मेँ हमतपतेगये ।जिस तरह ढाले गये ढलतेगये ।।- - - - - - - - -हम प्रभंजन के निशाने पर रहे ,दीप थे बुझ कर जले जलतेगये ।।- - - - - - - - -उम्र गुज़री एक ही आवासमेँ ,एक दूजे को मगर छलतेगये ।।- - - - - - - - -हर क़दम पर प्रेम ने धोका दिया ,आस्तीँ मेँ साँप कुछ पलतेगये
गजल
** ग़ज़ल **- - - - - - - - -रूप जब मुस्कराया ग़ज़ल हो गयी ।चाँद बाँहोँ मेँ आया ग़ज़ल हो गयी ।।- - - - - - - - -था क़यामत नज़र से नज़र का मिलन ,दिल न क़ाबू मेँ आया ग़ज़ल हो गयी ।।- - - - - - - - -जुस्तजू जिनकी थी वो नज़रआ गये ,ज़ख़्मे जाँ कसमसाया ग़ज़ल हो गयी ।।- - - - - - - - -हर कली चट चटा कर खिलीबाग़ मेँ ,गीत भौँरो
गजल
* * ग़ज़ल * *- - - - - - - - -राज़े ग़मे हयात नज़र की ज़ुबान मेँ ।करते रहेँ क़लाम जिगर की ज़ुबान मेँ ।। -- - - - - - - -लिल्लाह हमसे तर्के- तअल्लुक़ नकीजिए ,इस दिल के तार छेड़िए घर की ज़ुबान मेँ ।।- - - - - - - - -देखे हैँ राहे इश्क़ मेँ बिस्मिल हज़ारहा ,रक्खे हरेक आदमी पत्थर ज़ुबान मेँ ।।- - - - - - - - -करता है
गजल
ख़ाक हर मरघट की छानीजायगी ।जिस्म पर भस्मी रमाईजायगी ।।दोस्तोँ की बात मानीजायगी ।अब कुटी संगम पे छाईजायगी ।।फूँक देँगी गुलसिताँ जब बिजलियाँ ,दास्ताँ आतिश पे ढालीजायगी ।।जब बहारोँ से मिलेगीज़िन्दगी ,आपकी मरज़ीभी पूछीजायगी ।।उर्वशी कोई अगर फिर भागयी ,ज़िन्दगी भरकी कमाई जायगी ।।मन करो मैदा मिलो भगवान से ,बा
गजल
* * ग़ज़ल * * - - - - - - - - -बेरुख़ी दिखाना छोड़ दे ।यूँ मुझे सताना छोड़ दे ।।- - - - - - - - -दे सुकूते दारो रसन यूँ ,दर्दे दिल जगाना छोड़दे ।।- - - - - - - - -तर्क गर तअल्लुक़ कर लिया ,ख़्वाब बन के आना छोड़ दे ।।- - - - - - - - -कितने इम्तिहाँ लेगा अभी ,अब तो आज़माना छोड़ दे ।।- - - - - - - - -जल गया परिन्
गजल
* * ग़ज़ल * *- - - - - - - - -लब नज़र ज़ुल्फ़ेँ तबस्सुम देखता था ।अनकहा फिर भी ग़ज़ल मेँ रह गयाथा ।।उम्र भर उतरी नहीँजिसकी ख़ुमारी ,बाख़ुदा वो प्यार का पहला नशा था ।।गर्म साँसोँ की छुअन चेहरे पेबिखरी ,दरमियाँ फिर भी सदी काफ़ासला था ।।मर चुका वो ज़माने की नज़र मेँ ,महफ़िलोँ मेँ जो कभी आया गया था ।।रह गया दामाने ज
दोहे
* * दोहे * *- - - - - - - - -पैदा होते ही लगे ,दुनिया भर के रोग ।आजीवन भोगा किए ,कृत कर्मो का भोग ।।¤लगे उठाने उँगलियाँ ,बस्ती के सौ लोग ।अक्षर अब जंगल चलो ,अच्छा बना सुयोग ।।¤जब से सब कुछ छोड़ कर , दुनिया मेँ अनिकेत ।तब से निज विस्तार के ,अन्तस मेँ संकेत ।।¤जब तक मन संतप्त है ,तिल भर आशा शेष ।जीवन म