तू वही है वही है नहीं है जिसकी चाहत थी सदियों से हर कौम की तू वही है, वही है,वही है वही... तू ही रूहों का मालिक पिता और गुरु, पूरा होता तुमसे सफर ये, खत्म और शुरू, परवरिश दे रही तेरी मौजूदगी तू वही है वही है वही है वही.... तेरा आगाज, अंजाम, इंसाफ है, गलतियां करता सबकी, तू Tही माफ है, तेरी चुप्प,तेरी रहमत,तेरी सादगी. तू वही है वही है वही है वही... तेरीआयत, इनायत, फरमान है पूरा होता सफर अब ये पैगाम है, कब्र दाखिल रूहों में है छाई खुशी, तू वही है वही है वही है वही तू वही है वही है वही है वही हम किसे ढूंढ रहे हैं कौन है हमारा अपना हम कौन हैं हम कहां से आए हैं और हमें कहां जाना है हाय प्रत्येक मनुष्य की यही खोज है वह उस परमात्मा खुदा अल्लाह गॉड को दर-दर भटक भटक कर ढूंढ रहा है लेकिन वह कहीं नहीं मिलता उसे पाने के लिए हमें सबसे पहले अपने अंतर में झांकना होगा अपनी आत्मा को अपनी रूह को पहचानना होगा । तभी हम रूहों के मालिक रूहों के पिता को ढूंढ पाएंगे उससे मिल पाएंगे इस पुस्तक में मैंने अपने अंदर की खोज को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है आज पृथ्वी हाहाकार कर रही है और हर प्राणी ईश्वर को पुकारता है। हे प्रभु आओ धरती को पाप से बचाओ विश्व में शांति हो सुख हो मंगल हो। सब का कल्याण करो । ईश्वर परमात्मा खुदा से मिलने के लिए सबसे पहले हमें खुद से अपनी आत्मा से मिलना होगा जब तक हमें खुद की पहचान नहीं है तो हम परमात्मा की पहचान कैसे कर सकते हैं तो आइए थोड़ा रूहानी हो जाइए कमलेश अरोड़ा के साथ......
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