✳️ वो घर बहुत हसीन है✳️थोड़ा रूहानी हो जाए..
✳️✳️ ✳️✳️ ✳️✳️
✳️आज मैं एक गीत सुन रही थी। बोल थे:
"ये तेरा घर ये मेरा घर,
किसी को देखना हो अगर,
तो पहले आके मांग ले, मेरी नजर,
तेरी नजर....
कितना सुंदर गीत है ना, हालांकि यह गीत लौकिक है, फिल्मी है। लेकिन गीत तो प्यार के नजरिए का है। देखने के नजरिये का है। अब प्यार किसी को इंसान से होता है या परमात्मा, ईश्वर,अल्लाह, खुदा दोस्त से होता है। तो बस सोच बदल जाती है। नजरिया बदल जाता है। प्रीतम भिंप्यार लगता है उसका घर भी प्यार लगता है। प्रीतम की हर व्हिज ही प्यारी लगती है । चाहे वह कितनी छोटी या साधारण जो। गीत का अर्थ अलग हो जाता है।
✳️जब मैंने यह गीत सुना तब मैं योग कर रही थी, और ईश्वर को और उसके घर परमधाम, शान्तिधाम या कहिए निर्वाणधाम को याद कर उसका अनुभव कर रही थी और कही बजट हुआ ये गीत मेरे कानों में पड़ा। मुझे बड़ा अच्छा सा अनुभव हुआ। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट थी....
ये तेरा घर ये मेरा घर ,
किसी को देखना हो अगर......
तो पहले आके मांग ले तेरी नजर, मेरी नजर....
✳️आइए अब इसी को हम इसे रूहानी रंग और ढंग से सोचें...
परमात्मा से जब हमारी लगन लग जाती है, हमे उससे से प्रेम हो जाता है, और हम उसकी याद में बैठे हो, हमारा ध्यान या कनेक्शन या कहे योग परमात्मा से लगा हो, तो हम परमात्मा प्रीतम से रूह रिहान करते हैं, मीठी मीठी प्यारी प्यारी बाटे करते हैं, उसकी आँखों मे झांककर देखते हैं तो दुनिया फीकी लगती है। हमे उसे बहुत ही करीब महसूस करते हैं। उसके सानिध्य में होते हैं। उदक अहसास हमे होता है। तो हम उसे और उसके घर कोअनुभव करते हैं।
किन्तु दुनयावी लोग इसे मानेंगे नहीं की इस होता है। लेकिन सच में होता है, अपना प्रीतम का नाता जोड़कर देखें। वैसे तो उससे कोई भी रिश्ता जोड़ सकते हैं, माता-पिता, भाई- बहन, बंधु-सखा का। लेकिन प्रीतम के रिश्ते का आनंद अलग ही होता है, जैसे राधा का ,मीरा का।
✳️ तब हमें समझ आता है , कि मेरा घर कौन सा है, यानी मुझ आत्मा का, या मेरी रूह का घर कौन सा है । मेरे पिता परमात्मा का घर कौन सा है। मैं खान से आई हुँ। क्यों मेरा मन उसकी और खिंचता है, क्यो मुझे उसकी तलाश रहती है। क्यों मेरे अंदर एक प्यास है, क्यों मेरा जीवन मुझे सदा अधूरा लगता है। क्यो सारे इंसानी रिश्ते पास होने के बाद बाद भी मुझे तृप्ति नही होती। क्योंकि असली घर की खीच पड़ती है। प्रीतम का घर सदा प्यार लगता है। मायके में कितनी सुख सुविधा हो तो भी प्रीतम और प्रीतम का घर प्यार लगता है। जब कोई कहता भी है कि ऐसा क्या है वहां तो तब कहते हैं तुम नहीं समझोगे, मेरी नजर से देखो...
✳️वही तो मेरा घर है। एक दिन मुझे वही जाना है। तो मेरी जो रूहानी दौड़ परमात्मा के घर परमधाम की ओर यानि मेरी आत्मा के, मेरी रूह के घर की ओर थी ।
मैं मुस्कुरा रही थी मैं अपने प्रीतम परमात्मा, अपने पिया अपने खुदा दोस्त से रूह रिहान कर रही थी....
"ये तेरा घर, ये मेरा घर,
किसी को देखना जो अगर,
तो पहले आके मांग ले मेंरी नजर.....
मेरी नजर यानी परमात्मा प्यार की नजर, ज्ञान के तीसरे नेत्र से ही उसे और उसके घर को देखा जा सकता है।
✳️तो मुझे उसका घर दिखाई देता है। क्योंकि आखिर तो एक दिन वहीं जाना है। वही तो हमारा असली घर है।अगर किसी को वह घर को देखना हो, तो पहले आत्मा के तीसरे नेत्र को खोलना होगा,ज्ञान चक्षु को खोलना होगा। अगर किसी को ही यह रूहानी नजर नजर मिल जाती है, तो वह महसूस कर पाता है। उस घर को देख पाता है। किसी को भी इस घर को देखना हो तो ज्ञान चक्षु को योग से खोलना होगा। जो कि हमारी आत्मा की आंख है, जिसे तीसरी आंख, तीसरा नेत्र भी कहते हैं। पहले हमें परमात्मा से लव होगा, प्यार होगा,उसे अनुभव करना होगा, एहसास करना होगा। तभी हमारी नजर परमात्मा के घर को परमधाम को देख पाएगी।
✳️इसके लिये सुबह अमृतवेला में परमात्मा के छत्रछाया में बैठकर परमात्मा से रूह रिहान करें। तो उस घर को देख पाएंगे। महसूस कर पाएंगे। इस घर को देखने के लिए वास्तव में रूहानी नजर ही तो चाहिए। फिर हम हम आंख बंद करके या खुली आंख से भी उसे देख सकते हैं। जैसे कोई प्रेमी या प्रेमिका अपने आशिक या माशूक को खुली आँखों से भी देख सकते है और बन्द आंखों से भी देखते है। ऑंखे खुली हो या बन्द वो नजर आता है।
✳️कोई भी गीत आप भी कभी आंख बंद करके सुने, और परमात्मा प्रीतम के प्यार में सुने तो हर गीत को रूहानी बन जाएगा और आनन्द का अनुभव होगा। परमात्मा के प्यार से जुड़ जाए। बस आनंद ही आनन्द अनुभव कर पाएंगे।
✳️ कमलेश अरोड़ा✳️