जीवन के बागों की कलियाँ, तेरे आने से मुरझा जाएगी, और वृंतो पर खिल रहे कुसुम, तेरे छूने से झड़ जाएगी। सजा रहे यह बाग मनोहर, गूँजे नित भौरों का गाना, मेरा मन भी पवन संग झूमे, नहीं चाहता मैं ऋतुराज क
जीवन के बागों की कलियाँ, तेरे आने से मुरझा जाएगी, और वृंतो पर खिल रहे कुसुम, तेरे छूने से झड़ जाएगी। सजा रहे यह बाग मनोहर, गूँजे नित भौरों का गाना, मेरा मन भी पवन संग झूमे, नहीं चाहता मैं ऋतुर
कुलपति साहब तो क्या उस छात्रा को संस्थान की अस्मिता के लिए अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?बीएचयू के मुखिया को ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी ?सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ता मनुष्य पशुओं से अधिक पाशविक व्यवहार पर उतर आया है साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे बीएचयू कैम्पस में हॉस