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बुद्ध पूर्णिमा

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मस्तिष्क में उपजते आभा सम, वीचारों को छिन्न करती हो, प्रेम से बंधे सुंदर बन्धन को, तुम आकर भिन्न करती हो। तू कुशाग्र बुद्धि की अवरोधक, हर दुःख का तुम सुंदर सपना, तेरे ही आ जाने से जग में, खोती चि

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जीवन के बागों की कलियाँ, तेरे आने से मुरझा जाएगी, और वृंतो पर खिल रहे कुसुम, तेरे छूने से झड़ जाएगी। सजा रहे यह बाग मनोहर, गूँजे नित भौरों का गाना, मेरा मन भी पवन संग झूमे, नहीं चाहता मैं ऋतुराज क

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जीवन के बागों की कलियाँ, तेरे आने से मुरझा जाएगी, और वृंतो पर खिल रहे कुसुम, तेरे छूने से झड़ जाएगी। सजा रहे यह बाग मनोहर, गूँजे नित भौरों का गाना, मेरा मन भी पवन संग झूमे, नहीं चाहता मैं ऋतुर

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प्रातः स्मरणेय शिक्षक वृंद के चरणों में कोटिशः नमन। गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वै

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गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वैसे तो इस अखिल ब्रम्हांड के सबसे बड़े गुरु शिव हैं। हर

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~~बनारस~~ घाट जग चुकी है। एक जादू सा प्रतीत होता है, अंधकार को चीरता हुआ सूरज, एक नवीन ऊर्जा और जीवन को लेकर  उदयाचल की ओर से आगमन करता है। गंगा की लहरें किनारों से टकराकर, पुनः पुनः परावर्तित

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हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो हो यज्ञ के पुरोहित तुम हो हवि साधन दान के धन हो देवों के आवाहन तुम हो यज्ञ फल रत्न धारक भी हो हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो ज्ञानार्जन करते वो ऋषि हैं ज्ञान दान

माया देवी-शुद्धोधन के घर,जन्मा गौतम एक बालक,सम्यक सत्य की खोज की खातिर,सिद्धार्थ बन गए बौद्ध धर्म के चालक।लुम्बनी में आकार था पाया,बोधगया में हो गए तप में तल्लीन,सारनाथ में उपदेश दिए तब,कुशीनगर में हो

वे बुद्ध थे।सत्य अहिंसा का सन्देश दे गए वे बुद्ध थे।जो करूणा , मैत्री ,दया का संदेश दे गये बुद्ध थे।जो सत्य का हमें मार्ग दिखा गये वे बुद्ध थे।जो वैज्ञानिकता का ज्ञान करा गये बुद्ध थे।।सम्यक ज्ञान, सम

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आओ मिलकर बगिया महकाए। नव अंकुर नव फूल खिलाए।। आपसी रंज भेदभाव मिटाए। भगवान बुद्ध के विचार अपनाए।। उन मोती को जीवन में पिरोए। जिन मोती से खुशहाली पाए।। जरा होश का दिय

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