करीब आधे घंटे की दूरी तय कर साक्षी स्टेशन पहुंची....। कैब से उतरकर उसने एक कुली को आवाज लगाई...।
प्लेटफार्म नंबर छह पर ले जाना हैं भईया.... कितना लोगे..!
150 ₹ लगेगा मैडम....।
150.....क्या भईया..... इतना तो घर से यहाँ तक का रिक्शा का किराया भी नहीं लगता..।
अरे मैडम...इन कैब वालों को बिना मोलभाव के पैसे दे देंगे... लेकिन हम जैसे जरुरत मंद लोगों को नहीं...।
पैसे तो दूंगी ही भईया लेकिन आप वाजिब तो बताओ..। सिर्फ एक प्लेटफार्म की सीढ़ी ही तो चढ़नी हैं यहाँ से...।
140 दे देना अभी मैडम....इससे कम नहीं होगा...।
नहीं रहने दो भईया...। आप लोग बच्चे देखकर फायदा उठाते हैं...। सिर्फ तीन नग ही तो हैं...। छोड़िये आप... मैं खुद ले लूंगी... ।
अरे मैडम क्यूँ जिद्द कर रहीं हैं...। चलिए 130.....में फाइनल किजिए...। आगे आपकी मर्जी...।
नहीं भईया आप रहने दिजिए....। मैं देख लूंगी....।
साक्षी ने एक व्हील वाली अटैची के ऊपर बैग रखा...और दूसरी बैग जो बिना व्हील का था.... उसे उठा लिया...। दोनों बच्चों को अपने से आगे किया ओर धीरे धीरे प्लेटफार्म के भीतर प्रवेश करने लगी....।
वो कुछ दूरी तक ही गई होगी की वो कुली वापस आया ओर बोला.... लाओ मैडम सामान हमें दो आप बच्चों को संभालो....। आपका जो दिल करें दे दिजिएगा....।
कुली ने सामान उठा लिया... और प्लेटफार्म छह की तरफ़ चलने लगा..। साक्षी उसके पीछे पीछे अपने दोनों बच्चों को लेकर चल दी...।
करीब सात आठ मिनट में ही वो अपनी बोगी S-8 के सामने खड़ी थी...।
कुली :- सीट नंबर क्या हैं मैडम..!
साक्षी:- 25 और 26...। लेकिन आप रहने दिजिए मैं ले लूंगी यहाँ से...।
कुली :- अरे कोई नहीं मैडम...आइये भीतर... मैं रख देता हूँ....।
साक्षी पहले से ही खड़ी अपनी ट्रैन में चढ़ी और फाइनली अपनी सीट पर पहुंची...।
कुली ने सामान सही से सीट के नीचे रखा...।
साक्षी ने अपने पर्स से 150 ₹ निकाल कर कुली को दिए...।
कुली मुस्कुराया और बोला:- क्या मैडम.... इतना किचकिच किया ओर अभी....।
कुली ने 100 ₹ लिए और 50 ₹ वापस करते हुए कहा... :- मेहनत का ले रहा हूँ मैडम...इतने में घर पर कुछ तो खाने को ले जाऊंगा..।
कहते हुवे वो ट्रेन से नीचे उतर गया...।
साक्षी कुछ देर तक तो उसकी इमानदारी पर विचार करतीं रहीं...। अचानक से उसने अपने पर्स में से एक पेन ओर छोटी डायरी निकाली ओर उस पर कुछ लिखने लगी..। तभी उसकी छह साल की बेटी बोली :- मम्मी अब इस पर भी...।
साक्षी मुस्कुराई ओर पेन कागज पर्स में रखते हुवे बोली :- हां बेटा..।
साक्षी आज पहली बार इस तरह अकेले सफर कर रहीं थीं...। वो खुश तो बहुत थीं.. पर सच तो ये हैं की वो भीतर से बहुत डरी हुई भी थीं...। लंबा सफ़र... दो बच्चे... अंजान लोग...उपर से रात होने की टेंशन...।
लेकिन वो हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करतीं थीं...। अपना डर या परेशानी वो कभी किसी के साथ साझा नहीं करतीं थीं...। अपनी सारी बातें साझा करने के लिए साक्षी एक अलग ही रास्ता अपनाती थीं...। जिसके बारे में सिर्फ उसकी बेटी रुचिता ही जानती थीं...।
उसका चार साल का बेटा मृदंग .... उसके पति अंकित... सास ससुर.... सभी इस बात से अंजान थे...।
साक्षी के जीवन का ये सफ़र कैसे व्यतीत होता हैं और क्या था जो वो सबसे छिपा कर बैठी थीं....जानते हैं अगले भाग में...।
जय श्री राम...।