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हाऊस वाईफ़....(अंतिम भाग)

5 अगस्त 2022

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कुछ देर बाद ही ट्रेन अपने गंतव्य से रवाना हुई...। साक्षी और उसके दोनों बच्चे अभी नीचे वाली सीट पर ही बैठे थे...। ट्रेन के चलते ही साक्षी मन ही मन थोड़ी विचलित सी होने लगी.... क्योंकि उस बोगी में अब भीड़ भी बढ़ने लगी थीं..। सामान रखने की जद्दोजहद और सीट ढुंढ़ने की मगजमारी लोगों में साफ़ दिख रहीं थीं...। 
मृदंग इन सब से बेखबर खिड़की पर सिर टिकाए बाहर के नजारे देखने में व्यस्त था...। ट्रेन भी अब अपनी रफ्तार पकड़ रहीं थीं...। 
साक्षी भीड़ को देखकर थोड़ी डरी हुई तो थीं...। पहली बार इस तरह सफ़र करना.... उस पर पतिदेव की हिदायतें.... सासु जी के ताने.... रह रहकर उसके जहन में घुम रहें थें...। शाम ढलने को थीं...और ट्रेन अपने पहले स्टेशन पर रूकी...। करीब पच्चीस मिनट की दूरी के बाद....। स्टेशन पर रुकते ही... मृदंग ने समोसे लेने की जिद्द की...। साक्षी ने ट्रेन में ही आए एक शख्स से दो समोसे लिए ओर दोनों बच्चों को दिए...। दोनों बच्चे नाश्ते के साथ साथ स्टेशन की चहलकदमी देखने में व्यस्त थे... तभी साक्षी को एक बार फिर से अंकित का फोन आया...। ये अब तक अंकित का तीसरा फोन था...। 

पहुँच गए ना पहले स्टेशन पर....! लेकिन सुन कहीं उतर कर मत जाना...। जो भी लेना हो अंदर आने वाले लोगों से ही ले लेना... मैं तो कहता हूँ... कुछ ना ही लो तो अच्छा हैं...। आजकल लोगों का बिल्कुल भरोसा नहीं हैं...। अकेली औरत देखकर ना जाने क्या क्या प्लान करते हैं...और अगर लेना ही हो तो बोगी में जब बहुत से लोग ले फिर ही लेना समझी...। ओर सुन अभी मैं मिटिंग में जा रहा हूँ... देर रात तक चलेगी...। अभी फोन नहीं कर पाऊंगा...। जैसे ही मिटिंग खत्म होगी फोन करुंगा...। फोन को अपने पास ही रखना....। बच्चों का ध्यान रखना...। चल रखता हूँ...। 


इतना कहकर बिना कुछ सुनें अंकित ने फोन रखा दिया...। एक हैलो के अलावा साक्षी को कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया गया...। 

फोन रखकर साक्षी मन ही मन सोचने लगी...। एक तो मैं पहले ही घबराई हुई हूँ....ऊपर से बार बार ये ऐसे फोन करके मेरी टेंशन ओर बढ़ा देते हैं....। 8 साल हो गए.... लेकिन आज भी दो लब्ज़ प्यार के सुनने के लिए तड़प रहीं हूँ...। ना जाने कभी ये मेरी फिलिंग्स समझेंगे भी या नहीं..। हर बार सोचती हूँ की इस बार तो बोलेंगे... अब तो बोलेंगे... लेकिन नहीं... आफिस... से घर... घर से आफिस...एक अलग ही दुनिया बसा ली हैं इन्होंने....। कभी तो वक्त निकालकर चंद घड़ियां साथ में बैठे... कुछ मेरी सुने... कुछ अपनी सुनाए...। 
साक्षी अपने ही ख्यालों में खोई हुई थीं की तभी एक आवाज ने उसके ध्यान को भंग किया..। 
सामने वाली सीट पर एक औरत पीठ करके खड़ी हुई थीं...। 
ब्लैक कलर की जींस.... रेड कलर का घुटनों तक लांग टॉप... कंधे पर साइड बैग.. हाथ में इंपोर्टेड घड़ी और स्मार्ट फोन... दुसरे हाथ में एक अटैची व्हील वाली... । 

ओ..... हैलो.... भाईसाहब....एक्सक्यूज मी.... दिस इज माय सीट... ये मेरी सीट हैं.... 28....उठिए....। 

अरे क्या हुआ मैडम.... सीट ही तो हैं... आप मेरी सीट पर चले जाइये.... वो पीछे वाली... 34 नंबर....। 

पर मैं आपकी सीट पर क्यूँ जाऊँ....। ओर जब आपकी खुद की सीट कंफर्म हैं तो आप यहाँ मेरी सीट पर क्या कर रहें हैं..... अपनी सीट पर जाकर आराम फरमाइये ना...। 


अरे वो मेरे पैर में थोड़ी तकलीफ हैं.... मैं ऊपर नहीं चढ़ सकता... तुम वहा चली जाओ...। कुछ घंटों में तो मैं ऊतर ही जाऊंगा...। 

माफ़ कीजिये भाईसाहब.... लेकिन मैं अपनी सीट पर ही बैठुंगी...। आप प्लीज अपनी जगह जाईये... । 

अरे पर मैंने अपना सामान यहाँ रख दिया हैं.... थोड़ा एडजस्ट कर लो मैडम...। 

आइ एम सारी.... अपना सामान लिजिए और अपने बर्थ पर जाइये...। 

एक अन्य यात्री :- अरे मैडम क्यूँ जिद्द कर रहीं हो.... एक ही तो बोगी हैं ना.... थोड़ा एडजस्ट कर लो.... ये पीछे वाली सीट ही तो हैं.... कौनसा दूर जाना हैं आपको...! 

औरत :- देखिए.... ये मेरा और इनका मामला हैं.... इसलिए आप बीच में ना ही बोले तो बेहतर होगा...। फिर भी अगर आपको इन पर इतनी ही दया आ रहीं हैं तो आप ही मदद कर दिजिए इनकी सामान निकालने में....। 

वो यात्री उस औरत की बात सुनकर खामोश हो गया...। 
साक्षी के साथ साथ उस डिब्बे में बैठे सभी यात्री अब उस बहस को देख रहे थें....। 

हद करती हो मैडम....। 

हद में कर रहीं हूँ या आप... मैं अच्छे से समझतीं हूँ आप जैसे लोगो के ये चोचले....। तकलीफ हैं तो टीसी से बात करीये... वो अरेंज करवा देंगे आपकी सीट....इस तरह किसी ओर की सीट पर बैठना तो सही नहीं हैं ना......! 

ठीक हैं मैडम....अपना ज्ञान अपने पास रखो... जा रहा हूँ....। 

वो शख्स गुस्से से अपना सामान निकालता हुआ अपनी सीट पर चला गया....। 
कुछ मिनटों में ही ट्रेन फिर से चल पड़ी...। 

साक्षी ने इसी बीच मिडिल सीट खोल कर अपने बच्चों को ऊपर बिठा कर उन्हें खाना दिया...। उस औरत ने भी अपना सामान अच्छे से सेट किया ओर अपनी सीट पर बैठ गई....। साक्षी और उस औरत ने अभी तक एक दूसरे को देखा नहीं था...। साक्षी अपने बच्चों की सीट के पास खड़े होकर उनको खाना खिलाने में व्यस्त थीं...। 
कुछ देर बाद साक्षी के बच्चे ऊपर की सीट पर बैठकर एक किताब पढ़ने में मशगूल हो गए....। 
साक्षी अब अपनी सीट पर बैठकर बाहर खिड़की से नजारे देखने में व्यस्त हो गई...। 
साक्षी भी अपने बैग में से एक किताब निकाल कर पढ़ने लगी...। तभी सामने की सीट पर बैठी औरत बोली :- साक्षी.... तुम.... साक्षी हो ना..!! 
आवाज सुनकर साक्षी ने भी सामने की तरफ़ देखा....ओर आश्चर्य से बोली :- विशु..... तुम....!! 

विशाखा :- कैसी हो यार.... तुम तो कालेज के बाद घुम ही हो गई...। आज इतने सालों बाद ऐसे मिली हो...। बहुत बदलाव आ गया है तुम में यार...। 

लेकिन तुम बिल्कुल नहीं बदली हो विशु.... आज भी वहीं तेवर हैं तेरे...। 

हाहाहा... वो तो हैं....ओर बता क्या चल रहा हैं तेरी लाइफ़ में..! 

कुछ नहीं.... बस कालेज के तुरंत बाद मेरी शादी हो गई... फिर बच्चे... घर परिवार... जिम्मेदारी... । 

अकेली रहतीं हो ना...!! 

नहीं.... मेरे सास ससुर भी हैं ना..। तुम बताओ तुम कैसी हो....! अंकल आंटी कैसे हैं..! 

मम्मी पापा बिल्कुल मस्त हैं.... मेरी तो अभी दो साल पहले ही शादी हुई हैं... वो भी लव मैरिज...। मैं ओर स्वपनिल एक ही कंपनी में काम करते हैं..। 

और बच्चे..? 

बच्चे.... नो वे.... अभी उस बारे में सोचा ही नहीं हैं...। पहले कैरियर... पैसा.. फिर बच्चे....। वैसे ये बता हमारे जीजू क्या करते हैं..! 

ये भी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं..। 

ओके.... फिर तुम सबका खर्च चल जाता हैं..!! 

हाँ... यार बस चल जाता हैं....। कभी कभी थोड़ी तंगी होतीं हैं पर मैनेज कर लेते हैं...। 

साक्षी... बुरा ना माने तो एक बात बोलूं.... यार तुम इतनी इंटेलिजेंट है... कुछ जॉब क्यूँ नहीं कर लेती...। 

मैनें एक दो बार शुरुआत में कहा तो था इनको पर इनके परिवार में ये सब की परमिशन नही हैं.... और फिर मम्मी से घर का काम भी नहीं होता.... बच्चों की भी जिम्मेदारी हैं तो.... 

वो सब तो ठीक हैं लेकिन.... एक हाऊस वाईफ़ का कोई अस्तित्व नहीं होता....। पढ़ लिख कर जब चुला चौकी ही करनी हैं तो फिर इतना दिमाग और पैसा क्यूँ वेस्ट करना....!! मैं और स्वपनिल तो मिलकर महीने के चालिस पचास हजार कमा लेते हैं....। अकेले रहते हैं....। खुद का फ्लैट हैं...। गाड़ी हैं....। जिंदगी के पूरे मजे भी लेते हैं....। हर साल आऊट आफ स्टेशन जातें हैं.... अलग अलग जगहों पर घुमने....। सप्ताह में एक बार होटल भी जातें हैं...। घर के काम काज के लिए बाईं रखी हुई हैं.... लाइफ़ इज फूल आफ फन...। 

तुम बहुत लकी हो डियर....। 

लेकिन तुम उतनी ही बेवकूफ हो....। अरे कुछ तो कर ही सकतीं हो...। आजकल तो घर बैठे हुवे भी कितने काम होतें हैं...। 


अच्छा चल छोड़ इन सब बातों को..ओर बता कहाँ कहाँ घुमने गई हैं तु..? 


काफी देर से खामोश बैठी साक्षी की बेटी उन दोनों की हो रहीं बातचीत को सुनते हुवे अचानक से बोलीं :- हैलो आंटी.... मैं कबसे सुन रहीं हूँ.... आप मम्मी को बार बार काम के लिए बोले जा रहीं हैं... आपको शायद ये जानकार ताजुब होगा की मेरी मम्मी एक लेखक हैं....। ये जो किताब मेरे हाथों में हैं ना.... ये मेरी मम्मी की लिखी हुई ही हैं....। 


विशाखा को ये सुनकर थोड़ा गुस्सा आया....वो साक्षी की बेटी के इस तरह बोलने पर थोड़ी नाराज़ हुई....वो अब साक्षी का मजाक बनाते हुए :- ओहह.... तो तुम लेखक हो....। वैसे एक बात पूछुं लेखिका महोदय.... कितना कमा लेती हो तुम.... ये बच्चों की किताबें लिखकर...?? 

मैं कमाने के लिए नहीं लिखती विशाखा....। तु भी जानती हैं मुझे लिखने का शौक था.... बस उस शौक को पूरा करने के लिए लिखती हूँ.... । हर काम में पैसे को ही अहमियत देना सही नहीं हैं... कुछ काम ऐसे भी होतें हैं जिनसे दिल को सुकून मिलता हो...। 

हम्म..... बात तो वही आ गई ना फिर से.... इतना सिर खपाकर लिखने से मिलता तो कुछ नहीं हैं ना तुम्हें....। सच में ये तो महा बेवकूफो वाला ही काम हैं...। 


हैलो.... आंटी.... 


बेटा.... आप किताब में ध्यान दो.... प्लीज...। 

लेकिन मम्मी.... आप इनको बताते क्यूँ नहीं..? 

प्लीज बेटा... आप ध्यान मत दो... आपने प्रोमिस किया हैं ना मुझसे...। 

ओके मम्मी... सॉरी...। 


क्या नही बता रहीं तुम साक्षी....? साफ़ साफ़ क्यूँ नहीं मान लेती की सच में तुम एक बेवकूफ हो....। कालेज में टाप करने वाली लड़की आज घर की चार दिवारों में बच्चों की कहानियाँ लिख रहीं हैं....। हाहाहा..... सच में साक्षी.... यू आर डंब.....। अपने पति अपने घर परिवार की तुम कोई मदद कर ही नहीं सकतीं....। ये ही सच हैं.... इसे तुम चाहकर भी झूठला नहीं सकतीं....। 
 

वैसे तुम सही ही हो की मैं कुछ नहीं करतीं अपने पति की आर्थिक स्थिति में मदद करने के लिए..। लेकिन हां मैं उनकी आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए घर का सारा काम खुद से करतीं हूँ...। कोई बाईं नहीं रखतीं... इससे ज्यादा नहीं तो महीने के पन्द्रह बीस हजार तो उनके बच ही जातें होंगे...। बिना वजह कहीं बाहर ज्यादा घुमने भी नहीं जाती.... ना ही कोई आऊट आफ स्टेशन कही जाने का कभी प्लान करतीं हूँ...। शायद कुछ बचत इससे भी हो ही जाती हैं...। बिना त्यौहार कभी नये कपड़े या ब्रांडेड कपड़ों की जिद्द नहीं करतीं...। ना कभी बाहर होटल वगैरह में खाने जाती हूँ...। ज्यादा नहीं तो कुछ बचत तो इससे भी होतीं ही होगी...। मेकअप तो मैं वैसे भी नहीं करती....। वहाँ भी बचत ही हैं...। ऐसा नहीं हैं विशाखा की मुझे ये सब पसंद नहीं हैं या चाहत नहीं हैं....। लेकिन मैं अपने पति की आर्थिक स्थिति को अच्छे से समझतीं हूँ...। बाहर जाकर नौकरी करके कमाऊं..... और फिर घर पर काम वाली बाईं रखूं.... क्या ये समझदारी हैं.... ? 
ये सिर्फ मेरी नहीं हर हाऊस वाईफ़ की दास्तान हैं विशाखा.... वो अपने अरमान... अपनी खुशियाँ.... अपनी चाहते.... सब कुछ अपने पति... अपने बच्चों... अपने परिवार के लिए भूल जातीं हैं...और इन सबके बावजूद खुश रहतीं हैं....। 
मैं बाहर नौकरी करने या बाईयो के रखने के खिलाफ नहीं हूँ.... अगर आप कैपैलेबल हैं तो रखिये.... उनकी भी आजिविका होनी जरुरी हैं...। लेकिन मैं सिर्फ इतना कह रहीं हूँ की हाऊस वाईफ़ का मजाक बनाना और ये कहना की हम कुछ नहीं करतीं.... ये गलत हैं....। 
वैसे ये बात अब तक सिर्फ एक राज़ थीं.... जिसके बारे में सिर्फ मेरी बेटी ही जानती थीं की इस लेखन से थोड़ी बहुत ही सही कमाई तो होतीं ही हैं....। लेकिन मैंने कमाई के लिए कभी लिखा ही नहीं हैं....। ना जाने कितने ऐसे प्लेटफार्म हैं इस लेखन से जूड़े हुवे जहाँ मोटी कमाई... प्रमोशन.... बुक पब्लिकेशन.... सर्टिफिकेट्स..... ना जाने क्या क्या देते हैं...., लेकिन मेरे पास इतना समय ही नहीं हैं....। जितना समय मिलता हैं सिर्फ अपनी संतुष्टि और शौक़ को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करतीं हूँ.... ओर उससे भी कुछ रकम मिल ही जाती हैं....। मैं जानती हूँ.... तुम्हारी तरह अगर मैं किसी को भी ये कहूंगी की मैं लेखक हूँ..... तो सबसे पहले मुझसे ये ही सवाल करेंगे..... "कितना कमा लेती हो".......। 





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