बब्बू एक नाम है जो कभी कभी मेरे ज़हन में उभरता है. बब्बू मेरी सबसे बड़ी मौसी का लड़का था जिसकी दिमागी हालत ठीक नहीं थी, कभी कभी दौरे पड़ते थे तो उसे शायद बाँध दिया जाता था , वैसे ज्यादातर वो खुला रहता था, मुझे बचपन का सिर्फ इतना याद है जब वो कुछ ठीक ठाक होता था तो वो मुझे गोदी में लिए मेरे साथ खेलता था. मुझे गोद में ले लेता तो किसी को नहीं देता . बचपन में मोटा होने से शायद रंग साफ़ यानी कुछ सफ़ेद रहा होगा , और बाल और आँखे भूरी थी इसलिए वो मुझे अमेरिकी समझता था. वो बुआ (माँ) से पूछता था क्या तुम इसे अमेरिका से लाई हो तो बुआ भी हंस कर कह देती हाँ. तो वो गली के सभी लोगो को बताता की ये अमेरिका से आया है. हम लोगो ने घर बदल लिया लेकिन वो फिर भी मेरे साथ खेलने आता रहता था फिर ना जाने कब उसका आना जाना कम हो गया और हमने फिर से घर बदला और बहुत दूर चले गए. आखिरी बार उसे देखा तब मैं 13 या 14 साल का हो चूका था इसलिए अच्छी तरह याद है. उसके छोटे भाई यानी मेरे मौसेरे भाई की शादी थी और हम मौसी के घर कई दिन पहले ही रहने चले गए थे. उसे मिलने मैं उसके कमरे में गया जहां उसे बाँध कर रखा हुआ था, क्योकि उसकी दिमागी हालत ज्यादा ही खराब रहने लगी थी. मुझे देख बहुत खुश हुआ . उस दिन वो शायद कुछ ठीक था, ठीक से बात कर रहा था और समझ रहा था. मुझे अपने बंधे हाथ दिखा कर रोता हुआ बोला देख मुझे बाँध के रखा है. मैं वही खड़े खड़े उसकी बाते सुनता रहा. वो मुझे अपना दुःख समझा रहा था. उसके छोटे भाई की शादी थी और एक भाई जो मंझला था उसकी शादी हो चुकी थी. उसे दुःख था कि घर वालो ने उसके दोनों छोटे भाइयों की शादी कर दी लेकिन उसकी शादी नहीं की. अपने माँ-बाप को गालियां दे रहा था और कभी रोता और कभी हँसता. अपने मंझले भाई की बीवी यांनी भाभी को वो लक्ष्मी बाई कहता, उसके लिए शायद लक्ष्मी बाई कोई महान व्यक्तित्व नहीं था बल्कि एक लड़ाकू औरत का चरित्र था जो हर वक्त लड़ती थी. मैंने उसे तसल्ली दी कहा कि मैं मौसी से बात करूंगा तेरी शादी की, तो वो बहुत खुश हुआ. मैं उसके कमरे से वापिस आ गया और फिर उसके बाद उससे कोई मुलाकात नहीं हुई . कुछ साल बाद उसके मरने की खबर ज़रूर मिली. (आलिम)