मेरे गांव का रास्ता उसी मंजिल के पास से जाता था। जब भी कॉलेज की छुट्टियां होती थी तो मैं गांव जाते वक्त वह मंजिल हमेशा ही मुझे दिखती थी । परंतु जैसा मुझे उस दिन हुआ वह अनुभव पहले कभी नहीं हुआ। मैं अक्सर अपने गांव जाते रहता था क्योंकि गांव और शहर की दूरी में बहुत अंतर नहीं था तथा साथ ही घर के लिए जरुरी सामान भी ले जाना पड़ता था इसलिए जब भी गांव जाना होता था तो एक बड़ा थैला भरकर सामान को में अपने कंधे पर ले जाता था मन तो नहीं करता था ।
उस दिन सामान कुछ ज्यादा भारी होने के कारण में अपने बचपन वाले स्कूल के पास ही रास्ते में थोड़ी देर के लिए रूक गया और मेरा ध्यान गया अपने स्कूल की उस पुरानी छत और कमरों की तरफ और स्कूल के आस पास के उन बड़े पेड़ों की तरफ जो कभी बहुत छोटे हुआ करते थे तथा हम स्कूल से छुट्टी के बाद दिन भर उनके ऊपर चड़कर झूला झूलते थे। बस इतना देखते देखते जैसे मैं अचानक अपने बचपन के उन दिनों में चला गया जब 10 बजे के स्कूल के समय हम 8 बजे ही स्कूल पहुंच कर उन पेड़ों पर उछल कूद किया करते थे। स्कूल घर से थोड़ी दूरी पर था तो बिना कोई रोक टोक के हम वहाँ खेलते रहते थे। क्योंकि हम और हमारी उछल कूद के अलावा कोई और नहीं होता था उस समय। बस इतना खेलते - खेलते 10 कब बजे पता ही नहीं चलता था और कही दूर से मास्टरजी को आते देख हम सब इस तरह बैठ जाते थे जैसे चाबुक को देखकर सर्कस का शेर ।
उन दिनों हम मास्टरजी की छाया देखकर ही दर जाते थे। क्योंकि मास्टरजी की पतली काया और हाथ में एक मीटर लंबी छड़ी देखकर बड़े बड़े बच्चों का पसीना छूट जाता था। और मेरा बालमन उस बड़े - बड़े बच्चों का छड़ी का अनुभव बताने पर ही डर जाता था। मास्टरजी के प्रति मैं अपनी कक्षा के सभी बच्चों में सबसे ज्यादा डरपोक था या फिर मेरा अपने कार्य के प्रति अधिक समर्पण था पर कारण जो भी रहा हो इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शीत ऋतु में मिलने वाला 40 दिन का गृहकार्य में 10 दिन में ही कर लेता था। उस दिन रोज की तरह हम सभी बच्चे खेल रहे थे हमारे खेल और उनका तरीका गांव की दिनचर्या से परे नहीं थे क्योंकि हमने जो देखा उसी कि कल्पना हम अपने दैनिक जीवन में करते थे तभी मास्टरजी आ गए और माहौल ऐसा हो गया था जैसे कि तेज़ आंधी के बाद बारिश से पहले। सभी बच्चे चुपचाप अपनी अपनी लाइनों में खड़े हो गए मानो किसी सेना की बटालियन । फिर शुरू हुई हमारी रोज की स्कूली दिनचर्या सबसे पहले प्रार्थना और अंत में पी0 टी0 और उसके बाद हमने पढ़ा हिंदी में अध्याय 11 कुशल कौन। पाठ पूरा हो जाने के बाद मेरा नंबर आया तो मैंने मास्टरजी की अपेक्षानुसार प्रश्न का उत्तर दे दिया और इतना सुनकर एक खुली हँसी और शाबासी मैं बोले तुम्हें मेरी मार दिखती है मेरा ज्ञान नहीं तुम सब देखना एक दिन यह लड़का जरूर.......
तभी अचानक किसी ने मुझे आवाज़ लगाई अरे! अब घर भी चलेगा या यही पर रात बिताएगा और मैं अचानक वहाँ से उठा और चौंककर बोला आता हूं । उसके बाद मैं उस सभ्य मानव के हालचाल पूछने में लग गया और तब तक मेरा स्मृति पटल भी धूमिल हो चुका था आज तक उस धूल को पोंछ रहा हूं पर मास्टरजी के कहे शब्द नहीं मिले ।