बढ़ते इस तनावी दौर को देख के बहुत परेशान हूं।
युवाओं के इन खतरनाक नासमझी के कदमों को देख कर ,
तनावी विकारों के घने बादलों के बीच घर के उम्मीदों के सपनों को अनजान रास्तों में गुम होता देखकर ,
हां बहुत हैरान हं यह सब देखकर।
मैसेज के जमाने में खुनी रिश्ते को मोबाईल से चलता देखकर
उसी मोबाइल से लोगो की जिंदगी को जलता देखकर
हां हैरान हूँ ।
जिन कन्धों पर विकसित भारत के सपनों का भार है उन कन्धों को झुकता देखकर
Forward ,viral के जालो में अपनों की अस्मत को बिखरता देखकर ।।
वायरल , वायरल के तमाशे से अपनो की इज्जत को उछलता देखकर
बिना मन्जिल के कदमों को डगमगाता देखकर बेफिजूल का जवानी का बहारा देखकर
हां बहुत हैरान हूँ यह सब देखकर||