shabd-logo

बारिश

21 जून 2016

100 बार देखा गया 100


काफी दिनों बाद उसका फ़ोन आया। फिर उठाया तो आवाज़ आई, उसकी नहीं, दूर कहीं बादल गरजने की और मन के किसी आँगन के काई लगे हुए छत से बारीश टपकने लगी। यह बारीश भी क्या चीज़ है। हर सूखे चीज़ को गिला कर देती है। क्यों? ताकि वो फिर से सूख पायें। फिर अचानक किसी के बोलने की आवाज़ सुनाई दी। मेरा हाल पूछ रही थी वो। मेरा हाल तो उस बालू मे पड़े सीपि के तरह होता है जिसके अंदर कभी मोती हुआ करती थी और वो मोक्ष की खोंज मे अपने अंदर बस रहे मोती से ही बिछड़ गयी। मैंने काफी मुश्किल से एक दो शब्द उगले। वो थोड़ी खुश हुई मुझे बोलता हुआ पाकर। पर वो सुन्ना भूल चुकी थी। हम इंसानों को आवाज़ सुनने की बुरी आदत हो चुकी है। शब्द और उनके मतलब खोंजने मे उसके पीछे की भावना कहीं खो सी जाती है। मैंने जो भी कहा वह बस उसके कानो तक गया। दिल तक का सफ़र अब काफी लंबा और मुश्किल हो चूका था। अचानक हवा का झोंक आया और सिगरेट की राख पुरे कमरे मे फ़ैल गयी। रूममेट ने कुछ देर पहले ही अपने माशूका से बिगड़ते रिश्तों का सबूत वो सिगरेट को मेज़ पर दबा कर दी थी। बेचारा सिगरेट, दिल मे तो नहीं पर फेंफड़ों मे काफी जगह पायी है उसने।

"हेल्लो, हेल्लो!" कर के आवाज़ आई। मैं राख और यादों मे खोया हुआ था। मैंने बोला, "अब रखता हूँ" और उसके कुछ बोलने के पहले फ़ोन रख दिया। कई रातों तक नींद नहीं आई उसके बाद। बारिश के इंतज़ार मे था मेरा मन। कई रातों तक अपने बिस्तर से बात करने के बाद एक रात करीबन दो बजे जब सभी लोग सो चुके थे, अचानक बारिश दबे पाओं आई और धीमे धीमे बरसने लगी। मैं बारिश और नींद की खोंज मे छत पे गया। वहां देखा लाल आसमान से रात के अँधेरे मे कवियों की लिए अदृश्य नींद बरस रही है। वहीँ छत पे सो गया मैं। फिर अचानक तुम्हारी आवाज़ आई, नींद टूटी तो खुद को अपने बिस्तर पर ही पाया। बाहर बारिश हो रही थी। रूममेट की उँगलियों मे फंसी सिगरेट अभी भी जल रही था। मैंने उसके हाथ से सिगरेट लेकर उस बारिश मे गीले हुए मेज़ पर बुझा दी। शायद हमारा प्यार उस सिगरेट और बारिश के साथ ख़त्म हो गया।

आयुष्मान चटर्जी की अन्य किताबें

1

बारिश

21 जून 2016
0
2
0

काफी दिनों बाद उसका फ़ोन आया। फिर उठाया तो आवाज़ आई, उसकी नहीं, दूर कहीं बादल गरजने की और मन के किसी आँगन के काई लगे हुए छत से बारीश टपकने लगी। यह बारीश भी क्या चीज़ है। हर सूखे चीज़ को गिला कर देती है। क्यों? ताकि वो फिर से सूख पायें। फिर अचानक किसी के बोलने की आवाज़ सुनाई दी। मेरा हाल पूछ रही थी वो। मे

2

ग़ालिब

22 जून 2016
0
1
0

मिर्ज़ा से बड़ा आशिक़ शायद कोई नही है। पता नही कब शेर पढ़ते पढ़ते दिल मे ऐसे बैठ जाते हैं और किराया भी हम से ही लेते हैं। दीवान-ऐ-ग़ालिब के अल्फ़ाज़ों से कब उर्दू अपनी खुद की ही ज़बान लगने लगी समझ ही नही आया। ग़ालिब ऐसे ही नही मिले। काफी मिन्नतों और अपने लाचारी का तोहफा जब सामने रखे तो मुस्तक़बिल हुए हमारे दिल

---

किताब पढ़िए