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बस्ती

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आँख में उम्र कैद बल्ब की रोशनी लकड़ी की मेज मे पड़ रही थी, मेज के ऊपर एक किताब जिसके मुख्यप्रष्ठ मे उभरता शब्द शहर की तरफ ले गया शहर नदी के किनारे बसा परछाई को उसके पानी मे पाता हैं| दिन की रोशनी और रात की रोशनी मे अलग-अलग दिखता| इन दोनों की परछाई मे एक बस्ती शामिल थी जिसकी परछाई नदी मे डूबी रहती|

नसबंदी अभी भी जरी हैं ठिठुरन से उलझे मुलायम नाज़ुक बाल जिनको सेकने के लिए पूस की सुबह में निकलने वाली नखराली सूरज की धूप अभी बस्ती के सामने खड़े लंबे पतले ऊंचे यूकेलिप्टिस के पेड़ों के पत्तो से झाँक कर गली व सड़क के बहुत कम हिस्से को गर्म करती उसी जगह उनकी बैठक होती सभी एक दूसरे के साथ खेलतें क़िला

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