ना तख़्त रहेंगे ना ताज़ रहेंगे, ना करोना के नामोनिशान रहेंगे. तारीख़ में कुछ नाम दर्ज़ रहेंगे, मना रहे थे जश्न महामारी में.मेहमाननवाज़ी भी हुई ज़ोरो से, बदली हुकूमत भी खूब शोरो से. धमकियाँ भी खाई खूब शेरों ने,म
नामदार तारीख-ऐ -वतन की ख़्वाहिश ने ,तारीख-ऐ- वतन को भी बदल डाला. आतिश-ऐ- मज़हब से ख़ुदपरस्तों ने, इंसानियत को खाके सियाह कर डाला.ख़ौफ़ज़दा हो इंसान जहाँ, मुल्क-ऐ- तरक्की क्या होगी. खूँगर्मी जहाँ अब रह ना गई, आसूदगी वहां अब क्या होगी. (आलिम)
आँख में उम्र कैद बल्ब की रोशनी लकड़ी की मेज मे पड़ रही थी, मेज के ऊपर एक किताब जिसके मुख्यप्रष्ठ मे उभरता शब्द शहर की तरफ ले गया शहर नदी के किनारे बसा परछाई को उसके पानी मे पाता हैं| दिन की रोशनी और रात की रोशनी मे अलग-अलग दिखता| इन दोनों की परछाई मे एक बस्ती शामिल थी जिसकी परछाई नदी मे डूबी रहती|