दुख की बेड़ी से बंधा हूं,किस प्रकार मुस्कुराऊं मैं
चलने को अब पांव नहीं बढ़ता कैसे दर पे आऊं मैं।।
तनिक देर ही सही खोल दे मेरे दुख का जंजीर
तेरे दर पर आकर तुझे अपना कुछ दुखड़ा सुनाऊं मैं।।
भला मैं यह क्या लिख रहा हूं तू तो सर्वज्ञानी है
इस जग में तू ही मेरा है और सब कोई तो अभिमानी है।।
नैया लेकर उतर आया था अब मझधार में फंस गया हूं
भेज दे कोई खेवैया बिन खेवैया कैसे किनारे जाऊं मैं।।
अपने ज्ञान को ना जाने कहां पर भेंट चढ़ा आया हूं
दूर कर दे उस कमी को जो खुद के अंदर पाया हूं।।
अश्रुधार भरी आंखों से किस विधि तेरा दर्शन पाऊं मां
शांत हो चुका कंठ ध्वनि किस विधि तेरी आरती गाऊं मां।।
खो चुका मां मैं जो अपना यश मुझमें तुम कुछ यश भर दे
खुशहाल रहे घर-आंगन तुम मुझको बस इतना ही वर दे।।