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(भाग-1)उदय का परिवार

27 मई 2022

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उदय का परिवार

उदय के पिता श्री जगमोहन शर्मा और माँ विमला शर्मा उदय को समझा-समझा कर थक गए थे... पर उदय पर उनकी बातों का कोई असर नहीं होता था।

29 साल का उदय पूरी-पूरी रात जाग कर दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करता रहता था...और सुबह पांच बजे आकर अपने मकान के बाहर वाले कक्ष में सो जाता था।
उदय अपने माता-पिता की पहली संतान था। उसका छोटा भाई सदय उदय के बिल्कुल विपरीत था। वह अपने माता-पिता का बहुत ध्यान रखता था। व्यवहार कुशल व सरल स्वभाव के कारण सभी लोग सदय की प्रशंसा करते थे और...उदय की बुराई करते नहीं थकते थे।

उसके पिता जगमोहन बहुत ही समझदार व कर्मठ व्यक्ति थे। वे बैंक में कलर्क थे...और उसकी माँ विमला सरल हृदय, संस्कारी, साधारण सी पूजा-पाठ करने वाली घरेलू महिला थी।

विमला घंटों भगवान के आगे बैठकर अपने बेटे उदय के लिए प्रार्थना करती...व्रत-उपवास रखती पर... बेटे में कोई परिवर्तन नहीं था। मानो भगवान भी उससे रूठ गया था।

जगमोहन और विमला अपना बुढ़ापा आने से पहले ही बूढ़े हो चुके थे। जगमोहन बाबू तो हृदय रोगी हो चुके थे। उन्हें दो बार हार्ट अटैक हो चुका था। उनके मकान में हर वक्त दुख के बादल मंडराते रहते थे। चिंता और भय परछाई की तरह उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। सोते जागते वे सिर्फ उदय के लिए ही चिंतित रहते थे। उनका  शरीर घुलता जा रहा था।

उनके सहयोगी मित्र प्रेमचंद के डॉक्टर बेटे मुकुल ने उन्हें मृत्यु शैया से बचा लिया था...और हिदायत देते हुए कहा था। चाचा जी आप दो झटके तो झेल गए... पर तीसरा नहीं आना चाहिए। तीसरा झटका आपके लिए बहुत खतरनाक होगा। अब आपको सब चिंता फिक्र छोड़कर जीना होगा।
चिंता आपके लिए चिता के समान है। अब आपको मेरे निर्देशानुसार ही चलना होगा।

जगमोहन बाबू ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा था.... बेटा अब जीने का मोह किसको है  ?
प्राण हैं कि निकलते ही नहीं है... न जाने किस आस में बैठे हैं। ये मकान तो अब काटने दौड़ता है... क्या करें कुछ समझ नहीं आता है... लगता है बुद्धि कुंद हो चुकी है।

जगमोहन ने उदास होते हुए कहा... बेटा तुम तो जानते ही हो। यह उदय की चिंता मुझे अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। मैं क्या करूँ...मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मैं उदय को किस तरह सही रास्ते पर लेकर आऊँ। हो सके... तो तुम्हीं कोई उपाय बताओ।  
                                             
डॉ.मुकुल ने कहा...चाचा जी आप सिर्फ अपना कर्म कीजिए....बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दीजिए। समय बहुत बलवान है। हर किसी को संघर्ष के बाद रास्ते पर ले आता है। चाचा जी... आप तो जानते ही हैं कि ठोकर लगने के बाद ही हर किसी को अक्ल आती है... इसलिए आप बेफिक्र रहें... एक न एक दिन उदय को भी ठोकर अवश्य लगेगी।
उसके पग अवश्य लौटेंगे...और तब वो समझेगा कि उसने क्या- क्या खो दिया।                                           
डॉक्टर मुकुल अक्सर जगमोहन जी के घर आता रहता था। मुकुल और उदय बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ते थे। दोनों का बचपन एक साथ ही बीता था...इसलिए मुकुल उदय की छोटी-बड़ी सभी शरारतों को जानता था।
प्रेमचंद और जगमोहन एक ही बैंक में काम करते थे। दोनों के घर भी बैंक कलोनी में आस-पास ही थे। दोनों परिवारों में अच्छी मित्रता थी। मुकुल मेडिकल की पढ़ाई करके डॉक्टर बन गया और उदय ने बारहवीं के बाद दिग्भ्रमित होकर पढ़ना ही छोड़ दिया था। जैसे-तैसे बी.ए प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी.. पर पास न हो सका।

दूसरे अटैक के बाद मुकुल हरेक दिन जगमोहन बाबू का चैकअप करने घर आता था। जगमोहन का चैकअप करते-करते मुकुल ने कहा...चाचा जी उदय मेरा बचपन का दोस्त रहा है... इसलिए मैं उसके स्वभाव को अच्छी तरह जानता हूँ। वह बहुत जिद्दी व अड़ियल स्वभाव का है... पर दिल का बुरा नहीं है। उसमें एक ही कमी है कि वह सबके कहने पर आ जाता है... और अपना दिमाग नहीं लगाता है।
वह स्कूल में भी ऐसा ही था। जब मैं उसे समझाता था... तो मुझसे ही झगड़ा करके बात करना बंद कर देता था।

मुकुल ने कुछ सोचते हुए कहा...
चाचा जी.. मुझे आज भी याद है.. वह दिन...जब हम सब दसवीं क्लास के छात्र पिकनिक के लिए मानस नदी के किनारे गए थे...तो वहां उदय ने कमल के साथ मिलकर पेड़ की आड़ में जाकर सिगरेट पी थी। जब मैंने उसे समझाया तो वहीं पर मेरे साथ हाथापाई पर उतर आया था। बड़ी मुश्किल से प्रसाद सर ने मुझे बचाया था। उसके बाद से ही उदय मुझसे कटने लगा था।                                           
चाचा जी.. आज यह कमल ही कालू दादा बनकर उदय को दिग्भ्रमित कर रहा है। इनके ग्रुप में एक लड़का चमन भी था। वह भी कालू के इशारों पर नाचता था। उसका घर सिविल लाइंस में था। अब पता नहीं वह कहां हैं ? काफी समय से मैंने उसे नहीं देखा।

चाचाजी आपको याद होगा...उस समय भी मैंने आपसे अप्रत्यक्ष रूप से यह कहा था कि.. उदय की संगति अच्छी नहीं है। वह दिशा शून्य होकर भटक रहा है...आप उस पर निगाह रखिए... पर तब आपने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। बात आई गई हो गई।

उसके बाद बारहवीं पास कर मैं तो इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए चला गया था...और उदय पूरी तरह कालू की बुरी संगति में फंस गया। उस समय अगर आप उदय का थोड़ा सा ध्यान रख कर लगाम पकड़ कर रखते... तो शायद यह नौबत नहीं आती। वह दिग्भ्रमित होने से बच जाता।
मुकुल लगातार बोले जा रहा था... और जगमोहन बाबू अपने अतीत को मुरझाई आंखों से निहार रहे थे।
अचानक उनकी तंद्रा तोड़ते 
हुए...मुकुल ने पूछा-अब चाची की तबियत कैसी है  ? उनकी शुगर और प्रेशर कंट्रोल में तो है।
यकायक नींद से जागते हुए जगमोहन बाबू बोल पड़े...
बेटा.. चिंता के कारण उसका प्रेशर तो हमेशा बड़ा ही रहता है और शुगर भी कभी तो कंट्रोल में रहती है तो...कभी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
हम दोनों को तो केवल उदय की चिंता खाए जा रही है। अन्यथा भगवान का दिया सब कुछ हमारे पास है।

अच्छा...चाचा जी अब मैं चलता हूँ। आप दोनों समय पर दवाइयां लेते रहना। मुझे अस्पताल भी जाना है आजकल दिन पर दिन
अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।

आधुनिकता ने हमारी जीवन शैली को बदलकर रख दिया है...उसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कार्य के आधुनिकीकरण ने दिन और रात के भेद को खत्म कर दिया है। कार्यशैली में बदलाव आया है तो भागदौड बढ़ी है और इसके साथ ही बढ़ी है आगे निकलने की होड़ भी। अब सभी को और सब कुछ बहुत जल्द चाहिए और उसके लिए युवा सब कुछ करने को तैयार हैं।
आधुनिक जीवन शैली ने लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है। कम मेहनत और चिकनाई युक्त भोजन लोगों को अस्वस्थ बना  रहा है। अस्पताल में सुविधाओं की कमी नहीं है फिर भी रहन सहन में लापरवाही के कारण ओपीडी में मरीजों की संख्या रोजाना बढ़ रही है।

आलीशान मकान बनाने की होड़ में घर पीछे छूटता जा रहा है।
नई-नई बीमारियां बढ़ रही है। लोग जितना अधिक पैसा कमा रहे हैं... उतना ही सुख-शांति से दूर होते जा रहे हैं। मानसिक तनाव लोगों को जीने नहीं दे रहा है।

अपना छोटा सा बॉक्स उठाते हुए.. मुकुल ने पुनः कहा...अच्छा चाचा जी नमस्ते...मैं चलता हूँ।आप दोनों अपना विशेष ध्यान रखियेगा।

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रचनाएँ
ताप- परिताप ( उपन्यास)
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आमुख "ताप-परिताप"उपन्यास उदय नामक एक ऐसे लड़के की कहानी है जो स्कूली अवस्था से ही दिग्भ्रमित होकर बुरी संगति में पड़ जाता है। माता पिता के बहुत समझाने पर भी उसे कोई असर नहीं होता है। उदय के लिए उसके दोस्त माता-पिता से ज्यादा महत्व रखते हैं। थक हार कर माता-पिता भी उदय को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं। समय बहुत बलवान है। एक समय ऐसा आता है कि उदय को अपने किए पर बहुत पछतावा होता है लेकिन "का वर्षा जब कृषि सुखाने" व्यक्ति जब समय रहते नहीं सचेत होता है तो पश्चाताप के आँसुओं के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता है। ठीक ही कहा गया है समय निकल जाने पर मानव सिर धुन- धुन पछताता है। लाख जतन कर लो पर खोया समय नहीं आता है। समय बहुत कीमती है उसके महत्व को समझ कर एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए। बड़ों के अनुभव से सीख लेना चाहिए। माता पिता का सम्मान करना चाहिए। यह उपन्यास हमें ये सब प्रेरणा देता है। मित्रता सोच समझकर करनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन में संगति बहुत मायने रखती है। "अच्छा मित्र मिल जाए तो माटी सोना बन जाती है। और बुरा मित्र पाने पर जागी किस्मत सो जाती है।" कोयले की संगति में रहने पर हाथ का काला होना तो स्वाभाविक ही है। गलती हर किसी से होती है... पर एक गलती दुबारा नहीं होना चाहिए.. इसलिए कहा गया है - गल्ती कीजिए, आगे बढ़िए। अंत में उदय अपने कुकर्मों को छोड़कर अपने मकान को घर बनाने की पुरजोर कोशिश करता है। उसके पग घर की तरफ लौटने के लिए बेचैन हो जाते हैं...और इस कोशिश में वह कामयाब भी होता है। लौटते पगों के सहारे वह टूटे हुए मकान को घर का रूप देने पुनः जुट जाता है। आशा है उपन्यास "ताप-परिताप" पाठकों को कुछ न कुछ अवश्य देकर जायेगा। डॉ. निशा नंदिनी भारतीय तिनसुकिया, असम
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