आमुख "ताप-परिताप"उपन्यास उदय नामक एक ऐसे लड़के की कहानी है जो स्कूली अवस्था से ही दिग्भ्रमित होकर बुरी संगति में पड़ जाता है। माता पिता के बहुत समझाने पर भी उसे कोई असर नहीं होता है। उदय के लिए उसके दोस्त माता-पिता से ज्यादा महत्व रखते हैं। थक हार कर माता-पिता भी उदय को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं। समय बहुत बलवान है। एक समय ऐसा आता है कि उदय को अपने किए पर बहुत पछतावा होता है लेकिन "का वर्षा जब कृषि सुखाने" व्यक्ति जब समय रहते नहीं सचेत होता है तो पश्चाताप के आँसुओं के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता है। ठीक ही कहा गया है समय निकल जाने पर मानव सिर धुन- धुन पछताता है। लाख जतन कर लो पर खोया समय नहीं आता है। समय बहुत कीमती है उसके महत्व को समझ कर एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए। बड़ों के अनुभव से सीख लेना चाहिए। माता पिता का सम्मान करना चाहिए। यह उपन्यास हमें ये सब प्रेरणा देता है। मित्रता सोच समझकर करनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन में संगति बहुत मायने रखती है। "अच्छा मित्र मिल जाए तो माटी सोना बन जाती है। और बुरा मित्र पाने पर जागी किस्मत सो जाती है।" कोयले की संगति में रहने पर हाथ का काला होना तो स्वाभाविक ही है। गलती हर किसी से होती है... पर एक गलती दुबारा नहीं होना चाहिए.. इसलिए कहा गया है - गल्ती कीजिए, आगे बढ़िए। अंत में उदय अपने कुकर्मों को छोड़कर अपने मकान को घर बनाने की पुरजोर कोशिश करता है। उसके पग घर की तरफ लौटने के लिए बेचैन हो जाते हैं...और इस कोशिश में वह कामयाब भी होता है। लौटते पगों के सहारे वह टूटे हुए मकान को घर का रूप देने पुनः जुट जाता है। आशा है उपन्यास "ताप-परिताप" पाठकों को कुछ न कुछ अवश्य देकर जायेगा। डॉ. निशा नंदिनी भारतीय तिनसुकिया, असम
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