कहानी
रेड लाइट
…. सतीश मापतपुरी
……………. भाग - 3 …………
( मनचलों से बचाकर इंस्पेक्टर निशा को अपने घर ले आया । सुबह वह मिलन चौक एरिया में निशा को लेकर पहुँचा । एक घर के सामने निशा रुक गई । घर के भीतर जाकर देखा और खुशी से चिल्ला उठी , यही मेरा घर है लेकिन उस घर की अधेड़ औरत ने बताया कि उसकी तो कोई बेटी ही नहीं है ….. अब आगे )
इंस्पेक्टर ने उस औरत को मुस्कुराते हुए बताया ‘ बधाई हो माँ जी , यह निशा है , बचपन में खोयी हुई आपकी बेटी ‘ …. इंस्पेक्टर को लगा था कि यह खबर सुनकर वह औरत खुशी से पागल हो जाएगी पर उस औरत ने बिना एक पल गंवाए कहा - ‘ मेरी तो कोई बेटी ही नहीं है ‘ ....... इंस्पेक्टर को लगा कि किसी ने उसे पहाड़ से नीचे धक्का दे दिया हो , वह हा किये निशा को देखा ….. निशा खा जाने वाली निगाहों से उस अधेड़ औरत को घूरे जा रही थी , जैसे उसने निशा के अरमानों पर बिजली गिरा दिया हो ।
इंस्पेक्टर ने उस औरत से कहा - ‘ माफ कीजियेगा , आपको तकलीफ दी । ‘ वह औरत कुछ बोलती इसके पहले ही निशा बोल उठी - ‘ यह झूठ बोल रही हैं । ‘ इंस्पेक्टर को निशा का यह व्यवहार अजीब सा लगा । उसने निशा को रूखे अंदाज़ में टोका - ‘ ये कैसी बात कर रही हो ? कौन माँ होगी जो अपनी बेटी के होते हुए उसके नहीं होने की बात कहेगी ? ….. तुम्हारा अनुमान गलत हो सकता , इनका बयान नहीं । ‘
निशा को अपनी गलती का आभास हुआ । हम जैसा चाहते हैं वैसा ही देखना - सुनना चाहते हैं । निशा ने हाथ जोड़ते हुए उस औरत से क्षमा याचना की ‘ सॉरी । ‘ वह नेकदिल औरत थी , उसने निशा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा - ‘ काश ! तू मेरी बेटी होती । ‘ निशा को लगा कि वह बुक्का फाड़ फाड़ कर रो पड़ेगी , वह बिना उस औरत की तरफ देखे तेजी से जीप की तरफ बढ़ गई ।
निशा से उसकी बचपन की तस्वीर लेकर पुष्कर थाना जा चुका था पर निशा कल की घटना पर ही रुकी हुई थी । अभी भी वह यह मानने को तैयार नहीं थी कि वह घर उसका नहीं था ….. वही नीम का पेड़ ..,, दरवाजे पर वही हाथी का चित्र ….. वही आँगन … वही चापाकल …. पर वह औरत ? …. यहीं आकर निशा को तेज झटका लग जाता था , यदि वह अपना घर पहचान सकती है तो अपनी माँ को क्यों नहीं पहचान सकी ? … और यदि वह उसकी माँ नहीं है तो उस घर में क्यों है ? …. ऐसे कई सवाल बिच्छू बनकर उसे डंक मार रहे थे । निशा इन्ही ख्यालों में खोयी हुई थी कि उसे बाहर जीप रुकने की आवाज़ सुनाई पड़ी और कुछ पल बाद ही इंस्पेक्टर पुष्कर उसके सामने आ खड़े हुए , पुष्कर को इस समय घर पर देख निशा सोच में पड़ गयी ….’ इतनी जल्दी ? ‘ पुष्कर को अपने ही घर जल्दी आने पर कैफियत तलब कर झेंप गयी निशा और उसके मुँह से सहसा निकल पड़ा ….. ‘ सॉरी । ‘ पुष्कर शायद इस तरफ ध्यान नहीं दिया , वह निशा से बोला - ‘ चलो , देखो कौन आया है ...।’....... पुष्कर निशा को लेकर बैठक में आया , निशा जमुना बाई को देख कर आवाक रह गई …. यह जानते हुए भी कि यह उसकी माँ नहीं हैं , उसे जमुना बाई का यहाँ आना अच्छा लगा …. वह पल भर उन्हें भींगी पलकों से निहारती रही और फिर लगभग दौड़ते हुए उनसे लिपट गई और फफक - फफक कर रो पड़ी …. आँखों में जमा पानी ममता की गरमाहट पाते ही पिघल गया ….. रोने से निशा का मन कुछ हल्का हो चुका था । जमुना बाई ऊपर देखते हुए बोल पड़ी - ‘ या खुदा ! इस नन्ही सी जान पर रहम कर ….. इसे इसकी मंज़िल का पता दे दे … इसको इसके वालीदैन से मिला दे । ‘ यह सुनते ही निशा जमुना बाई की तरफ देखते हुए बोली - ‘ अम्मीजान …. ‘ जमुना बाई बीच में ही उसे रोक दी - ‘ कुछ न बोल बेटा , मैने संतराम को जेवर का डिब्बा देते हुए तुम्हें देख लिया था , जब तुम घर से चली गई तो मुझे यह समझते देर न लगी कि तुम नवाबगढ़ गई होगी …. इंस्पेक्टर से थाने में आकर मिली , उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया है । ‘ निशा कुछ बोली नहीं सिर्फ जमुना बाई को देखे जा रही थी … जमुना बाई भावुक हो गई ……. ‘ मैनें तुम्हें अपनी कोख से पैदा नहीं किया पर जब तुम पहली बार मुझे अम्मीजान कहा था तो महसूस हुआ कि छाती में दूध उतर आया है ….. कोठे पर तो कई लड़कियाँ आईं पर तुम्हें देखकर मुझे पहली बार माँ बनने का शौक जगा था …. मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ बेटा , तुम इतनी सुंदर और मासूम थी कि एक बार तो मन में आया था कि तुम्हें वापस भेज दूँ पर दूसरे ही पल स्वार्थ हावी हो गया और मैं माँ बनने का लोभ नहीं छोड़ सकी ….. इंसान को खुदा ने शायद स्वार्थ की मिट्टी से ही गूंथा है …. भगवान भी इस धरती पर आ जाय तो स्वार्थ उन्हें भी नहीं छोड़ेगा , इंस्पेक्टर साहेब जैसा फरिश्ता तेरी ज़िन्दगी में भेजकर खुदा ने रहम किया है । मैं चल रही हूँ …. खुदा बहुत बड़ा कारसाज है …. मुझ जमीला को जमुना बाई बनाकर दुनिया में पनाह दिया तो तुझे भी कोठे की जगह जरूर कोठी तक पहुंचाएगा ……. कभी - कभी मुझ से मिलने आती रहना … खुदा हाफ़िज़ । ‘ कहते - कहते जमुना बाई का गला रूँध गया , निशा के सर पर हाथ फेरते हुए जमुना बाई झटके से बाहर निकल गई । कार के पास पहुँच कर वह पल भर को रुकी पर पलट कर निशा को देखा नहीं ।
इंस्पेक्टर पुष्कर दस किलोमीटर दूर अनुमंडल मुख्यालय की पुस्तकालय जाकर सोलह - सत्रह साल पहले का अखबार निकलवा कर एक - एक कर देखने लगे । अब अखबार ही एक सहारा था , जिस समय की यह घटना थी उस समय नवाबगढ़ में थाना नही था , बलीरामपुर थाना क्षेत्र में ही नवाबगढ आता था । पुष्कर वहाँ का रिकार्ड खंगाल चुका था पर कुछ हासिल नहीं हुआ था । इरादा नेक हो तो मेहनत बेकार नहीं जाती । 27 मार्च के अखबार में एक इश्तहार छपी थी जिसमें निशा के बचपन की तस्वीर लगी थी , लिखा था ‘ बबली , उम्र - लगभग सात साल , रंग - गेहुआ ,आसमानी रंग की फ्राक पहनी है , घर के पास से लापता हो गयी है ……… । यह देखकर इंस्पेक्टर की आँखें फ़टी की फटी रह गयी , इश्तेहार में उसी घर का पता छपा था जिसे निशा ने अपना घर बताया था । शाम को जब इंस्पेक्टर घर आया तो उसका चेहरा खिला हुआ था , निशा को देखते ही बोल पड़ा - ‘ बधाई हो , तुम्हारे घर का पता चल गया ।’ यह सुनकर निशा को लगा कि दोनों जहाँ मिल गया - ‘ क्या ? …. कैसे ? ‘ इसके पहले कि निशा कुछ और पूछती , इंस्पेक्टर ने उसेे सविस्तार सारी बातें बताई और अखबार का वह इश्तेहार भी दिखा दिया ।
‘ तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है , बचपन में देखे अपने घर को एक झटके में पहचान लिया ।’
‘ अगर वही मेरा घर है तो वह औरत कौन है , जिसने कहा कि उसे तो कोई बेटी ही नहीं है ? ‘
‘ हाँ …. यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है , कल फिर चलते हैं वहाँ । ‘ इंस्पेक्टर के पास भी फिलवक्त इसका कोई जवाब नहीं था । इंस्पेक्टर घर के अंदर जा ही रहा था कि निशा की बातों ने उसके कदम थाम लिए - ‘ एक अनजान के लिए आप इतना कुछ क्यों कर रहे हैं ? ‘ अप्रत्याशित सवाल अक्सर खामोश कर देते हैं , पुष्कर को समझ नहीं आ रहा था क्या कहे , झेंप मिटाने के लिए कह दिया - ‘ दुनिया में इंसानियत भी तो कोई चीज है ।’
‘ बस इंसानियत ही या …… कुछ और ? ‘ कहते हुए निशा अखबार लेकर अंदर चली गयी । देने वाले ने औरत को हुस्न के साथ - साथ वो सलाहियत भी दी है जो सामने वाले का इरादा भांप सके । निशा तो कहकर चली गई पर पुष्कर सोच में पड़ गया । वह खुद से पूछ बैठा …. क्या सचमुच वह निशा के लिए ये सब इंसानियत के नाते कर रहा है ? …… थाने में रोज कितनी निशा आती है , क्या सबके लिए वह इतना कुछ करता है ? इंसान खुद से सवाल कर भी ले पर उसका जवाब सुनने से कतराता है …… कभी - कभी अपनी परछाईं भी डरा देती है । पुष्कर झटके से वहाँ से निकल गया ।
दूसरे दिन निशा को लेकर इंस्पेक्टर फिर मिलन चौक एरिया के उसी घर में गया । उसी अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला । इंस्पेक्टर बिना कुछ बोले उस औरत को अखबार थमा दिया ।
‘ ये क्या है ? ‘ वह औरत हैरान थी ।
‘ आपने तो कहा था कि आपको कोई बेटी नहीं है तो इस अखबार में उसके लापता होने का इश्तेहार क्यों दिया था ? ‘ पुष्कर की आवाज़ सख़्त थी ।
‘ आपकी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है । ‘
‘ देखिए माँ जी , जो भी बात है साफ - साफ बात दीजिये , मैं आपके साथ किसी भी तरह की सख़्ती करना नहीं चाहता।’ पुष्कर को लगा था कि इतने ही से डरकर वह औरत सब कुछ बता देगी पर ठीक इसके विपरीत वह दहाड़ उठी - ‘ आप पुलिसिया रौब झाड़ने आये हैं , अपनी इज़्ज़त चाहते हैं तो चुपचाप लौट जाइये , मैं वकील की बेटी हूँ मुझ पर धौंस जमाने की कोशिश मत कीजिये।’ रविवार का दिन था , पत्नी की तेज आवाज़ सुनकर उसका पति बाहर आया और इंस्पेक्टर को देखकर हैरान होते हुए पूछ बैठा - ‘ क्या बात है इंस्पेक्टर साहेब ? ‘ इंस्पेक्टर से सारी बातें जानने के बाद वह धीरे से बोला - ‘ एक मिनट …. इधर आइये ।’ लगभग फुसफुसाते हुए उसने इंस्पेक्टर से कुछ कहा , जिसे सुनकर इंस्पेक्टर का चेहरा फक पड़ गया ……..I
क्रमशः