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भाग एक

23 नवम्बर 2021

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कोरोना.... 
आज देश का हर बच्चा इस लब्ज के बारे में जानता होगा.... हर कोई इस अचानक से आई प्रलय के बारे में ना सिर्फ जानता हैं बल्कि गुजरा भी हैं...।। 
ना जाने कितने अपनों की बिछड़ने का गम आज भी कहीं ना कहीं कोई सह रहा होगा..।।।। 

इस अचानक आई तबाही ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया.... जिन्होने अपनों को खोया... उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा की इस तरह से हमसे अपनों का साथ छुट जाएगा..।।। 

बहुत से लोगों के लिए तो ये सिर्फ एक मजाक का विषय भी था.. शायद मेरे लिए भी पहले ऐसा ही कुछ था...।।।। लेकिन जब मैं खुद इस बिमारी से गुजरी तब अहसास हुआ की ये कितनी भयानक और असहनीय हैं...।।।।। 

2019  के  अंतिम महीने में ये डर हमारे सामने आया था.... लेकिन हमारे देश में ये लगभग मार्च 2020 तक पूरी तरह से दस्तक दे रहा था..।।।। 

सच कहूं तो शुरुआती कुछ हफ्ते तो बहुत उत्साह से निकले.... क्योंकि मेरे पति जो की एक प्राइवेट आफिस में काम करते थे... उनको पूरे साल में कभी भी हमारे लिए वक्त ही नहीं मिलता था... उनका इस तरह से घर पर बैठना किसी सपने जैसा ही था... उस पर बच्चों के साथ खाना पीना.. और खेलना.... वक़्त बिताना... सब कुछ हम जैसे बहुत से लोगों के लिए एक सपना ही था..।।। लेकिन कुछ समय बाद चीज़ें बदलने लगीं...।।। वो उत्साह.... अब रोष में बदल गया था...।। 

एक मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यह सब किसी कहर से कम नहीं  था..।।।।। सिमित आय थी मेरे पति की.... पिछले बीस सालों से एक ही आफिस में नौकरी कर रहे थे...।।। अचानक आई इस महामारी ने पहले तो आफिस बंद करवा दी.... और फिर जब कुछ महिनों बाद आफिस खोलने की परमिशन मिली.... ( सिमित व्यक्तियो के साथ) तो मेरे पति को बिना किसी कारण के आफिस से निकाल दिया गया...।।।। 

उस वक़्त हम सभी इस पूरी बात के लिए सिर्फ सरकार को दोष देते रहते थे की आम इंसान ही क्यूँ भुगत रहा हैं....।।।।हम पर ही क्यूँ ये सब थोपा जा रहा हैं...।।


महिने ऐसे ही बित रहे थे जब एक और कहर  हम बरसा....।।।। 
टीवी  में समाचार में.... दिख रहीं कोरोना की बिमारी से बचने का हम सभी अच्छे से पालन कर रहे थे... ना बिना काम के घर से बाहर निकलते थे.... ना कुछ बाहर का खातें थे... हाथों को बार बार धोना... सेनेटाइजर का इस्तेमाल करना.. काढ़ा पीना.. व्यायाम करना... सब कुछ कर रहे थे जो कि उस वक़्त हर आम इंसान खुद को सुरक्षित करने के लिए कर रहा था... लेकिन इन सबके बावजूद...??? 


जून 2020 .....।। 
घर पर काम करते करते.... अचानक से सीने में दर्द उठा... सांस फूलने लगी..... लेकिन डर के वश कुछ दिन मैनें इसे नजर अंदाज किया और घरवालों से भी छुपाया...।।।। 

बुखार भी बार बार आता जाता था पर फिर भी मैं नार्मल दवाई लेकर सब कुछ अनदेखा करने लगी.... क्योंकि एक तो कोरोना होने का डर.... दुसरा सिमित आय... तीसरा अगर कुछ हुआ तो बच्चों के भविष्य की चिंता...।।।। 
लेकिन कब तक छुपा कर रखती.... आखिर एक दिन तबियत ज्यादा खराब हुई और नहीं चाहकर भी मैं हास्पिटल गई.... पहले तो तीन चार दिन की दवाईयां दी गई... लेकिन जब फायदा नही हुआ तो रिपोट्स करवाई गई.... और वही हुआ जिसका डर था..... रिपोट्स पाजिटिव आई....।।।। 
हास्पिटल में बहुत मारा मारी थी.... इसलिए घर पर ही क्वारंटीन होने  का पारिवारिक फैसला लिया गया....। 
पारिवारिक फैसला इसलिए कह रहीं हूँ क्योंकि उस फैसले में मेरी रजामंदी नहीं थी.... लेकिन मेरी रजामंदी होने ना होने का कोई महत्व ही नहीं था...।।। 
क्योंकि मैं मेरे परिवार के बारे में अच्छे से जानती थी....।।। सयुंक्त परिवार था.... लेकिन मेरे लिए सालों बाद भी सभी अजनबी ही थे.... मेरी छोटी बड़ी तकलीफ में कभी मुझे किसी का भी सपोर्ट नहीं मिलता था.... उसके पीछे कारण था.... मेरा गरीब परिवार से होना और शादी के कुछ सालों बाद ही मेरे माँ पापा का देहांत हो जाना.... साफ लब्जो में कहूँ तो मेरा अनाथ और गरीब होना...।।।। परिवार की दूसरी बहूएं पैसे वाले परिवार से थी और उनकाे मायके का भी पूरा सपोर्ट था...।।।। मैं अच्छे से जानती थी की घर पर कोई मुझे सिरियस नहीं लेगा... और इन सब की बेपरवाही कहीं मेरे भविष्य पर भारी ना पड़ जाए...।।।।। 
मुझे अपनी जान से ज्यादा उस वक़्त सिर्फ अपनी बेटी के लिए डर लग रहा था... की कही अगर मुझे कुछ हो गया तो उसका भी भविष्य खराब हो जाएगा.... क्योंकि मेरे परिवार में मेरी तरह मेरी बेटी भी सबको अढ़ती थी क्योंकि वो लड़की थी.... बाकी सबको लड़का था... और घर के बड़े लोगों की सोच यही थी की बेटा ही वंश आगे लेकर जाता हैं..।।। 
मेरी बेटी के लिए सिर्फ मैं ही एक आसरा थी जो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी...।।।। 

लेकिन हुआ वो ही जैसा सब चाहते थे... 14 दिन घर में एक कमरे में नजरबंद कर दिया गया...।।।। 
उस वक़्त बहुत से ऐसे लोग आगे आए थे जो कोरोना से जुझ रहे मरीजों को मुफ्त खाना.... काढ़ा.... दवाईयां उपलब्ध करवा रहे थे....।।।। मेरे लिए भी वहीं आवेदन भरा गया... घर में इतने लोगों के होते हुए भी.... कोई मेरे लिए कुछ करने को तैयार नहीं था.... खैर जिसका कोई नहीं होता उसके लिए रब कोई ना कोई जरीया भेज ही देता है... मुझे दो वक़्त का खाना.... दो वक़्त काढ़ा... और दवाइयाँ वो लोग देकर जातें थे....।।।। इन 14 दिनों में सिवाय मेरी बेटी और पति के किसी ने भी एक ही घर में रहते हुए भी मेरी कोई खबर नही ली थी... शायद वो अपनी जगह पर सही भी थें... क्योंकि इस बिमारी ने एक डर सबके भीतर डाल दिया था की करीब रहेंगे तो हम भी चपेट में आ जाएंगे... इसलिए दूरी सही भी थी..... लेकिन अफ़सोस सिर्फ इस बात का होता है की फोन पर ही सही एक दिलासा तो दे ही सकते थे....।।। इस बिमारी का डर इतना छा गया था कि..... अकेले अकेले एक कमरे में बंद.....अपनों से दूर.....हर रोज आ रही मौत की तादाद बढ़ते रहने की खबरों से इंसान आधा तो डिप्रेशन की वजह से हार जाता था....।।।।।। 
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.... बिमारी से ज्यादा.... मैं ये सब देख और सुनकर डिप्रेशन में चलीं गई थी...।।। 
मेरे क्वारंटीन के 10 दिन हुए थे जब ज्यादा टेंशन लेने की वजह से मेरी कंडिशन बहुत खराब हो गई थी.... मेरा आक्सीजन लेवल बहुत कम हो गया था.... मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी... मेरे सीने में असहनीय पीड़ा होने लगी.... घबरा कर मेरे पति ने एम्बुलेंस बुलाई और मुझे हास्पिटल में एडमिट किया गया...। तीन दिन तक मुझे आईसीयू में रखा गया...।।।।। चार दिन नार्मल वार्ड में.... सात दिन बाद मुझे डिस्चार्ज किया गया.... लेकिन जिंदगी भर की एक हिदायत के साथ.....! मेरे 40% लंग्स ( फेफड़े) खराब हो चूके थें.... मुझे लाइफटाइम के लिए एक इन्हेलर ( अस्थमा के रोगी जो पंप लेते हैं) अपने पास रखना था.... ना सिर्फ रखना था.... बल्कि अपने दैनिक कार्य करने से पहले हर सुबह लेना भी था..... मुझे अस्थामा हो चुका था...।।।।।। 


सच कहुँ तो इस कोरोना ने बहुत कुछ बदल दिया था.... और बहुत कुछ सीखा भी दिया था....।।। कौन ऐसे वक़्त में आपके साथ हैं.... कौन ऐसे वक़्त में भी आपको अकेला छोड़ देता हैं... क्या आपके लिए सही हैं... और क्या गलत.... डर कितना सही था.... कितना नहीं..... बहुत कुछ सीखा दिया था...।।।।। कुछ ऐसे अपने जो मुझे मरने के लिए छोड़ देते हैं....और कुछ ऐसे पराए जो इस मुश्किल घड़ी में भी अपना ना सोचकर हमारे साथ खड़े हैं..।।। 


बहुत लोगों ने अपनों को खो दिया था.... तो बहुत लोगों को कुछ अनजाने अपनों से मिला भी दिया था...।।।। 

ना जाने मेरे जैसे कितने ही और लोग होंगे जिनके साथ ऐसा हुआ होगा..।।।।। एक पल तो ऐसा भी आया था जब आईसीयू में डाक्टरस ने भी जवाब दे दिया था.... लेकिन शायद किसी की दुआओं से आज जिंदा हूं...।।।।।। 

इस पूरे वाक्ये से मेरी जिंदगी में दो बहुत बड़े बदलाव आए.... 

पहला:- मेरी ईश्वर में आस्था बहुत प्रबल हो गई...।।।। 
दूसरा :- मुझे इंसानियत का सही मतलब पता चला...।।।। 

हम एक आम इंसान की तरह.... आम जिंदगी जी रहे हैं.... हर बार मुसीबत आने पर सरकार को दोष देते रहते हैं.... अपने आपको असहाय महसूस करते रहते हैं.... लेकिन हम चाहें तो बहुत सी मुश्किलें हल कर सकते हैं...।।।। क्या हुआ अगर हमारी आय सिमित हैं तो..... एक बार शुरुआत तो किजिए..... रास्ते खुद ब खुद खुलते जाएंगे...।।।। 

मैने भी ऐसा ही किया.... घर में और ज्यादा बचत करके ऐसे लोगों की मदद की जिन्हें सच में हमसे ज्यादा जरुरत थी...।।। आज भी कर रहीं हूँ...।।।। जितना कर सकतीं हूँ.... आखिर में सिर्फ ये कर्म ही तो साथ चलने वाले हैं...।।।।। घरवालों के बहुत ताने... और विरोध सुनने को मिलतें हैं.... लेकिन मैने ठान लिया हैं.... ।।।। ज्यादा तो नहीं कर पातीं..... लेकिन कुछ तो कर ही सकतें हैं....।।।।। 

इंसान होने का कुछ तो फर्ज निभा ही सकतें हैं...।। ☺☺☺☺

ये मेरी जिंदगी का शायद सबसे बड़ा सबक था....।।।🤗🤗🤗

जय श्री राम.... 🙏🙏

sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

सही कहा आपने 👌

23 नवम्बर 2021

Diya Jethwani

Diya Jethwani

23 नवम्बर 2021

शुक्रिया जी

1
रचनाएँ
सबक़...इंसानियत का.. ☺
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अपने जीवन में आए एक बदलाव को उजागर करता हैं मेरा ये छोटा सा लेख...।।

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