"भाई बहन के स्नेह का पर्व-भाई दूज"
हमारे भारतीय सनातन धर्म मे आस्था,विस्वास,पर्व,का अपना एक अलग महत्व है, तभी तो यहां नाना प्रकार के रीति,रिवाज परम्पराए,संस्कृति, और सभ्यता,हमे देखने को मिलती है।और यही हमारी थाती है, धरोहर है, हमारे सनातन धर्म की पहचान है।और इसी कारण हमारे देश मे अनेक जाति,धर्म,रीति रिवाज के कारण भी सद्भावना,भाईचारा,आपसी प्रेम,और अनेकता में एकता देखने को मिलती है।जिसको देखकर हम बरबस ही मंत्रमुग्ध रहे बिना नही रह सकते।
इस सांस्कृतिक परम्पराओ का निर्वहन करते हुए हमारे देश मे एक पर्व ऐसा भी आता है जिसमे भाई बहन के अट्टू प्रेम आस्था विस्वास को प्रदर्शित किया जाता है।और भाई अपनी बहन के उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करते हुए उसकी सुरक्षा, उसके मान सम्मान का
प्रण लेता है।
इस पर्व का नाम है "भाई दूज"।वैसे तो भाई दूज रक्षाबन्धन पर्व के अलावा वर्ष में दो बार आता है।और वह है होली और दिवाली में,यह पर्व होली के दूसरे दिन और दिवाली के तीसरे दिन "भैया दूज" के नाम से यह पर्व मनाया जाता है।
इस सम्बंध में बहुत सुंदर कथा आती है-
शास्त्रीय कथानुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा थी,उनकी दो संताने हुई यथा यम और दूसरा यमुना।लेकिन इधर सूर्य के तेज को संज्ञा सहन न कर सकी और बिना बताए कहीं चली गई।
पर यम और यमुना आपस मे बहुत स्नेह करते थे।
यमुना हमेशा अपने भाई यम के यहां आना जाना करती और अपना सुख-दुख बांटा करती।
और लौटते समय अपने भाई यम को अपने यहां आने का आग्रह करती।
लेकिन यमराज अपनी व्यस्तता के चलते अपनी बहन के यहां जा नही पाते।एक बार कार्तिक शुक्ला को द्वितीया के दिन यमराज अचानक अपनी बहन के घर पहुंच गए।वहा पहुचने से पहले उन्होंने नरक के जीवों को मुक्त कर दिया। और बहन के यहां पहुंच जाते हैं।यमुना प्रसन्न हो जाती है, उसका खूब आव-भगत करती है,उनको नाना व्यंजन कराती है।और फिर यमुना भाई के भाल पर तिलक लगाती है।भाई परसन्न होकर वरदान मांगने को कहता है।
तब बहन यमुना ने भाई से कहा कि-
"तुम प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे आतिथ्य स्वीकार करे और दूसरा जो भाई अपने बहन का आतिथ्य स्वीकार करे। वहां भोजन करने के पश्चात बहन भाई के भाल पर तिलक लगाएं तो उसकी सारी भय दूर हो जाये।इसी के साथ इस दिन यदि भाई बहन यमुना नदी में स्नान कर तो वे यमराज के प्रकोप से बच जाएंगे।
तब यमराज ने बहन यमुना की प्रर्थना स्वीकार कर लेते हैं।तभी से यह भाई बहन के पवित्र पर्व भाई दूज का पर्व स्नेह सद्भावना विस्वास के साथ मनाया जाने लगा।
आज हमें अपनी संस्कृति सभ्यता को संजोने की आवश्यक्ता है, जिसमे हमारी आस्था है विस्वास है,हमारी पहचान है।जो हमे हमारे घर परिवार देश को एकता के एक सूत्र में पिरोने का काम करती है।
रचनाकार-
अशोक पटेल"आशु"
व्याख्याता-हिंदी
मेघा-धमतरी(छ ग)
9827874578