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भोले

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जब भी आँख बंद करता हूँ। वह जंगल, वह कच्ची पक्की सड़क के साथ गेहूँ के खेत, आम के पेड़, पीपल की छांव, याद आती है। मंदिर के आस पास वह दो तीन कमरों वाले माकान सामने से गुजरती रेलगाड़ी की पो...सुनाई देती है। झूले, मौत का कुआँ, सर्कस के टेंट चाट की रेडी याद आती है। दूर तक खाली ऊसर नज़र आता हैं। मंदिर का पूर्व

वो जून कि गर्मी, वो पीपल का सायावो यारों की टोली, वो रिश्तों का मायावो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छतलिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/08/blog-post_3.html

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