पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...फिर लौट चलूं मैं,”बचपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…खेलूँ फिर से,उस “आँगन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…क्या दिन थें वो,ख्वाबों जैसे,क्या ठाट थें वो,नवाबों जैसे…फिर लौट चलूं,उस “भोलेपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…