*भूत बंगला*- प्रेत कि कहानियाँ जब हम बचपन मे सुनते थे तब एक अलग ही मज़ा होता था।ज्यादातर टीवी पर रात मे एक आपबीती और कुछ शो आते थे टीवी पर भूतो वाले।उसे हम जरूर देखते थे। लेकिन अब माहौल अलग है,दौर अलग है।अब भूत प्रेत की कहानियाँ सिर्फ किस्से-कहानियाँ और फिल्मों तक ही सिमट कर रह गया है। फिर भी कुछ लिखता हूँ मैं ,एक फनी मोमेंट था हमारा बचपन के टाइम मे कहे या यही कुछ काफी साल पहले। एक कोचिंग हुआ करती थी हर्ष एकेडमी।जिनमें मैं पढ़ता था उस समय मैं कक्षा नौवीं (9nt) का स्टूडेंट था।मैं और मेरे कुछ दोस्त वहाँ पढ़ने जाते थे ये मेरे घर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर *मनौरी* एक जगह थी वहीं पड़ता था। वहीं पास मे ही एक पुराना पिक्चर हाल था(रूप चंद्र केसरवानी का गेस्ट हाउस) जो बंद हो चुका था जो काफी एरिया मे बना हुआ था।काफी सालों से वहाँ कोई आता जाता नहीं था।वहाँ के लोगों का मानना था कि यहाँ भूत लगता है। उसका गेट बंद था और हर कोई रोकता था जाने से वहाँ।एक दिन हम दोस्तों से शर्त लगी कि वहाँ जाना है और कौन जाएगा।एक दिन सभी जाने का प्लान किये शाम होने वाली थी।हम पीछे के रास्ते जिसके पीछे खेत था जिसमें फसल लगी हुई थी उधर गए और लगभग 5-7 फीट ऊँची बाउंड्री को हमने चढ़ कर पार की और हमने उस भूत बँगले मे प्रवेश किया---(हमने उस जगह का नाम पहले से ही भूत बंगला रख रखा था) हम वहाँ पहुंचे और सारे दोस्त एक साथ रहे और एक साथ ही कमरे मे एंट्री ली।सभी ने अपने फोन की टार्च ऑन कर रखी थी (उस टाइम हमारे पास कीपैड फोन हुआ करता था जो केवल बात करने के लिए था) सारे दोस्त ग्रुप मे एक साथ ही जाते जहाँ भी जाते, हमने सारा कमरा देखा फुल अँधेरा । एक एक जगह घूमने के बाद हम पिक्चर हॉल (थिएटर ऑफिस) के ऑफिस मे पहुंचे वहाँ हमने देखा काफी ज्यादा फाइल्स,पिक्चर रील,रजिस्टर,टिकट के बण्डल, और एक खास बात वहाँ पर एक फोटो रखी हुई थी जो उस थिएटर के मालिक या उसके पिता की थी जिसपर हार लगा हुआ था जो फोन कि रौशनी मे साफ नज़र आता था। सभी दोस्तों ने कहा कि यही है शायद जो भूत बनकर डराता है और हसीं मज़ाक भी चला।फिर शाम होते देख हम वापस आ गए और साथ मे कुछ रजिस्टर और टिकट के बंडल भी लाए। और एक दिन दो दोस्तों मे शर्त लगी की अकेले कौन जाएगा तो पहले एक दोस्त उसी तरह अकेले दिवाल तरफ से उसी थिएटर मे पंहुचा और पूरी सेकंड स्टोरी और छत पर भी जाकर
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