और एक दिन दो दोस्तों मे शर्त लगी की अकेले कौन जाएगा तो पहले एक दोस्त उसी तरह अकेले दिवाल तरफ से उसी थिएटर मे पंहुचा और पूरी सेकंड स्टोरी और छत पर भी जाकर वहाँ से इशारा किया और चला आया और ऐसे ही दोबारा मैं गया और उसी तरह से घूम कर आया और ऊपर सर इशारा किया।और साथ मे और टिकट कर बंडल लाया जो देखने मे पूरी पैसे के नोट के बराबर दिखती थी।इस तरह से शर्त बराबर रही।
टिकट के बंडल लाने का एक रीजन ये भी था कि दूसरे दिन हमारे गाँव का मेला था और हमारे गाँव (शेखपुर रसूलपुर) मे 3-4 दिन के मेले मे दंगल,डान्स कॉम्पिटिशन को देखने हम ज्यादा जाते थे और वहीं पर हमने सारे टिकट के बंडल को टिकट कि तरह या नोटों की तरह हमने उड़ाया और खूब मज़े किये।
एक मज़े की बात ये भी हुई की एक दोस्त उसी टिकट को ले जाकर एक जलेबी बेचने वाले को देते हुए बोला एक किलो जलेबी मेला मालिक मंगाए है और जलेबी वाला भीड़ कि वजह से टिकट को पढ़े बगैर ही एक किलो जलेबी तौल कर दे भी दी।और हमने उस जलेबी वाले को याद करके खूब हसीं मज़ाक हुआ और हमने जलेबी भी खाई।दूसरे दिन कोचिंग मे हमने ये बात याद करके खूब मज़े लिए और सर को भी हसाया।
टॉपिक पर आते हैं- उस थिएटर मे पता नहीं लोगों को भूत कैसे दिखा,लेकिन दावा बहुत से लोगों ने किया था,ज्यादातर वहाँ काम कर रहे वर्कर, और भी बहुत लोगों ने कहा था इसीलिए शायद वो थिएटर बंद हुआ था।बाद मे उसमें एक स्कूल भी खोली गई वो भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई और उसे भी बंद करना पड़ा- स्कूल के गार्ड और कुछ लोगों को भी वहाँ के भूत ने कई बार पटका था इसलिए कोई वहाँ जाने को तैयार नहीं हुआ।बाद मे काफी साल के बाद उसमें एक गेस्ट हाउस(रूप लक्ष्मी गेस्ट हाउस) खोला गया, जो वो भी नहीं चल पाया।अब वो जगह आज भी बंद ही है।
सबसे खास बात ये है की इतनी डरावनी कहानियाँ और लोगों के कहने के बाद भी हम इतनी कम उम्र मे हम वहाँ घूम आए।
जिसे याद करके हम आज भी खूब हसते हैं उस मोमेंट को याद करके।उस दोस्तों मे कुछ दोस्त आज भी कॉन्टेक्ट मे है जिनमें(त्रिभुवन,संजीव,वीरेन्द्र, दिनेश....ऐसे ही कुछ दोस्त है,कुछ का तो नाम ही याद नहीं आ रहा।)
ये एक सत्य घटना है।इसकी यादें आज भी हमारे जाहेन मे ताज़ा है।
त्रिभुवन गौतम s/o शिव लाल
शेखपुर रसूलपुर चायल कौशाम्बी उत्तर-प्रदेश भारत।