पिछले अंक की कहानी भूतिया चक्की में आपने पढ़ा कि किस प्रकार दिनेष दिल्ली से अपने गांव आया तो उसके दादाजी ने अपने बचपन की कहानी सुनाई जिसमें गांव की चक्की में उनका एक भूत से सामना हुआ। यह कहानी सुनकर अगली सुबह दिनेष अपने कुछ दोस्तों से बोला - क्यों न हम वो बगीचा देखकर आयें, जहां पर दादा जी का चक्की वाले भूत से सामना हुआ था। इस पर उसके दोस्त राजी हो गये और चक्की की ओर चल दिये। अब वहां उस बगीचे को किसी अन्य व्यक्ति ने खरीद लिया था। जहां उसने बगीचे को काटकर खेतों का रूप दे दिया था। बच्चे खेतों को देखते हुए वहां से गुजरने लगे तो दिनेष का दोस्त पप्पू जो थोड़ा षरारती था, वोे दिनेष को बोला - “यही वो खेत है, जहां कभी बगीचा हुआ करता था। जहां की बात कल रात को दादाजी ने बतायी थी, यही आसपास कहीं चक्की भी होगी और नदी भी। चलो देखते हैं, क्या अब भी वहां पर वो चक्की वाला भूत है।”
सूखी कंटीली घास और झाड़ियों वाले कच्चे रास्ते से सभी दोस्त खेत से होते हुए जहां पर आलू बोये हुए थे, सीधे चक्की के पास पहुंच गये। उसके पीछे एक छोटी सी नदी भी थी। जहां पर चक्की चलाने के यंत्र लगे हुए थे। पत्थर और चिकनी मिटटी से बनी पुरानी और हरी काई लगा हुआ एक झोपड़ीनुमा कमरा था जिसके बाहर एक मोटी और मजबूत लकड़ी का दरवाजा लगा हुआ था, उसकी कुण्डियां पुराने जमाने की लगती थी जो मोटी और भारी लोहे की अत्यन्त ही मजबूत थे। बेषक झोपड़ी पुरानी प्रतीत होती थी लेकिन इतनी पुरानी होने के बाद भी मोटे पत्थर और मिटटी के कारण वह अब भी अत्यन्त मजबूत जान पड़ती थी।
घराट अब भी खेतों से कुछ दूरी पर स्थित था, जहां अब भी कुछ बहुत पुराने पेड़ आसपास बगीचा होने की गवाही देते थे। घनी झाड़ियां और परालियों के ढेर दूर से घराट को छिपाये रखते थे। जिसके कारण उन झाड़ियों और पेड़ों को पार करके ही घराट तक पहुंचा जा सकता था। घराट के पीछे नदी और नदी के पीछे एक छोटा मिट्टीवाला एकदम सूखा पहाड़ था, जो कंटीली झाड़ियों से भरा पड़ा था, जहां से अक्सर सांप-बिच्छू निकलना आम बात थी।
घराट के पास पहुंच कर सब बच्चों ने देखा दरवाजे में एक मोटा सा ताला लगा हुआ है, जिसके कारण अंदर नहीं जाया जा सकता। तभी पप्पू दौड़ता हुआ घराट के चारो तरफ मुआयना करने लगा और सबको आवाज देकर बोला - इधर तो आओ, यहां पीछे एक रोषनदान है।
सभी बच्चे घराट के पीछे चले गये, जहां ऊपर की ओर एक रोषनदान लगा हुआ था लेकिन वहां तक पहुंच पाना बच्चों के बस की बात न थी क्योंकि रोषनदान करीब 5 फीट ऊचाई पर था। तभी कुछ बच्चे मिलकर पास पड़ा हुआ एक मोटा सा पत्थर उठाकर ले आये, जिस पर चढ़कर बच्चे एक-एक करके रोषनदान से अंदर की ओर झांकने लगे। अंदर मकड़ी के जाले और गंदगी फैली पड़ी थी, ऐसा जान पड़ता था जैसे सालों से वह घराट बंद पड़ा होगा। दिनेष ने अंदर झांक कर देखा तो घराट को चलाने से संबंधित कुछ औजार रखे थे जो अब बेकार जान पड़ते थे। तभी पप्पू ने दिनेष को बोला, तेरे कंधे में सांप। दिनेष ने अपने कंधे की तरफ देखा, तो एक सांप उसके कंधे गिरा हुआ था। जिसे देखकर दिनेष जोर से चिल्लाया और सांप के झटकते हुए पत्थर से दूसरी ओर कूदा, जिस कारण वह मिट्टी में गिर पड़ा। तभी पप्पू और सभी बच्चे जोर से हंसने लगे। दिनेष तो नकली सांप से डर गया, असली आ जाता तो क्या होता?
उनका षोर सुनकर पास के खेत का किसान आ गया, जिसने बगीचे वाला खेत खरीदा था। बच्चों को षरारत करते हुए वो उनसे बोला, षरारत मत करो, तुम्हें पता नहीं इस घराट में भूत है।
तभी पप्पू बोला - हम नहीं मानते, कोई भूत-वूत नहीं होता। ये सब हमें डराने के लिए झूठी बातें हैं।
दिनेष - हां, हमने अभी अंदर देखा था, वहां कुछ भी नहीं है।
सभी बच्चे यही कहने लगे, यहां कुछ नहीं है।
तभी किसान गंभीर होकर बोला - तुम्हें नहीं पता, यहां पर वाकई एक भूत है, जो इस घराट की चौकीदारी करता है और जो कोई भी इसके आसपास फटकता है या घराट से छेड़छाड़ करता है, तो उनके साथ वो कुछ भी कर सकता है। चाहे पूरे गांव में इस घराट वाले भूत की दहषत है लेकिन इस भूत के कारण मुझे तो हमेषा फायदा ही हुआ है।
पप्पू - वो कैसे सुर्जन चाचा?
सुर्जन - क्योंकि मेरा खेत जो पहले घराट के सामने एक बगीचा था, उस भूत को उस बगीचे से भी बड़ा लगाव था। इसलिए अब वो खेत की भी रखवाली करता है। अगर कोई खेत के आसपास फटकता है, तो भूत उसको पटकता है।
दिनेष - अच्छा, अगर ऐसी बात है तो कोई ऐसी घटना बताओं जिससे हमें यकीन आ जाये, कि आप सच कह रहे हैं और भूत ने बगीचा काटने पर आपको क्यों कुछ नहीं कहा?
सुर्जन - इसके बारे में षाम को बताऊंगा, जहां तुम्हारे दादा जी, रामरतन और सभी गांव वाले भी इसे सुनेंगे और तुम्हें तुम्हारे दादाजी और रामरतन बतायेंगे कि इस बात में कितनी सच्चाई है, क्योंकि उस दिन तुम्हारे दादाजी, रामरतन, मैं और कुछ और लोग हमारे साथ थे। जब यह घटना घटी।
अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं तो मैं तुम्हें वो भूत दिखा सकता हूं, बस तुम्हें थोड़ी देर अंधेरा होने तक रूकना होगा यहां से थोड़ी दूर दूसरे खेत में कुछ ऊंचाई से मैं तुम्हें नदी के पीछे पहाड़ी में भूत दिखा सकता हूं। जो वहीं से घराट पर निगरानी रखता है।
सभी बच्चे सुर्जन चाचा के पीछे-पीछे दूसरे खेत पर चले गये जो थोड़ी ऊंचाई पर स्थित था।
सुर्जन चाचा - बच्चों यहां खड़े हो जाओ और उस पहाड़ी की तरफ ध्यान से देखो। सभी बच्चे उस तरफ देखने लगते हैं। उन्हें एक आदम कद की कोई आकृति दिखाई पड़ती है, जिसने लाल और नीले रंग का चोगा पहना हुआ था, उसके सिर पर बड़े बाल थे और उस समय उसने उनकी ओर पीठ की हुई थी।
सुर्जन चाचा धीरे से बोले - बच्चों षोर मत करना, अगर उसने हमारी ओर देख लिया तो हमारी खैर नहीं। सभी बच्चों में सन्नाटा पसर गया और सांस रोककर उस ओर देखने लगे।
ठंडी हवा चल रही थी जिसमें घास की खुषबू आ रही थी। कीड़ों पतंगों की तेज आवाज इस मंजर को ओर भयानक बना रही थी। तभी उन बच्चों में से एक बच्चा धीरे से बोला, जो थोड़ा चालाक था। सुर्जन चाचा मुझे तो ये कोई भूत नहीं लग रहा, जरूर ये हमारा वहम है, देखो वो हिल भी नहीं रहा।
सुर्जन चाचा - ठीक है, तुम सभी बैठ जाओ, ताकि वो तुम्हें देख न पाये, मैं अभी दिखाता हूं कि वो सच में भूत है। इतना कहते ही सुर्जन चाचा सीटी बजाते हैं और नीचे होकर बैठ जाते हैं। इतने में भूत जोर से हिलने लगता है। यह देखकर बच्चों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। थोड़ी देर बाद भूत षांत होता है। तो धीरे से सभी गांव की ओर बढ जाते हैं। .........आगे कहानी क्रमषः