उषा की लाली सा रक्तिम
सकुचाती काँपती
ये स्निग्ध अधर तुम्हारी,
प्रेम का सागर छुपाये
लाज में सिमटी वधु सी
झुकी झुकी आंखें तुम्हारी,
छीन निंदिया निशा की
बीच भौंहों के सजी
आलोकित सी बिंदिया तुम्हारी,
तुम्हें क्या पता
जीवन है किसी का
उच्छ्वसित वक्ष को ढंकती
उलझी सी शाम केश तुम्हारी..।।