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मेरी कविता

11 सितम्बर 2021

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मेरी कविता,
मेरे हर संकल्पित शब्द,
अंतरिक्ष मे गोते लगाते
डूब जाते थे कभी
मेरे ही भीतर।
अब ये बढ़े चले जाते हैं
तुम्हारी ओर...
तुम्हे हंसाने, तुम्हे बहलाने
तुमसे
सलोने संयोग की आस लिए..।
ये (मेरे शब्द)
पुकारते हैं तुम्हें,
चाहते हैं बनना
तुम्हारा सम्बल, हर दिन हर पल का
ये कहती हैं सुनो,
कोई दुख इतनी बड़ी नहीं
जो मुझे भेदकर
तुम तक पहुंचें..।
तुम अपनी हथेलियों पर
स्नेह दीप जलाए रखना,
ताकि पढ़ सको मुझे
रात के अंधेरों में भी..।
जब मैं गुजरूँ,
तुम्हारे हृदय से होकर
तुम्हारी संवेदनाओं को छूते हुए,
मुझे वहीं रोक लेना,
बहता रहूंगा तुम में
रक्त कणिका बन के,
फिर सोंख लिया करूँगा
तुम्हारे हर दुख..।

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