चिंकी और किष्ना अपनी दैनिक आजीविका अर्जित कर अपने निमित्त समय पर घर की ओर चल दिए..।
घर जाकर उन्होंने वो चटनी अपनी माँ को दी ये कहकर की किसी मुसाफिर ने पैसों के ऐवज में दी हैं..।
रात का खाना उन सभी ने उस चटनी के साथ खाया..।
चिंकी के माता पिता कचरा बिनने का काम करते थे... वो गली गली घुमकर प्लास्टिक की बोतलें और पोलिथिन जमा करते थे और फिर नुक्कड़ पर कबाड़ की दुकान पर बेच देते थे...।
इस तरह घर के चारों सदस्य किसी ना किसी तरह कमाई करके अपना जीवन यापन कर रहे थे..।
सब कुछ ऐसे ही सालों से चल रहा था..।
लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब ना सिर्फ इस परिवार को बल्कि इनके जैसे लाखों परिवारों का जीवन जीना कठिन हो गया था..।
चिंकी के परिवार पर तो वो समय काल बनकर आया और उनका सब कुछ ले गया....।
वो समय था कोरोना काल...।
चिंकी और किष्ना की आजीविका का जरिया था रेलवे...।
लेकिन कोरोना काल में रेल यात्रा बंद हो गई थी..। अगर कहीं कहीं थी भी तो यात्री गिनती मात्र...।
जिस एरिया से चिंकी और किष्ना अपनी आजीविका करते थे वहाँ तो रेलवे पूरी तरह से थप हो चुका था..।
हर इंसान घर में कैद हो गया था... ना कोई घर से निकलता था... ना कोई काम होता था..। ऊपर से बिमारी का डर.... ऐसे में इंसान ही इंसान से खौफ खाकर बैठा था..।
चिंकी के परिवार के हालात भी दिन ब दिन बद से बदतर होते गए..।
रोजाना कमाई करके खाने वाले लोगों के पास जमा पूंजी ना के बराबर ही होती थी..।
कुछ दिन तो घर में मौजूद राशन पानी से निकल गए..।
उसके बाद कई लोगों ने और सरकार की तरफ़ से राशन भेंट किया...। कुछ दिन उनसे भी निकाल दिए..। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके पास खाने को कुछ नहीं था..। एक दिन... दो दिन... तीन दिन.... सिर्फ पानी के सहारे निकाल दिए...।
लेकिन कब तक बर्दाश्त करते...। एक रात चिंकी की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई...। उसकी माँ पड़ोस में मौजूद हर घर में कुछ खाने के लिए मांगने गई..। लेकिन वहाँ सभी घरों का हाल ऐसा ही था..। कहीं कोई बुजुर्ग बिमार था तो कहीं कोई बच्चा खाने के लिए रो रहा था..।
कहने को तो सरकार ने लोगों ने बहुत सहायता प्रदान की थी... लेकिन ऐसे परिवार भी थें जो ऐसे हालात से जुझ रहें थे..।
बात बिगड़ती जा रहीं थी.. पूरी रात यहाँ वहाँ भटकने के बाद आखिर कार चिंकी की मां को कहीं से कुछ चावल मिले...। वो उसे लेकर तुरंत घर आई और थोड़े चावल चिंकी को और थोड़े चावल किष्ना को खिलाए..।
वो रात तो जैसे तैसै निकल गई...। लेकिन ये एक दो दिन की बात तो थी नहीं...। महिनों ऐसे निकालना ना मुमकिन था..।
एक रात चिंकी के माता पिता आपस में बातें कर रहे थे..।
माँ:- तुम्हें नहीं लगता हमें भी ऐसा कुछ कदम उठा लेना चाहिए... जो श्यामा ने किया..!!
चिंकी के पापा:- भाग्यवान तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं क्या.. जानती भी हो तुम क्या कह रहीं हो..।
तो ओर क्या कहूँ चिंकी के बाबा... इस तरह पल पल अपने बच्चों को मरता हुआ देखुँ..!!
भाग्यवान मैं समझता हूँ... मुश्किल वक्त हैं... लेकिन ये तरिका सही नहीं हैं... और फिर हमारे बच्चे इतने होनहार हैं.... उनमें कितना हूनर हैं... जब वक्त सही होगा... सब ठीक हो जाएगा... थोड़ा सब्र करो..।
सब्र.....अजी सुना नहीं आपने लोग क्या कह रहे हैं.. ये पूरा साल ऐसे ही निकलेगा.. आप समझ भी रहे हैं.... साल..... कैसे निकलेगा पूरा साल...। मैं ये नहीं कह रहे की मेरे बच्चे काबिल नहीं हैं... या उनमें कोई हूनर नहीं हैं... लेकिन ऐसे बिना रोटी के वो कब तक जीवित रह पाएंगे वो सोचा हैं आपने..!!
अरे भाग्यवान... मैं कल पास की बस्ती में जाउंगा.... सुना हैं वहां सरकार ने राशन के लिए कैंप लगाया हैं.... वहाँ से कुछ ना कुछ लेकर आऊंगा..।
अच्छा जी.... बाहर के हालात देखें हैं आपने.... ना जाने कब किस को बिमारी जकड़ ले.... राशन के साथ साथ बिमारी भी आ गई तो...!!
भाग्यवान तुम बेवजह डर रही हो... जो रास्ता तुम कह रहीं हो वो तो मैं हरगिज़ नहीं करूँगा...। बिमारी से मरना मंजूर हैं.... लेकिन अपने ही हाथों से अपने बच्चों को.... मार दूं.....।
नहीं इतनी हिम्मत नहीं हैं मुझमें..। मुझे तो समझ नहीं आ रहा तुम एक माँ होकर ऐसा कैसे बोल रहीं हो..।
हाँ माँ हूँ.... तभी अपने बच्चों को ऐसे तड़पते हुए नहीं देख पा रहीं..। पल पल भूख की वजह से तड़प रहें हैं मेरे बच्चें...।
मैं जानता हूँ.... लेकिन सिर्फ हमारा ही परिवार तो ऐसे नहीं गुजरा कर रहा हैं ना..!! लाखों लोग ऐसे ही जी रहे हैं... फिर क्या सब मर रहे हैं क्या..!
ठीक हैं.... मत समझों तुम भी... मरने दो.... पल पल ऐसे ही.... लेकिन मैं ऐसे अपने बच्चों को नहीं देख सकती..। मैं ही चली जाती हूँ....। तुम्हारा भी थोड़ा बोझ कम हो जाएगा..।
चिंकी के पापा ने ये सुना तो वो अपना आपा खो बैठे और उन्होंने चिंकी की माँ को थप्पड़ दे मारा... और कहा:- तुम पागल हो गई हो भाग्यवान.... तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं...।
बेहतर होगा अब हम इस बारे में बात ही ना करे...।
नहीं करुंगी बात... देखो अपने बच्चों को मरते हुए... बहुत हिम्मत हैं ना तुममे.. लड़ो इस बिमारी से... भूख से..। मैं कुछ नहीं बोलूंगी अभी..।