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कुछ ख्वाहिशें मेरी भी...

12 जनवरी 2022

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किष्ना और चिंकी..... 
इनकी कहानी मनगढंत नहीं है.... 
इन दोनों से मेरी मुलाकात एक सफर के दौरान हुई थी...। 
क्या हुआ आगे इनकी जिंदगी में और कैसे मुलाकात हुई मेरी इनसे जानते हैं इस अंतिम भाग में....। 

तारीख 5 जून 2021....
अपने पिताजी की असामयिक मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार से मैं अपने ससुराल रेलवे से वापस आ रही थी....। 

सफर लंबा था और तन्हा भी.... ऐसे में आस पास का माहौल कितना ही खुशनुमा क्यूँ ना हो.... कुछ अच्छा नहीं लगता..। 
क्योंकि आज मैं अनाथ होने का दर्द अच्छे से समझ सकतीं थी..। 

दोपहर से सफर करते करते शाम ढलने को आई....। एक तकनीकी खराबी की वजह से हमारी ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर रुकी हुई थी...। तकरीबन बीस मिनट से..। 
एकाएक दो बच्चे हमारे बर्थ में आए और अपना करतब दिखाने लगे..। कभी गाना गाकर तो कभी दो पत्थर रगड़ कर मधुर संगीत बजा कर तो कभी अपने शरीर को एक छोटी सी रिंग में से निकाल कर...। 
पहले तो मैने उनपर ध्यान नही दिया क्योंकि मैं खुद एक अजीब स्थिति में थी..। 
चाहे अनचाहे उन पर कभी नजर पड़ जाती थी...। 

कुछ देर बाद वो दोनों बच्चे सबसे खाना या रुपये जो भी लोग दे.... मांगने लगे..। 
फिर वो ना जाने कहाँ चले गए..। 

कुछ देर बाद जब मैं वाशरूम गई तो देखा वो दोनों बच्चे वाशरूम के बाहर.... दरवाजे के बिल्कुल पास बैठे हुए थे..। 
मैने उनसे थोड़ा भीतर बैठने को कहा..। तो वो एक नजर बस मुझे देखने लगे... पर कुछ बोले नहीं फिर थोड़ा भीतर की ओर खसक गए..। 
मैं वाशरूम चली गई..। बाहर आकर देखा तो लड़का रो रहा था..। 
अपने स्वभाव वश मुझसे रहा नहीं गया और पुछ बैठी..-क्या हुआ बेटा तुम रो क्यू रहें हो..? 
कुछ चाहिए तुम्हें... पैसे चाहिए... खाना चाहिए... बोलो क्या चाहिए..। 
मेरे इतना पुछते ही लड़की बोली:- कुछ नहीं चाहिए मेमसाब.... बस ये ऐसे ही बार बार रोता रहता हैं... पागल हैं.... समझता ही नहीं हैं..। 
मैनें फिर से कहा:- ऐसा क्या चाहिए इसको!!! बताओ मुझे शायद मैं कुछ मदद कर पाउं..!! 
एकाएक वो रोता हुआ बच्चा बोला :- माँ चाहिए मुझे... आप दोगे..?? 
इतना सुनते ही लड़की भी रोने लगी और उस लड़के को रोते रोते बोली:- तु चल यहाँ से किष्ना... चल उतर.... मैं तुझे समोसा खिलाती हूँ ...आ... चल... 
ऐसा कहते कहते वो उसे खिंचकर ट्रेन से नीचे ले जाने लगी..। 

ये सब देखकर पता नहीं क्यूँ एक अजीब सी सिहरन उठी... उन बच्चों के बारे में जानने की और उनकी मदद करने की..। 

मैंने देखा वो दोनों नीचे उतर कर पास में बनी दूसरी रेल की पटरी पर जाकर बैठ गए और एक दूसरे को देखें जा रहे थे रोते जा रहे थे..। 

तभी एक रेलवे कर्मचारी आया और उसने आकर ये घोषणा की कि शायद ट्रेन अभी भी कुछ घंटों तक नहीं चल पाएगी...। 

ये सुनकर कुछ यात्री उसी प्लेटफार्म पर उतरने लगे... जिनका गंतव्य नजदीक था..। कुछ ऐसे ही प्लेटफार्म पर टहलने के लिए उतर गए। 

पता नहीं क्यूँ पर मैं भी उतरी और स्टेशन पर मौजूद एक स्टाल से दो समोसे लिए और उन बच्चों के पास चल दी..। 
पता नहीं ये इतेफाक था या कुदरत का संदेश..। 

उनके पास जाकर  पहले उन दोनों बच्चों को पानी पिलाया और चुप करवाया फिर उनको लाए हुवे समोसे दिए..। 
शायद वो दोनों बहुत भूखे थे इसलिए उन्होंने झट से समोसे ले लिए..। लेकिन जब मैने उनसे चटनी के साथ खाने को कहा तो उनकी आंखें फिर से भर आई..। 
उसके बाद बहुत कहने पर उन्होंने अपनी आपबीती मुझे बताई..। 
उनके पिता खाने की तलाश में उनके घर से दूर गए थे जहाँ से उनको कोरोना हो गया था..। वहा के स्थानीय लोगों और पुलिस ने उनकों एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया था...। उनकी माँ और उन दोनों की भी रिपोर्ट करवाई गई... जिसमें उनकी माँ को भी कोरोना आया..। उनको भी उसी अस्पताल में भर्ती कर दिया गया..। वो दोनों कई दिनों से भूखे थे शायद इस वजह से या फिर शायद सही इलाज या समय पर इलाज ना मिलने की वजह से पांच दिन बाद एक अस्पताल का कर्मचारी उनके घर गया और उन मासूम बच्चों को खबर दी की उनकी माँ की मृत्यु हो गई हैं..। 
दो दिन बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई..। 
कोरोना की वजह से उन दोनों को अंतिम दर्शन करने भी नहीं दिया गया... ना ही उनका कोई रिश्तेदार था जो जा सकता..। मजबूरन एक पड़ोसी उन दोनों का अस्पताल में ही अंतिम संस्कार करके आया..। कुछ दिनों तक तो पड़ोस में रहने वाले लोग उनकी संभाल करते रहे..। लेकिन कोरोना के डर की वजह से धीरे धीरे सबने उन मासूम बच्चों से दूरी बना ली..। 
आखिर कार उन दोनों ने अपनी बस्ती छोड़ दी और स्टेशन पर और उसके आस पास रहकर ही अपना ठिकाना बना लिया..। 

कभी भीख मांगकर तो कभी तमाशा दिखाकर अपनी जिंदगी का गुजारा करने लगे..। 

बहुत पुछने पर पता चला की चिंकी बड़ी होकर गायक बनना चाहती हैं और किष्ना पुलिस आफिसर...। 

उनकी व्यथा सुनकर दिल भर आया था की ना जाने कितने ऐसे बच्चे होंगे और कितने ऐसे लोग.... जो किसी ना किसी वजह से अपनों से दूर हो चूकें हैं..। 


कुछ देर पहले मैं अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहीं थी.... क्योंकि मैं अपने माँ और पिता दोनों को खो चुकी थी..। 

आज मेरी उम्र चालीस वर्ष की हैं फिर भी मुझे माँ पापा की कमी महसूस होती हैं... फिर ये तो मासूम से छह सात साल के बच्चे हैं.... इन पर उस वक्त क्या बित रहीं होगी.... शायद मैं अच्छे से समझ सकतीं थी..। 

लेकिन मैं खुद एक ऐसे परिवार में रहतीं थी जहाँ मुझे अपने मन का करने पर पाबंदियां थी... ऐसे में उन बच्चों के लिए मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकतीं थी.... लेकिन उनको ऐसे छोड़ भी नहीं सकतीं थी.... इसलिए उस वक्त उन दोनों को साथ ले जाना ही उचित समझा..। 


उन दोनों बच्चों को अपने साथ अपने शहर ले आई और अपनी एक मित्र की मदद से उन्हें एक अनाथालय में दाखिल करवाया..। मैं महिने में दो तीन बार उनसे मिलने जाती रही..। जितना मुनासिब हो सकता था.... उतना उनकी मदद कर रहीं हूँ..। 



लेकिन कभी कभी दिल आज भी उनको देखकर बहुत सवाल खड़े कर देता हैं..। 


वो आज पहले से अच्छी स्थिति में हैं.... लेकिन उनकी ख्वाहिशों का क्या...?? 
उनके सपनों का क्या...? 
क्या वो कभी सच हो पाएंगे..? 
क्या अनाथ आश्रम में रह रहे बच्चों के सपने कभी पूरे होतें हैं..?? 


सवाल बहुत हैं.... लेकिन जवाब शायद मेरे पास भी नहीं..।
मैं  किसी भी संस्था पर सवाल नहीं कर रहीं हूँ.... जितना वो करते हैं शायद उतना भी कोई ना कर पाएं...। 

लेकिन सवाल सिर्फ इतना ही हैं..... ख्वाहिशों का क्या..? 


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