विश्व शांति की बात करने वाला देश आज अचानक चाणक्य की नीति पर सिर्फ बात ही नहीं बल्कि विश्वास भी करने लगा. चाणक्य सत्ता पाने का साधन ज़रूर हो सकता है पर मुक्ति पाने का नहीं. चाणक्य की कोई अपनी नीति नहीं थी बल्कि वो शकुनि नीति का समर्थक था. उसने जो कुछ कहा या जो कुछ किया वो सिर्फ और सिर्फ शकुनि नीति थी. महाराजा नन्द की ही नहीं बल्कि उसके बच्चों तक की हत्या वो भी धोखे से, क्या सत्यमेव का, कृष्ण नीति का उल्लघन नहीं था. क्या बच्चों की हत्या को सत्य की जीत बताया जा सकता है? बच्चों की हत्या धोखे से द्रोण पुत्र अश्व्थामा ने की थी और उसे कृष्ण ने श्राप दिया था. तब हम चाणक्य की बच्चों की हत्या को कैसे सत्य की जीत बता सकते है? राजा पोरस और उनके पुत्र की दुर्घटना में हत्या जो कि चाणक्य ने इसलिए कराई थी ताकि चन्द्रगुप्त को राजा बनाया जा सके, इसके अलावा भी चाणक्य ने ना जाने कितनी हत्याएं कराई और आज वही व्यक्ति पूजनीय है? राष्ट्र को बनाने का काम ना तो चन्द्रगुप्त ने किया क्योकि वो सिर्फ चाणक्य की भक्ति करते रहे और चाणक्य ब्राह्मणवाद का विस्तार, राष्ट्र को बनाने का काम नन्द के प्रधानमंत्री और भारत के मूलनिवासी मुद्राराक्षस ने किया. आज मुद्राराक्षस को कोई नहीं जानता क्योकि वो ब्राह्मण नहीं था, वो इस देश का मूलनिवासी था और नन्द का मंत्री था, और वो ही ज्ञानी था इसलिए उसे चन्द्रगुप्त का मंत्री बनाया गया. चन्द्रगुप्त अपनी जीत पर और इस धोखे की राजनीति से तंग आने पर ब्राह्मणवाद को त्याग कर जैन धर्म को अपना लिया. यह बात भी चाणक्य को अच्छी नहीं लगी और उसे राजा का पद त्यागने का आदेश दिया और उसके बेटे बिंदुसार को राजा घोषित कर दिया. बिन्दुसार भी महान राजा ना बन सका उसने अपने ही पुत्र अशोक के साथ कभी भी न्याय नहीं किया क्योकि अशोक के विचार क्रांतिकारी थे और उसकी माँ शायद ब्राह्मणवादी ना होकर मूलनिवासी थी, इसलिए ब्राह्मणवादियों को अशोक पसंद नहीं था. अशोक ने विद्रोह किया और राजसत्ता प्राप्त की, ब्राह्मणवाद को छोड़ कर बुद्ध धर्म अपना लिया. वो जानता था कि ब्राह्मणवाद में मूलनिवासियों के लिए कोई स्थान नहीं है इसलिए उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया. चाणक्य नीति ब्राह्मणवादी नीति है, शकुनि नीति है , जिसका विरोध स्वयं कृष्ण ने किया. ( कृष्ण भारत के मूलनिवासी थे ना कि आर्य. ) (आलिम)