चिंगारीयह कविता नहीं,चिंगारी है...फिर दिल दिल सेजाग उठेगीराष्ट्र पुरुष को स्मरते, स्मरतेइसकी अन्तिम सास रुकेगी ।। धृ ।।यह शब्दों का खेल नहींना कोई मनोरंजन की धारायह स्मरण है सब उनकाजिनका,राष्ट्र समर्पित जीवन सारा ।। १ ।।यह विचारोकी धारा हैराष्ट्रधर्म कि ज्वाला हैव्यक्
सच कहाँ हैं?कब्रिस्तानमे राख़ नहीं मिलती, मिट्टी-मिट्टी मे दफन हो जाती हैं लाशे।समशान मे हैंराख़,एक चिंगारी सेआग लगकर शांत हो जाती चिताए। लौट जाते हैंवह लोग, ख्वाबोंके समुंदर मे भ्रमित गोते लगाते हुए।दफन हो जाना, भसम हो जाना,ताबबूतों मे सिमट कर रह जाना अंत हैं।यह सारा दृश्य, आंखो की पालको को भिंगोते ह