सच कहाँ हैं?कब्रिस्तानमे राख़ नहीं मिलती, मिट्टी-मिट्टी मे दफन हो जाती हैं लाशे।समशान मे हैंराख़,एक चिंगारी सेआग लगकर शांत हो जाती चिताए। लौट जाते हैंवह लोग, ख्वाबोंके समुंदर मे भ्रमित गोते लगाते हुए।दफन हो जाना, भसम हो जाना,ताबबूतों मे सिमट कर रह जाना अंत हैं।यह सारा दृश्य, आंखो की पालको को भिंगोते ह