चुपके चुपके..
आई आई टी कॊलेज में रीमा को इंग्लिश की लेक्चरर की जॉब मिल गयी थी वह फूली नहीं समा रही थी.और होना भी यही चाहिए था इतनी मेहनत के बाद अब अपने सपनों को पूरा करने का वक़्त जो आ गया था. सब कुछ ठीक हो रहा था. लेडिज हॉस्टल में उसने एक रूम भी ले लिया था. क्यूँकी उसका अपना शहर जोधपुर यहां से काफी दूर था तो उसने हॉस्टल में ही रहने का फैसला किया ताकि बेफिक्र होकर अपनी जॉब कर सके और कॉलेज भी उसी कैम्पस में था.
इस तरह उसका रोज का बस या टैक्सी का किराया भी बच रहा था. साथ ही खाने और पीने के समान की खरीदारी की भी टेंशन नहीं थी. हॉस्टल अच्छा था आम हॉस्टल जैसी कोई मारामारी नहीं थी. खाना भी घर जैसा ही था. कुल मिलाकर उसने हर इंतजाम सही से हो जाने के लिए भगवान को धन्यवाद दिया.
रीमा की कॉलेज जॉब शुरू हो चुकी थी. स्टाफ में काफी लोगों से दोस्ती हो गयी थी.सब रीमा के व्यवहार और बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित थे विद्यार्थियों को भी अपनी ये प्यारी सी छोटी सी समझदार मैडम बहुत अच्छी लगने लगी थी.सभी रीमा के सब्जेक्ट में विशेष रुचि लेकर पढ़ने लगे. उन सब को रीमा का पढ़ाने का अंदाज बहुत पसंद आया था इतनी सरलता के साथ विषय के कठिन अध्यायों को समझा देना वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ था.
थोड़े समय बाद रीमा ने पी.एच.डी. के लिए भी अप्लाई कर दिया था. एम.फ़िल. में टॉप टेन में नाम होने के कारण पीएच.डी. में भी आसानी से रिसर्च शुरू हो गयी थी. रीमा के पी. एच.डी. हेड आदेश रस्तोगी मुश्किल से रीमा से तीन या चार साल ही बड़े होंगे पर स्वभाव से बिल्कुल बुज़ुर्ग की तरह लगते थे.सादगी,संजीदगी और शराफत आदेश को अपने हमउम्र लड़कों से बिल्कुल अलग कर देती थी. रीमा भी बहुत खुश थी के यहां भी भगवान ने उसकी बहुत मदद की है.
रीमा को आदेश के लिये धीरे धीरे अलग सा महसूस होता जा रहा था. लेकिन आदेश के चेहरे पर वही भाव थे जो पहले दिन थे. उसने कभी रीमा से फालतू बात नहीं की. रीमा को तो ये भी याद नहीं था के आदेश कभी उसके सामने किसी बात पर हंसा भी था. आदेश एक अनुशासन अपने और रीमा के बीच बनाकर चल रहा था. समय समय पर रीमा को पढ़ाने के तरीकों पर भी सलाह देता था ताकि वह और कुशलता से पढ़ा सके.
रीमा आदेश के लिए अपनी बदलती हुई भावनाओं से बाहर नहीं आ पा रही थी जबकि आदेश एक सख्त चट्टान की तरह ही बिना किसी भावनाओं के जैसा लगता था.पी.एच.डी. लगभग पूरी होने को आ रहीं थी. रीमा को यही फ़िक्र हो रहीं थीं के आदेश से अब कैसे मिला करेगी कैसे आदेश के बिना रहेगी.आदेश के व्यवहार से तो ऐसा ही लगता था के पी. एच.डी.के बाद वो उससे कभी नहीं मिलने वाला था.
कभी कभी खुद पर उसको गुस्सा आने लगता था कि वह क्या कर रही है. उसकी हिम्मत नहीं थी कि आदेश को बता दे कि वह उसके बारे में क्या सोचती है. इतनी बेचैनी कभी भी रीमा ने महसूस नहीं की थी. सबसे हैरानी की बात उसे ये लगती थी कि आदेश ने आजतक उसे अपनी फॅमिली तक के बारे में नहीं बताया था.
या यूँ कहें कि कोई भी आदेश की फॅमिली के बारे में सही से नहीं जानता था.आदेश अपने व्यवहार के कारण सबसे एक फ़ासला बनाकर रहता था.आदेश बहुत हंसमुख है ऐसा बस उसने आदेश के दोस्तों की पत्नियों से सुना था जिनमें से कुछ रीमा के साथ लेक्चरर थीं.लेकिन रीमा को उन सब बातों में कोई सच्चाई नजर नहीं आती थी.क्यूँकी कोई हंसमुख होकर पिछले तीन साल में उसके सामने एक बार भी नहीं मुस्कुराया हो तो उसके बारे में क्या समझना चाहिये कि वह कैसा होगा.
आज पी.एच.डी.की डिग्री उसके हाथ में थी और आदेश ने पहली बार मुस्कुराकर उसको मुबारकबाद दी थी. रीमा का दिल किया कि काश ये लम्हा यहीं रुक जाये वह आदेश से दूर नहीं होना चाहती थी.उसकी आँखें आदेश से दूर होने के खयाल से ही नम हो गयी थीं.
आदेश ने उसको अपना रूमाल देकर कहा, "मिस रीमा अपनी आँखों में आये ख़ुशी के आँसुओं को पोंछ लीजिये नहीं तो सब यही समझेंगे के मैंने बहुत सताया है आपको इसलिए आप रो रही हैं"
रीमा ने खिसियाते हुए आदेश से रूमाल ले लिया.हॉस्टल पहुँचकर उसने तय किया के कल आदेश को मिलकर अपने दिल की सारी बातें बता देगी. बस अब बहुत हो चुका अब वह उससे बात करेगी जो होगा देखा जाएगा.अभी रीमा ये सोच ही रही थी कि उसको नीचे आने के लिए कहा गया उसके घर से कॉल आया था.
वह नीचे आयी और फोन उठाकर कहा, "हैलो,"
उधर से माँ की बहुत चहकती हुई आवाज़ आयी, "हैलो रीमा मेरी बच्ची कैसी है बहुत मुबारक हो तुझे आज डिग्री मिल गयी है. और एक और ख़ुशखबरी है तेरे लिये.. तेरे पापा ने अपने दोस्त के बेटे से तेरा रिश्ता पक्का कर दिया हैँ काफ़ी समय से बात चल रही थी लड़के वाले बहुत ज़ोर दे रहे थे बहुत सोचकर हम लोगों ने हाँ कह दी. वैसे भी अब तेरी पढ़ाई भी पूरी हो गयी है. बस कल छुट्टी लेकर घर आ जा परसों वो लोग आ रहे हैं लड़का तुझसे एक बार मिलना चाहता है.हम लोगों को कोई एतराज नहीं तो हमने हाँ कह दी."
रीमा ठगी सी खड़ी रह गयी बहुत मुश्किल से रुंधे गले से इतना ही कह पायी," माँ,इतनी जल्दी, मुझे कुछ भी नहीं बताया. "
माँ ने उत्तर दिया," बेटा जल्दी कुछ नहीं है जबसे तूने पी.एच.डी. में दाखिला लिया है ये रिश्ता तब से आया हुआ था. फिर खोजबीन की तो लड़के के पिताजी तेरे पिता के बहुत अच्छे दोस्त निकले. काफी समय के बाद दोनों एक दूसरे से मिले थे. तेरे पिता बहुत अच्छी तरह से उनकी फॅमिली को जानते थे. तेरे पिता ने उनको बता दिया था कि तू पी.एच.डी. कर रही है तो उन्होंने कहा हम इन्तेज़ार कर लेंगे. लेकिन पी.एच.डी. करते ही हम फौरन अपने बेटे की आपकी बेटी से शादी कर देंगे. बस अब बाक़ी बात बाद में होगी. कल तुझे घर आना है ये तेरे पापा ने कहलवाया है. "
माँ फोन काट चुकी थी.रीमा थके मन से कमरे में वापस लौट आयी. पूरी रात आदेश का रूमाल लिए रोती रही.सुबह सवेरे कब उसकी आंख लग गयी उसे पता ही नहीं चला.फोन की घंटी से उसकी आंख खुली देखा तो आदेश का फोन था हैरान होते हुए उसने जल्दी से बैठकर फोन उठाया," हैलो सर,जी बताइए"
उधर से आदेश की भारी आवाज सुनायी दी, "मिस रीमा,कल मैंने आपको अपना रूमाल दिया था वो ज़रूर वापस कर दियेगा. और आज से आपको आने की जरूरत नहीं है आपकी पी.एच.डी.पूरी हो चुकी है. God bless you and Good bye"
फोन कट चुका था.रीमा को समझ आ चुका था ये एक तरफ़ा इश्क़ है जिसकी तकलीफ़ सिर्फ उसे ही है.वो संगदिल तो अपना रूमाल भी देने को तैयार ना था.ख़ैर जाने से पहले उसने मन बना लिया था कि रूमाल ज़रूर वापस करके जायेगी.
सामान पैक करके वह आदेश के ऑफिस की तरफ़ आ गयी. आदेश किसी से फोन पर बात कर रहा था उसने इशारे से रीमा को बैठने के लिए कहा और फ़िर फोन बंद कर दिया.
आदेश ने कहा, "मिस रीमा रूमाल धोकर तो लायी हैं ना.या फिर ऐसे ही ले आयीं.कहाँ हैं मेरा रूमाल ?"
रीमा ने रूमाल आदेश की तरफ़ बढ़ा दिया और जाने के लिए खड़ी हो गयी. आदेश उठकर रीमा की तरफ आया और उसके सामने आकर खड़ा हो गया रीमा उसे हैरान होकर देखने लगी. वो हंस रहा था.
आदेश ने कहा," रीमा,एक बार इस रूमाल को खोलकर तो देख लिया होता. इस पर और आदेश के दिल पर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा है. तुम्हारी मोहब्बत एक तरफ़ा नहीं है तुम्हारा आदेश भी उसमें शामिल है और उस दिन से जिस दिन से तुम्हें पहली बार देखा था.तभी कुछ दिन बाद तुम्हारे घर रिश्ता भिजवा दिया था और इत्तेफ़ाक से हम दोनों के पापा दोस्त निकल आए. मैंने ही सबको मना कर दिया था कि तुम्हें कोई कुछ ना बताए ताकि तुम्हारी पढ़ाई में कोई प्रॉब्लम ना हो."
कुछ देर ठहर कर आदेश ने सकते कि हालत में खड़ी रीमा से कहा," तुम्हारे दिल की हर हालत को रोज़ पढ़ लेता था मगर सिर्फ़ तुम्हारे लिये तुम्हें कुछ नहीं बताया. रीमा मैंने तुम्हारी मेहनत को देखा है और मैं चाहता था कि तुम अपने करिअर पर ध्यान दो और अपनी पीएच.डी. पूरी करो. इसीलिए मैंने तुम्हारे घर रिश्ता भिजवा दिया था ताकि इस तरह से मैं और तुम्हारे माता पिता तुम्हारी शादी की तरफ से बेफिक्र हो जाएँ ."
रीमा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गये.खुद को वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी.
रीमा को सोचते हुए देखकर आदेश ने कहा," रीमा क्या इस कॉलेज में अब मिसेज़ आदेश बनकर आना पसंद करेंगी." रीमा ने मुस्कुराते हुए सर हाँ में हिला दिया.
आदेश ने रीमा से कहा, "रीमा, परसों हमारी मंगनी होने वाली है. तुम मेरे साथ ही जोधपुर जा रही हो. मैं रामसिंह को भेज दूँगा वह तुम्हारा सामान मेरी गाड़ी में रख देगा. हमें अभी थोड़ी देर में ही निकलना है मेरी फॅमिली भी वहाँ पहुँच चुकी है. बस हम लोगों का ही इन्तेज़ार हो रहा है."
तभी आदेश के फोन की घंटी बज उठी.आदेश ने फोन रीमा को दिखाया.फोन रीमा के पापा का था. आदेश ने फोन स्पीकर पर डालकर कहा," नमस्ते पापा जी, कैसे हैं आप"
रीमा के पापा ने कहा," नमस्ते बेटा जी,सब ठीक है आपलोगों का इन्तेज़ार हो रहा है. क्या रीमा से आपकी बात हो गयी थी. हमलोगों ने उसे अभी तक कुछ नहीं बताया है. आप लोग कितने बजे तक निकलेंगे?"
आदेश ने मुस्कराकर रीमा की तरफ देखते हुए कहा, "पापा जी अब सब ठीक है.रीमा को सब बता दिया है. "
पापा ने कहा," अरे वाह बेटा चलो ये फिक्र भी ख़त्म हो गयी. लो अपनी माँ से बात करो "
जी, ज़रूर कहकर आदेश रीमा की माँ से बात करने लगा और उसके बाद रीमा की मौसी से बात की फिर रीमा की बुआ से हंस हँसकर बात कर रहा था और रीमा उसको देखकर यही सोच रहीं थीं कि आदेश ने तीन साल में ना सिर्फ मुझे अपना बना लिया बल्कि चुपके चुपके मेरी सारी फॅमिली को भी अपना बना लिया था. ख़ामोशी से अपने और मेरे बीच सब कुछ ठीक करता जा रहा था और मैं कभी जान ही ना सकी के इस हद तक भी कोई किसी को चाह सकता है.इसकी मोहब्बत यकीनन मेरी मोहब्बत से जीत गयी.
NOOR EY ISHAL