इस किताब में सामाजिक समस्याओं के बीच प्यार के खट्टे_मिट्ठे अनुभवों को दर्शाया गया है।
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रविवार का दिन था। ऑफिस बंद था।आज कोई काम करने का मन नहीं कर रहा था, और ना ही कुछ लिखने का मन कर रहा था। हां, इसी क्रम में मुझे चाय पीने का मन हुआ,तब मैंने अपनी श्रीमती को आवाज लगाई"अरे दीपांजलि,जरा मे
"यह लीजिए दीनानाथ जी,आपकी आवेदन को मैंने टाइप कर दिया है।आप इसे अपने प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी के पास लेकर चले जाइए।"टाइप करने वाले ने रुपए अपनी जेब में रखते हुए कहा।दीनानाथ यह सुनकर बोले"यह सब
नौ साल का गरीब लड़का दौड़ता हुआ अपनी विधवा मां के पास जाकर बैठ गया।वह हाफ रहा था। उसकी ऐसी स्थिति देखकर मां बोली"क्या बात है मोहन? इतना हाफ क्यों रहे हो?"अपनी मां की बात सुनकर मोहन बोला"मां, मेरे सभी
सुबह का समय था। मै बरामदे में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था। इसी बीच, मुझे शोर_गुल सुनाई पड़ा। मै अखबार को वही मेज पर रख कर आवाज की तरफ चल दिया। जैसे ही मैं अपनी द्वार से बाहर आया, देखा मेरे घर से थोड़ी ह
भीखू उदास मन से अपनी झोपड़ी के बाहर बैठा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि मानो मन _ही मन किसी गहरी समस्या से उलझा हुआ है। मई का महीना था। उस दिन ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण वह रिक्शा चलाने भी नहीं गया। पत्नी द
सभी लड़के _लड़कियां मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं अपनी_अपनी मां को भेज रहे थे।कोई अपनी मां के लिए कविता लिख रहा था,तो कोई अपनी मां के साथ सेल्फी ले रहा था।कोई तो अपनी मां की आज आरती उतार रहा था।मतलब