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झूठा सच

तीषु सिंह 'तृष्णा'

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दरअसल झूठ के होते हैं ढेरों रूप क्योंकि आज के दौर में इस बेहरुपीये झूठ की साख मजबूत हो गई है पर बिचारा सच अकेला सा ही खड़ा है हो भी क्यों ना सच को तो बस यूँ ही बोल दिया जाता है पर जब झूठ जब झूठ बोला जाता है तो जरूर होता है कोई ना कोई खास सा मकसद या कोई नियत खास सी जब किसी के झूठ में हामी भरी जाती है तो ज़रूर होता है कोई ना कोई खास ईरादा जब अपने कानों से झूठ को सुनने के बावजूद अनसुना किया जाता है तो या तो होती है कोई मजबूरी या होती है कोई नीति सच के साथ जो खड़ा होता उसे आत्मविश्वास है अटल सा कि उसे किस बात का भय वो तो सच के साथ है और सच है उसके साथ पर विडंबना यह है कि उसके अंदर बैठा सच अकेला सा ही खड़ा है ना तो कोई उसे सुनना चाहता है और ना ही उसे कोई जानना चाहता है पर ये क्या सच अकेला तो है फिर भी मुस्कुरा रहा है और सच मुस्कुराए भी क्यों ना वो जानता है कि जो सच के साथ खड़ा है या फिर सच जिसके साथ खड़ा है सही तो हमेशा वो ही होगा |  

jhutha sach

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