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बेवज़ह ज़िंदगी

Ashok Kumar Pachaury

12 अध्याय
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बेवज़ह ज़िंदगी में वज़ह की तलाश - करता हुआ नवयुवक - और उसकी कोशिश के रूप में जन्म लेनी वाली कविताएं - पल पल - प्रतिक्षण जिस - हालत से गुजरता है - वह उसे कविता में व्यक्त करने की कोशिश करता है, चाहे वो खुद क लिए गुस्सा या प्यार हो, खुद से शिकायत हो, किसी से प्रेम हो, किसी से शिकायत हो, शिकवे गिले, रोजमर्रा की ज़िंदगी को इस पुस्तक में कविता के रूप में प्रदर्शित किया गया है - इसे किसी नवयुवक का यात्रा वृतांत काव्य पुस्तक कह सकते हैं - या आप कह सकते हैं की जब ज़िंदगी बेवज़ह लगने लगे तो वज़ह ढूंढ लेनी चाहिए क्युकी ज़िंदगी बेवज़ह नहीं होती है - आप भी अपनी ज़िंदगी की वजह इस पुस्तक की कविताओं के नवयुवक की तरह उसकी कविताओं को पढ़कर ढूंढ़ने की कोशिश कीजिये। 

bevajah zindagi

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Ashok Kumar Pachaury की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

1

बिखरा हूँ मैं, ताश के जैसे

30 मार्च 2024
1
1
0

बिखरा हूँ मैं, ताश के जैसे जिन्दा तो हूँ, लाश के जैसे लोग मारते, कुछ तो पत्थर कुछ पत्थर, ठुकरा देते हैं जां लेने पर, तुले हो मेरी लो हम खुद ही, जां देते हैं जख्म हरे मेरे, घास के जैसे बिखरा हूँ

2

कुछ भी नहीं है हाथों में

30 मार्च 2024
1
1
0

कुछ चोट लगीं, कुछ जख्म मिले,  कुछ आह सहीं, कुछ राह चला, कुछ दूर चला, फिर भटक गया,  भटका ऐसा, फिर मिला नहीं,  न रही मिली, न खुद से मिला, जिन्दा था भी, या न था, ऐसा भी कुछ,  एहसास न था,  म

3

एक नन्हा खग

30 मार्च 2024
1
0
0

हौसले बुलंद थे  तभी तो वो उड़ सका  नन्ही सी जान थी  पर अभी निकले ही थे  घोंसला वही पर था  जहाँ पे था वो जन्मा  अभी तलक कवच भी था  अंडे का जिससे था निकला  इन सबसे अनजान होकर भी  उड़ता देख माँ, भ

4

कांटो को तुम पुष्प बनाकर - बढ़ते जाना चलते जाना

30 मार्च 2024
1
0
0

है कठिन डगर सुन ले ओ पथिक चलने से घबरा मत जाना  जाति - पाति के भेदभाव में  फंसकर कहीं तुम न रह जाना  कांटो को तुम पुष्प बनाकर  बढ़ते जाना चलते जाना  कहीं लगे थक गए बहुत हो  तनिक ये भाव न मन में

5

कुछ शख्श मिले

30 मार्च 2024
1
1
0

चला,रुका,  फिर चला, यह शिलशिला  यूँ ही चला, न चल सका, न रुक सका, ऐसे ही चलता रहा, कुछ शख्श मिले,  कुछ कह गए, कुछ ध्यान दिया,  कुछ नहीं दिया, थोड़ा सा सुना, और नहीं सुना, कुछ वक्त मिला, आर

6

कुछ बिखरा है कुछ टूटा है

30 मार्च 2024
1
1
0

कुछ अंदर है, कुछ बाहर है, कुछ मेरे भी, कुछ तेरे भी, कुछ यहाँ वहां, है बिखरा हुआ, कुछ कांच सा, टुटा हुआ कहीं, कुछ ताश सा, बिखरा हुआ कहीं, कुछ मातम सा, है छाया हुआ, कहीं हर्ष बिगुल, सा बजा

7

कुछ अता-पता मिल जाता

30 मार्च 2024
1
1
0

ढूंढा तुमको मैंने, यहाँ वहां न जाने कहाँ, कुछ लोगों से पूंछा, तेरे मिलने का ठिकाना, कुछ ठिकाने भी ढूंढे, जहाँ तुम मिला करते थे, जहाँ तुम मिला करते थे, वहां तुम मिले नहीं अरसो से, नए ठिकानों पर

8

किसान है वो मेहनत की खाता है

30 मार्च 2024
2
1
0

किसान है वो  मेहनत की खाता है किसान है वो  मेहनत की कठिनाई का  सामना करता है, धूप, बर्फ, बारिश में भी  अपने काम को निभाता है। खेतों में जो  उनकी किल्लत है,  वो कोई नहीं समझ सकता, हर दिन की

9

एक दिन वह भी आएगा

30 मार्च 2024
1
1
0

एक दिन वह भी आएगा,  जब सपनों का आकार होगा।   वह सुख-शांति का सागर होगा,  जो हमें अंतर्मन से आवाज़ देगा।   एक दिन वह भी आएगा,  जब समृद्धि की मिठास बिखरेगी।   सभी दरियाओं को लहराएगा,  अपने प्या

10

इसलिए में मुकाम को नहीं पाया

30 मार्च 2024
1
1
0

चल चार कदम  हर बार यूँ ही, डगमगाया लौट आया। कभी कोशिश नहीं की, कभी थोड़ा चला, कभी बीच रस्ते से लौट आया। ठोकरों का डर कभी, कभी उनसे गिर जाने का, हर बार डरा,  और डर के वापस आया। कभी मंजिल

11

खत लिखता हूँ - लिख लेता हूँ

30 मार्च 2024
1
1
0

लिखना भी तो, क्या लिखना है? कहना भी तो, क्या कहना है? खलिश है रहती,  हर पल मन में, मिल भी ले तो, क्या कहना है? खत लिखता हूँ,  लिख लेता हूँ, और उसे फिर,  मोड़ माडकर, बक्शे में कहीं, रख दे

12

"धूम धाम" से "प्रगति या दुर्गति"

30 मार्च 2024
2
1
2

आलू ,मटर ,टमाटर  में थी दोस्ती सच्ची और प्यारी  साथ निभाते थे उनका  धनिया और हरी मिर्च न्यारी  धूमधाम से खेला करते  गोभी - गाजर और फली भी  प्याज भी साथ में आती थी  दोस्त तो थी वो भी न्यारी  कभ

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