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हिन्दी: दशा एवं दिशा

30 मई 2016

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   मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर मनुष्य अपनी भावनाओं का आदान प्रदान भाषा के माध्यम से ही करता है, अतः भाषा संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। ऐसे में बहुभाषी समाज को एक सूत्र में बाँधने के लिये किसी एक भाषा का होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है और हिन्दी ने यह कार्य पूरी तरह से निभाया है।

   हिन्दी एक सहज, शिष्ट व साहित्यिक भाषा है, जिसकी अनेक आंचलिक बोलियाँ भी हैं। शिक्षा, क्षेत्र, जीवन स्तर, व्यवसाय आदि के कारण साहित्य तथा बोलचाल की हिन्दी में कुछ स्वभाविक भिन्नतायें भी उपस्थित हैं, जिनके फलस्वरूप कहा जाता है कि आम बोलचाल की भाषा में हिन्दी का स्तर कम हो रहा है परन्तु देखा जाय तो इस तरह की मिली जुली भाषा की अपनी ही एक मिठास और अपनापन है।

     वैश्वीकरण के फलस्वरूप प्रतीत हो रहा था मानो अंग्रेजी का हिन्दी पर वर्चस्व कायम हो रहा है, परन्तु वर्तमान में स्थितियाँ बदल चुकी हैं। भारतीय अपने भाषीय सम्मान के प्रति जागरुक हो चुके हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण भोपाल में आयोजित १०वां विश्व हिन्दी सम्मेलन रहा है जो कि इसबार हमेशा की तरह साहित्य केन्द्रित न होकर भाषा केन्द्रित रहा। हाँ इस हेतु मीडिया तथा दूरदर्शन की भी भूरि भूरि प्रशंसा होनी चाहिये फिर चाहे अमीन सयानी की सशक्त आवाज़ में रेडियो पर भाइयों एवं बहनों का सम्बोधन हो या अमिताभ बच्चन द्वारा फिल्मी पर्दे पर कहा जाने वाला देवियों एवं सज्जनों, दोनो ही सम्बोधन हमारे दिल को छू जाते हैं।

     हिन्दी सरकारी कार्यों एवं लिखा पढ़ी हेतु भी एक आसान भाषा है। लचीलापन हिन्दी की मुख्य विशेषता है जिसके कारण जनमानस हिन्दी के प्रति स्वयं आकर्षित हुये हैं, फलस्वरूप हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा के रूप में स्वतः स्थापित हो चुकी है।

     भाषा विज्ञान के अनुसार वे भाषाएं जो भले ही लिपि के आधार पर पृथक हैं परन्तु व्याकरण की दृष्टि से समान हैं, एक ही भाषा (हिन्दी) के अन्तर्गत आती हैं। उदाहरण स्वरूप उर्दू भी एक एेसी ही भाषा है। इस प्रकार समान लोगों द्वारा समझी तथा बोली जाने वाली भाषा के रूप में हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी  भाषा के रूप में सामने आयी है।

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