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देव भूमि उत्तराखण्ड का बदलता परिवेश

10 नवम्बर 2022

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देवभूमि उत्तराखंड के बदलते परिवेश से मैं कभी - कभी गहन सोच में पड़ जाती हूँ,  कि कैसे सब कुछ बदल सा गया है, लोगों का रहन - सहन और खासकर नजरिया इसे सकारात्मक भी कह सकते है | अब नई पीढ़ी अपने भविष्य के खातिर जागरूक ही नहीं बल्कि जी तोड़ मेहनत भी करती है जो हमारे देवभूमि उत्तराखंड के विकास के खातिर बेहतरीन पहल है| महिलाओं ने भी अब घास काटना और पहाड़ों पर होने वाले संघर्ष से मुंह मोड़ लिया है इसका नतीजा ये हुआ कि  जहाँ हमारे खेत - खलिहान फसलों, साग - सब्जियों और पेड़ों की डालियाँ खट्टे - मीठे फलों से लदे रहते थे अब वो सब बंजर भूमि में तब्दील हो गयें है और हम प्रकृति माँ से दूर हो गयें हैं, अब कहाँ कल -कल बहते झरने और नदियाँ है यहाँ तक की  प्राकृतिक जल स्रोतों के नामोनिशान तक मिट गयें हैं |
प्रकृति से जुड़े रहने के लिए सबसे पहले हमें जमीन से जुड़े रहना होगा जो अब कभी संभव नहीं है | अब हम विकास की राह पर बहुत आगे निकल चुके हैं जहाँ से लौट कर आना कल्पना से परे है | फिर भी ईश्वर के कुछ दूत हैं जो कठिन परिश्रम कर देव भूमि की माटी की लाज बचाने का संकल्प ले चुके हैं| मैं अपने दिल को ये समझा कर तसल्ली दे देती हूँ कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है बस मेरी यही प्रार्थना है कि हमारी देवभूमि सदा आबाद और खुशहाली से परिपूर्ण रहे |

गीता रावत (नामदेव) 
इंदौर

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देवभूमि
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देवभूमि उत्तराखंड मेरे ज़हन में रचती बसती है|

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