डर, भय
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पुरानी यादें ताजा
स्त्री विमर्श
परिंदे
दिनचर्या पर आधारित
कहानी हर घर की, माँ तो माँ होती है
कविता के रूप में पहाड़े
सामाजिक कहानी
बालक की प्रथम पाठशाला परिवार होता है
शीशा क्या, बताएगा खूबसूरती तुम्हारीवक्त हो तो देख लेना आखें में हमारी साहिबा
दुखों मे ठीक ठाक कटती है जिंदगीबीच मे खुशियां आकर परेशान कर देती है
मुस्कुराहट से रोशन है ये ज़िंदगी,जैसे चाँदनी से सजी हो रात।हर लफ़्ज़ में बस महक हो प्यार की,जैसे बहारों का हो कोई जश्न।
सारी दुनिया के रूठ जाने की परवाह नहीं मुझे,बस एक तेरा रूठ जाना मुझे तकलीफ देता है!
अनीश की पहली मुस्कानजब अनीश ने पहली बार मुस्कराया था,माँ की गोद में वो लाड़ से लिपटाया था।उसकी नन्हीं-नन्हीं आँखों में चमक थी,जैसे आसमान के तारों की कोई झलक थी।उसकी हंसी में छिपा था संसार सारा,हर आवाज
छू लेता शायद मैं भी उचक कर चांद कोखुदा ने ख्वाहिशें तो दी मगर हाथ छोटे रखे
नज़र समय पे रखना दोस्त, सुइयां घूमना शुरू हो चुकी है!
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे, इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए।
तुम्हें देखते ही ये दिल बेकरार होने लगता हैतेरी चाहत पर मुझे इक़रार होने लगता है