पुरानी यादें ताजा
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वास्तविक व सजीव चित्रण आज जो अकल्पनीय है ।
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यादें बचपन की चलो देखते हैं फिर एक समय पुराना, शिक्षालय के चारों यार, यारों का था याराना, हाथ में कपड़े के फटे हुए होते थे थैले, खेल खेलकर कपड़े भी होते थे मेले... आज जब पुराने शिक्षा
बचपन मे बहन मिट्टी का घरौंदा बनाती थी। मिट्टी का सात-आठ दिन लगकर फिर दीवाली की रात उसकी पूजा कर उससे मिट्टी के बर्तन( चुकिया) में प्रसाद रखती थी लड्डू, बनिया बगैरह जो कि सुबह
वो दिन,, जो भूले न जा सके,, जब हम स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था..!तब कैमलिन की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर
यादें बचपन की आज के समय में पेंट करना बहुत आसान काम है, पेंट का डिब्बा खोलो, रोलर डुबाओ और घुमा दो, हो गया पेंट। एक समय था कि हमारे बचपन का कि एक छोटे से घर कि पुताई में पूरे 10,15 दिन लग जाते थे
"यादें बचपन की " इस पीले भूरे रंग की वस्तु को देख रहे हैं ना उसे शायद बहुत से लोग पहचान भी रहे होंगे। नई पीढ़ी और शहरों के लोग शायद ना भी पहचान रहे होंगे। तो आइए बताते हैं इसके बारे में। यह हम
बचपन वाली दीपावली बचपन की दीपावली का मतलब छोटी दीवाली, बड़ी दिवाली और उसके बाद गंगा स्नान (कार्तिकी) की तैयारी हुआ करता था। धनतेरस और भैया दूज कम से कम हमारे गांव में तो नहीं मनाया जाता था। यह दो
हम बचपन में छुट्टी के बाद खाना खाते ही शुरु हो जाते थे..... फिर जब शाम को वापस खाने का समय होता तब ही वापस घरों को रूख करते थे। आजकल के बच्चों का बचपन इंटरनेट ने छीन लिया है... काश वो बिना जि
यादें बचपन की पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें... पढ़ाई का तनाव हमने पेन्स
दोस्ती एक ऐसा शब्द है जिसके लिए शायद शब्द भी कम पड़ जाय, पर मैं डरता हूँ दोस्ती करने से ऐसा नहीं है कि विश्वास नहीं रहा पर कुछ बचा भी नहीं इस रिश्ते में , जो कि साथ रखा जाए, मन बहुत होता है उसे सब
मित्रता... सखा सोच त्यागहु बल मोरे । सब विधि घटब काज मैं तोरे ।। मित्र तो राम की तरह होना चाहिए जो ये कहे कि मेरे भरोसे अपनी सारी चिंता छोड़ दो मित्र... अपनी पूरे सामर्थ्य लगा कर
यारों की यारियां... उन तीनों को होटल में बैठा देख, रमेश हड़बड़ाहट सा गया... लगभग 22 सालों बाद वे फिर उसके सामने दिखे थे... शायद अब वो बहुत बड़े और संपन्न आदमी हो गये थे... रमेश को
याद आई मुझे बचपन की दोस्त जो रूठ जाने पर मुझे मना लिया करती थी खाना नहीं खाने पर खिला दिया करती थी बीमार पड़ जाने पर मेरा खयाल रखा करती थी माना की वो गरीब थी पर दिल की वो सबसे अमीर थी
बच्चें मन के सच्चे... बचपन में याद है ….. अब इस तरह का आशीर्वाद कम ही मिलता है….. जब कोई रिश्तेदार व परिवार वाले हमारे घर आते थे तब फल व खिलौने लेकर आते थे और जब उनके वापस लौट
(निकु और नीशू दो दोस्त की दोस्ती) (नीकु और नीशू दोनों दोस्त आपस में वार्तालाप कर रहे हैं)निकु - ये बताओ नीशू दोस्त! आज कई दिनों के बाद हम दोनों दोस्त विद्यालय जा रहे हैं। क्या तुमने गृहकार्