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कहते हैं जिस मंज़िल नही जानावो राहें नामालूम ही मुनासिबमगर क्या हो जब इन राहों से ही सोहबत हो जाए। -दीपक
शामों की गिरेहबान में जब झांकता हूँ तो रातों से झगड़ा मोल ले लेता हूँ ,नींद की करवटों पर कोई कसक दबी सी रहती है । - दीपक ।
कुछ कहती हैं साहिल से लहरें साहिल है बईमान बड़ा घुलता है रोज़ मगर देख रहा वो दूर खड़ा । -दीपक शर्मा ।