एक अभिव्यक्ति
जुल्म करके भी तुम मुकर जाते हो,ऐसी फ़ित्रत कहाँ से तुम लाते हो?दर्द का एहसास अब भी होता मुझे,जब मुश्किलात में ख़ुद को पाते हो।मेरा रहगुज़र अब कहीं दिखता नहीं,बूढ़े ज़ख़्म को अब क्यों दिखाते हो?उसकी कैफ़ीयत अब सवाल करती,उस शख़्स को भला क्यों सताते हो?कुछ लोग रस्सी को साँप बनाते यों ही,अपनी बातों में भला क्यो