रिषि दुर्वासा महाराज युधिष्ठिर के घर पहुँच चुके थे दोपहर का भोजन करने। महाराज ने उनसे निवेदन किया कि वो अपने शिष्यों के साथ स्नान करके आयें और भोजन ग्रहण करे । रानी द्रोपदी के पास एक चमत्कारिक पात्र (बरतन )था जिसमें जब तक स्वयं रानी भोजन न करें तब तक वो जितने चाहें उतने लोगों को भोजन परोस सकतीं थीं । लेकिन रिषि दुर्वासा के आगमन तक रानी भोजन कर चुकीं थीं । रिषि दुर्वासा को नाराज करना मतलब उनके श्राप का भागीदार बनना ।जिसका मतलब सर्वनाश । रानी ने रोते रोते
भगवान श्री कृष्ण को याद किया ।प्रभु आये तो रानी ने उनको पूरी बात बताई । प्रभु ने रानी को वही पात्र लाने को कहा ।रानी ने पात्र प्रभु को लाकर दिया । उसमें भोजन के कुछ दाने चिपके हुए थे । प्रभु के उन दानों का सेवन करते ही रिषि और उनके शिष्यों का पेट भर गया और रिषि ने महाराज के यहाँ न जाने का निर्णय लिया ।
इसमें संदेश गहरा है कि अगर हम एक एक दाना बचायें तो वो कई भूखे लोगों के भोजन के काम आ सकता है । बरतन में बचा एक दाना भी महत्वपूर्ण है और किसी की भूख मिटा सकता है ।
इसलिए किसी पार्टी में जायें तो उतना ही परोसें जितना खा सकते हैं ।