भगवान बुद्ध और विषधर नाग
एक बार भगवान बुद्ध देशाटन करते करते एक गांव पहुंचे। वहां कुछ समय रुककर वो गांव से बाहर जाने वाले एक रास्ते पर चल पड़े। सभी गांव वालों ने उन्हें रोका कि आप उस रास्ते से न जाएं वहां एक विषधर नाग रहता है। वो वहां से गुजरने वालों को डस लेता है।
बुद्ध मुस्कुराये और उसी रास्ते पर आगे बढ़ने लगे। गांव वाले भी डरते डरते उनके पीछे हो लिए।
जैसा कि गांव वालों ने बताया था वो विषधर नाग अचानक सामने आ गया। बुद्ध ने उसको मुस्कुराकर उसकी आंखों में देखा। उनकी निर्भय आंखों का तेज देखकर वो समझ गया कि ये भगवत स्वरूप कोई हस्ती हैं। वो उनके चरणों में सिर झुकाकर बैठ गया। भगवान बुद्ध ने उसको उपदेश दिया और उससे वचन लिया कि अब वो यहां से गुजरने वालों को नहीं डसेगा। उसके वचन देने के बाद बुद्ध आगे निकल गये।
कुछ दिन बाद वापसी में बुद्ध फिर उसी रास्ते से गुज़रे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग किसी पर पत्थर फेंक रहे हैं। यहां तक कि छोटे छोटे बच्चे भी और फिर जोर जोर से हंस रहे हैं जैसे किसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं। पास जाकर उन्होंने देखा कि सभी जिसको पत्थर मारकर हंस रहे हैं वो और कोई नहीं वही विषधर नाग है। वो बुरी तरह लहूलुहान था लेकिन कुछ नहीं बोल रहा था। बस चुपचाप पत्थर का रहा था।
भगवान बुद्ध ने लोगों को रोका और उस नाग से पूंछा, " ये लोग तुम्हें पत्थर मार रहे हैं और तुम अपने बचाव में कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे, कर्मों ? "
विषधर नाग ने कराहते हुए जवाब दिया, " प्रभु आपने ही तो मुझे मना किया था और न डसने का वादा लिया था। इनको अब मुझसे डर नहीं लगता इसलिए इन्होंने मेरा ये हाल कर दिया क्योंकि मैं आपको दिया वचन कैसे तोड़ सकता हूं। "
विषधर का जवाब सुनकर भगवान बुद्ध ने उसे कहा, " हां मैंने तुमको डसने के लिए मना किया था पर फुफकारने को तो नहीं रोका था। "
विषधर उनकी बात का मर्म समझ गया था और उस दिन के बाद उसे किसी ने परेशान नहीं किया।
( संकलित )