- इच्छाशक्ति भी बड़ी अजीब चीज है,न जाने कितनी इच्छाएं रोज मन में पैदा होती हैं और रोज विचारो में दफन हो जाती है।मगर कुछ इच्छाएं मन मे घर कर लेती है,वो दम नहीं तोड़ती वो सांस लेती है खुद को जिंदा रखती हैं।जब की हम जानते है,की हर ख्वाहिश पूरी नही होती। शायद इसीलिए शायद गालिब साहब कह गए,हजारों ख्वाहिसे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
मगर यहां मैं ऊपरवाले के लिए भी यह कहना चाहता हूं, बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख।चलो यह सब तो थी इच्छाशक्ति की बात मगर क्या आप जानते है? कि इच्छाशक्ति सिर्फ इंसान की ही नहीं जानवरों की भी होती है,और क्या होगा जब किसी जानवर की इच्छा किसी इंसान की इच्छा से मेल खाए और क्या हो जब वो इच्छा ही पूरी हो जाए?
तो शुरू करते अपनी कहानी के किरदार दिनेश से,दिनेश अपने मां बाप की इकलौती संतान है,मगर गलत दोस्तो की संगत से ये बहुत बिगड़ गया है,इतना बिगड़ गया है कि जिसके सुधारने की कहीं कोई संभावना ही नहीं।वो बेतहंशा नशा करता है, आवारागर्दी, भाईगिरी उसकी जिंदगी का कोई न मकसद है,न मतलब है।बस जीए जा रहा है बेवजह।उसकी ये आदत यह हालत उसके पिता से देखी नही जाती,और अक्सर उन दोनों में बहुत भयंकर बहस हुआ करती थी।जैसे तैसे दिनेश की मां ही दोनो को शांत कराती थी।
- दिनेश के पापा अक्सर रात के खाने के बाद गली के एक आवारा कुत्ते को खाना खिलाते थे।यही कुत्ता इस कहानी का महत्त्वपूर्ण किरदार है। मगर इसका कोई नाम नहीं है,क्योंकि